शब्दों का शिल्पकार केदारनाथ सिंह

Kedarnath Singh was one of the most influential Hindi poets whose works beautifully connect folk life, human emotions, and modern reality. Through collections like “Akaal Mein Saras,” “Zameen Pak Rahi Hai,” and “Yahan Se Dekho,” he created poetry that bridges nature, humanity, and society. He received the Jnanpith Award in 2014 for his remarkable contribution to Hindi literature.आचार्य रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि ‘मैं और केदारनाथ जी बीएचयू में पढ़ाई के लिए एक ही ट्रेन से जाते थे। वहां के एक नंबर हॉस्टल में उनका एक नंबर कमरा था। केदारनाथ जी ने बीएचयू से साहित्यिक हिंदी व मैंने संस्कृत‌ की पढ़ाई की', बाद में उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। उनका शोध प्रबंध ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब-विधान’ था, जिसे उन्होंने हिंदी साहित्य के महान आलोचक आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में पूर्ण किया था।

Oct 18, 2025 - 16:19
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शब्दों का शिल्पकार केदारनाथ सिंह
Kedarnath Singh

Kedarnath Singh हिंदी कविता के एक ऐसे स्वर थे, जिन्होंने लोक आत्मा, मानव संवेदना, यथार्थ का धरातल और आशाओं का आकाश सबको अपनी कविताओं में समेटा। वे बिंब विधान, छंदमुक्त गीतात्मकता, और सामाजिक चेतना के श्रेष्ठ कवि थे। उनकी कविताएँ न केवल साहित्यिक पाठकों को, बल्कि आम जन को भी गहराई से छूती हैं। वे हिंदी कविता में लोक और आधुनिकता के सेतु हैं। उनके मनोवेगों की ध्वनि आज भी भारतीय साहित्य में गूँजती प्रतीत होती है।

 केदारनाथ सिंह का जन्म ७ जुलाई १९३४ को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चकिया गांव में हुआ था। वे एक सशक्त कवि ही नहीं, बल्कि एक प्रख्यात आलोचक और निबंधकार भी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही मिल्की महाराज बाबा के विद्यालय में हुई। कक्षा १ से ५ तक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बाबा लक्ष्मण दास द्वाबा राष्ट्रीय इंटर कॉलेज से पढ़ाई की। इसके उपरांत वे वाराणसी के यूपी कॉलेज तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में अध्ययन के लिए गए। उनके बचपन के मित्र आचार्य रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि ‘मैं और केदारनाथ जी बीएचयू में पढ़ाई के लिए एक ही ट्रेन से जाते थे। वहां के एक नंबर हॉस्टल में उनका एक नंबर कमरा था। केदारनाथ जी ने बीएचयू से साहित्यिक हिंदी व मैंने संस्कृत‌ की पढ़ाई की', बाद में उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। उनका शोध प्रबंध ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब-विधान’ था, जिसे उन्होंने हिंदी साहित्य के महान आलोचक आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में पूर्ण किया था। द्विवेदी जी की प्रेरणा से उन्होंने बांग्ला भाषा सीखी और रवींद्रनाथ ठाकुर के साहित्य को पढ़ने का प्रयास किया।

