भारत का विस्मृत वैभव

India, the land that gave the world zero, yoga, Ayurveda, and profound philosophy. Discover the untold story of India's ancient wisdom, scientific brilliance, and cultural legacy that shaped human civilization.

Oct 24, 2025 - 15:01
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भारत का विस्मृत वैभव
The forgotten glory of India

विश्व इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसी संस्कृतियाँ और सभ्यताएँ हैं जिनका प्रभाव इतना गहरा,इतना सर्वव्यापक है कि उनकी छाया आज भी मानव सभ्यता के हर कोने में दिखाई देती है। भारत-एक ऐसा देश जिसकी ऐतिहासिक यात्रा, सांस्कृतिक गहराई और वैज्ञानिक सोच ने दुनिया को बार-बार एक नई दिशा दी,फिर भी दुर्भाग्यवश उसका उचित मूल्यांकन नहीं किया गया। हम में से अधिकतर लोग आज भी उस भारत को नहीं जानते, जिसने शून्य की खोज की,योग की साधना दी,आयुर्वेद जैसा चिकित्सा विज्ञान रचा और वैश्विक व्यापार मार्गों को जन्म दिया।

भारत ने गणित की दुनिया को ऐसी देन दी,जिसके बिना आधुनिक विज्ञान,कंप्यूटर या इंजीनियरिंग की कल्पना भी नहीं की जा सकती- वह है `शून्य' (Zero) ।आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त जैसे विद्वानों ने न केवल शून्य की संकल्पना दी, बल्कि बीजगणित, त्रिकोणमिति और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी योगदान किए। जिस समय यूरोप अंधकार युग (Dark Ages) में था,भारत में नक्षत्रों की गति और ग्रहणों की भविष्यवाणियाँ की जा रही थीं।
आयुर्वेद-यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है। चरक, सुश्रुत और वाग्भट जैसे आचार्यों ने शल्य चिकित्सा (Surgery), औषध निर्माण और शरीर रचना विज्ञान पर ऐसे ग्रंथ लिखे जो आज भी विश्व की प्रमुख संस्थाओं में संदर्भ के रूप में प्रयोग होते हैं। सुश्रुत को तो ‘सर्जरी का जनक’ भी कहा जाता है।

    भारत की सबसे अनमोल देन उसका दर्शन और अध्यात्म है। `वसुधैव कुटुम्बकम्' - संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने वाली यह सोच भारत की आत्मा है। योग, जिसे आज दुनिया स्वास्थ्य की कुंजी मानती है,भारत की इसी आध्यात्मिक चेतना से उपजा। पातंजल योगसूत्र हों या भगवद्गीता का कर्मयोग-भारत ने जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखने की शिक्षा दी।
     बौद्ध पंत और जैन पंत की अहिंसा पर आधारित शिक्षाओं ने न केवल भारत को, बल्कि चीन, जापान, श्रीलंका, तिब्बत और दक्षिण एशिया को भी गहराई से प्रभावित किया। बुद्ध के विचार आज भी करोड़ों लोगों के जीवन का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

  भारत प्राचीन काल से ही व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र रहा है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यताओं में समुद्री व्यापार के प्रमाण मिलते हैं। रोम, यूनान, अरब और चीन तक भारत के मसाले, रेशम, हाथी-दांत, और धातुएँ जाती थीं। भारत की बनारसी साड़ी, चंदन, केसर, नील और अनेक वस्तुएँ विश्व बाजार में उच्चतम मूल्य पर बिकती थीं। जब यूरोप के देशों ने भारत के व्यापारिक वैभव को जाना, तो उन्होंने इसी कारण से भारत की धरती पर उपनिवेश जमाए। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत एक समृद्ध, सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर राष्ट्र था, जिसकी आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति से अन्य शक्तियाँ आकर्षित होती थीं।
संस्कृत-जिसे विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा कहा जाता है- केवल मंत्रों या वेदों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसने मानव मस्तिष्क की भाषा संबंधी क्षमताओं को समझने में भी योगदान दिया है। संस्कृत में लिखा गया साहित्य, चाहे वह कालिदास का ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ हो या वेद-वेदांग, आज भी विश्व की महानतम काव्य और ज्ञान परंपरा का हिस्सा माने जाते हैं।

भारतीय शिल्पकला, स्थापत्य और संगीत ने भी विश्व को समृद्ध किया है। खजुराहो, कोणार्क, अजंता-एलोरा की गुफाएँ, नटराज की मूर्ति या भरतनाट्यम, कथक और ओडिसी जैसे नृत्य-ये सभी उस सांस्कृतिक उन्नयन के प्रतीक हैं, जिनसे भारत ने विश्व को सौंदर्यबोध, भाव और लय का पाठ पढ़ाया। आज जब पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाता है, आयुर्वेदिक उत्पादों की माँग बढ़ती है, और भारतीय सॉ़फ्टवेयर इंजीनियर से लेकर वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेतृत्व करते हैं-यह सब उस सांस्कृतिक परंपरा की देन है जिसने हजारों वर्षों से 'ज्ञान को बाँटने' को अपना कर्तव्य माना है। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने तब वैश्विक शिक्षा के द्वार खोले जब दुनिया में शिक्षा केवल कुलीनों तक सीमित थी। जापान, चीन, कोरिया और तिब्बत से छात्र भारत में अध्ययन करने आते थे, और वे केवल ज्ञान ही नहीं, भारतीय जीवनदृष्टि भी साथ ले जाते थे।

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  परंतु, क्यों नहीं पढ़ाया गया हमें यह इतिहास? यह प्रश्न हमें झकझोरता है - क्यों हमारे विद्यालयों में भारत के इन योगदानों पर मौन साधा गया? क्यों हमें केवल आक्रमणों, पराजयों और गुलामी के इतिहास से जोड़ दिया गया? शायद इसलिए कि औपनिवेशिक मानसिकता ने हमारी आत्मा को कुचलने का प्रयास किया-हमें अपनी ही विरासत से काटकर एक निर्बल राष्ट्र के रूप में दिखाया गया। अब समय है कि हम इस मौन इतिहास को स्वर दें। हम अपने बच्चों को बताएं कि वे उस धरती की संतान हैं जिसने गणना को जन्म दिया, औषधियों को जीवन दिया, और विचारों को उड़ान दी।
भारत-जो अब भी मौन नहीं है भारत आज भी मौन नहीं है। वह फिर से जाग रहा है-अपनी जड़ों की ओर लौटकर, अपने ज्ञान और विज्ञान को पुनः पहचान कर। आधुनिक भारत तकनीक, विज्ञान, अंतरिक्ष, रक्षा और वैश्विक नेतृत्व में अपने ऐतिहासिक स्वभाव को पुनः प्राप्त कर रहा है।यह इतिहास केवल अतीत की गर्वगाथा नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक है।
   भारत कोई ‘गूंजती हुई शक्ति’ नहीं था-वह ‘मौन शक्ति’ था जिसने विचारों, ज्ञान और शांति से दुनिया को जीता। अब समय है कि हम उस इतिहास को फिर से लिखें जिसे दबा दिया गया था। वह इतिहास, जिसे हम स्कूलों में पढ़ना चाहते थे। वह इतिहास, जो हमारी आत्मा को शक्ति देता है। वह भारत-जो न केवल एक राष्ट्र है, बल्कि एक जीवनदर्शन है।

पायल लक्ष्मी सोनी 
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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