वे ब्रिटिश कवि डायलन थॉमस, प्रâेंच कवि रेने शार, और अमेरिकी कवि वालेस स्टीवेंस से भी प्रभावित थे। उन्होंने अनेक विदेशी कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया। हिंदी साहित्य के इस महान हस्ताक्षर का निधन ८३ वर्ष की उम्र में १९ मार्च २०१८ को निमोनिया के कारण दिल्ली के एम्स अस्पताल में हो गया। 
केदारनाथ सिंह का पहला काव्य-संग्रह `युग की गंगा' १९४७ में प्रकाशित हुआ था। हिंदी साहित्य को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण संकलन है। उनकी काव्य यात्रा की शुरुआत एक गीतकार के रूप में हुई। वे अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित पुस्तक `तीसरा सप्तक' १९५९ के सात कवियों में एक कवि थे। इस संकलन में प्रकाशित उनकी कविताओं ने उन्हें साहित्य-जगत में एक नई पहचान दी।
उनका काव्य-संग्रह ‘अभी, बिल्कुल अभी’ वर्ष १९६० में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की कविताओं में नवीनता, तात्कालिकता और लोक-जीवन की झलक है। बीस वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद दूसरा संग्रह ‘ज़मीन पक रही है’ १९८०, प्रकाशित हुआ। इस संग्रह के प्रकाशन ने उन्हें समकालीन हिंदी कविता का एक प्रमुख स्वर बना दिया। 
 उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ - `यहाँ से देखो', ‘अकाल में सारस’‘, `उत्तर कबीर' और अन्य कविताएँ `बाघ’ `टॉलस्टॉय और साइकिल'। इन सभी संग्रहों ने हिंदी कविता को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। 

केदारनाथ सिंह की कविता में सरल, सहज भाषा, सरस संप्रेषण, बिंबों की नवीनता, ठेठ‌ देसी‌ प्रतीकों का प्रयोग, कथाओं का समावेश आपसी बातचीत, मुक्त छंदों में लयात्मकता देखी जा सकती है। 
केदारनाथ सिंह एक संवेदनशील कवि थे उनके हृदय में उमड़ा भाव‌‌ कि -`जीवन के बिना प्रकृति और वस्तुएँ कुछ भी नहीं है'- उनके अंदर जाग्रत यह एहसास उन्हें‌ मनुष्य के और समीप ले आया। उन्होंने अपनी कविताओं में मानव के साधारण क्रिया-कलापों, 
अनुभवों‌, संवेदनाओं, सामान्य जीवन की अनुभूतियों को बिंबों के माध्यम से बखूबी दर्शाया है। उनके काव्य में मानव के प्रति आत्मीयता गहराई से विद्यमान हैं।
उनकी पंक्तियाँ-
‘अगर इस बस्ती से गुजरो
तो जो बैठे हो चुप
उन्हें सुनने की कोशिश करना
उन्हें घटना याद है
पर वे बोलना भूल गए हैं'
' कितनी लाख चीखों
कितने करोड़ विलापों-चीत्कारों के बाद
किसी आंँख से टपकी
एक बूंँद को नाम मिला-आँसू
कौन बताएगा,बूंँद से आँसू 
कितना भारी है।'
    वे शांत विद्रोह के स्वर थे। वे मुखर नहीं थे,परंतु उनके स्वर में शोषितों एवं वंचितों की पीड़ा सम्मलित थी। उनकी प्रगतिशील आंदोलन के लिए शांत आवाज, उनका विद्रोह ठहराव विवेक से भरा हुआ दिखायी देता था। जैसे:-
‘पियाली टूटी पड़ी है, गिर पड़ी है चाय
साइकिल की छाँव में, सिमटी खड़ी है गाय
पूछता है एक चेहरा दूसरों से मौन
बचा हो साबुत — ऐसा कहाँ है वह - कौन?’
केदारनाथ सिंह बहुत आशावादी थे।उन्होंने आजादी के समय मोहभंग भावना का अलख जगा देशवासियों‌ को जाग्रत किया। निराशा के अंधकार में भी आशा की लौ जलायी।
‘दरवाज़े खुले रखो
वह लौट सकेगा
वह लौट सकते हैं
उम्मीद मत रखो, 
बस उन्हें खुला छोड़ दो
दरवाज़ों का खुला होना 
खुद एक उम्मीद है’
केदारनाथ सिंह ग्रामीण अंचल से जुड़े होने के नाते उनकी कविताओं में लोकगीत, लोककथाएँ, ग्रामीण संस्कृति, लोक‌ परंम्पराओं एवं रूढ़ियों का सुंदर चित्रण मिलता है।
‘मेरे शहर के लोगों, यह कितना भयानक है
कि शहर की सारी सीढ़ियाँ मिलकर
जिस महान ऊँचाई तक जाती हैं
वहाँ कोई नहीं रहता।’
उनकी कविताएँ कृत्रिमता से रहित और जमीन से जुड़ी हुई हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति-प्रेम, मानव जीवन की साधारण दुविधाओं के विषयों को असाधारण रूप से प्रस्तुत कर विशिष्टता देना, समाज की समस्याओं को गहनता से समझकर उजागर करना उनकी यथार्थवादिता को दिखाता है।
`जमीन सिर्फ ज़मीन की तरह लग रही थी
सिर्फ ज़मीन थी
और ज़मीन का पकना था
जैसे बस्ती में गोश्त पक रहा हो’
'उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए
मैंने सोचा, दुनिया को हाथ की तरह नर्म और
सुंदर होना चाहिए।'
केदारनाथ सिंह को बिंबवादी कवि के रुप में देखा जाता है। उनका शोध कार्य भी बिंब-विधान पर था।उन्होंने अपने काव्य में बिंब को एक महत्वपूर्ण औजार की तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि 'बिंब वह शब्द चित्र है जो कल्पना के द्वारा ऐंद्रिय अनुभवों के आधार पर निर्मित होता है।' उन्होंने आगे व्याख्यायित किया है, 'कवि जब मानव मन के सहज, कृत्रिम, गतिशील, जटिल संवेगों का भाषा के जीवंत माध्यम के द्वारा शाब्दिक पुनर्निर्माण करता है तो उसे समीक्षा की आधुनिक प्रणाली में बिंब कहा जाता है।'
`और घने कोहरे में पिता की चाय के लिए
दूध खरीदने
नुक्कड़ की दुकान तक
अकेले चला जाता है
`और बहुत से यात्री एक दूसरे‌ के सामान‌ पर
सिर टिका कर
इस तरह सो रहे थे जैसे वो किसी का कंधा हो’

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केदारनाथ सिंह के लेखन का प्रभाव आज की पीढ़ी पर बखूबी देखा जाता है। उनके विचारों के बहुत से अंशों को उदधृत किया जाता है। 
`कवि‌ को लिखने के लिए कोरी स्लेट कभी नहीं मिलती है। जो स्लेट उसे मिलती है उस पर पहले से बहुत कुछ लिखा होता है। वह सिर्फ बीच की खाली जगह को भरता है। इस भरने की प्रक्रिया में ही रचना की संभावना छिपी हुई है।'
`कविता विचारहीन नहीं हो सकती, परंतु विचारात्मक प्रतिबद्धता को मैं कविता के लिए अनिवार्य नहीं मानता।'
‘ मुझे कई बार ऐसा लगता है कि पेड़ शायद आदमी का पहला घर हैं।' 
`अभिव्यक्ति के सारे माध्यम जहाँ निरस्त हो जाते हैं शब्द वहाँ भी जीवित रहता है।' हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को १९८९ में उनके काव्य-संग्रह `अकाल में सारस' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९९४ में मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान (म.प्र. सरकार), उनको भारत के सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार से २०१४ में सम्मानित किया गया। कुमारन आशान पुरस्कार, व्यास सम्मान, दयावती मोदी पुरस्कार सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त हुए।
गद्य साहित्य में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है। उनकी गद्य कृतियाँ हैं
‘कल्पना और छायावाद’
‘बिंब विधान का विकास’
‘कब्रिस्तान में पंचायत’
‘मेरे समय के बाद’
इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘ताना-बाना’ शीर्षक से भारत की विविध भाषाओं का हिंदी अनूदित काव्य संग्रह संपादित किया। उनके संपादन में ‘कविता दशक’, ‘शब्द’, ‘साखी’, आदि संग्रह भी प्रकाशित हुए। उनकी कविताओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, जर्मन, रूसी, स्पेनी सहित कई विदेशी भाषाओं में हुआ है।  

राजश्री बिष्ट 'रश्मिका'
ग्रेटर नोएडा, (उत्तर प्रदेश)    

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