भीष्म साहनी

Bhisham Sahni was one of the greatest storytellers and dramatists of modern Hindi literature. His works reflect deep human sensitivity, social realism, and progressive thought. Renowned for “Tamas”, “Kabira Khada Bazaar Mein”, and “Chief Ki Dawat”, he carried forward Premchand’s legacy. He was honored with the Sahitya Akademi Award, the Soviet Land Nehru Award, and the Padma Bhushan for his literary excellence.वर्ष १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में अनुवादक के रूप में कार्य किया, उन्होंने लगभग दो दर्जन रुसी किताबें जैसे टॉलस्टॉय, आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिन्दी में रुपांतरण किया है। वर्ष १९६५ से १९६७तक नयी कहानियां नामक पत्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अप्रâो-एशियायी लेखक संघ से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक साहित्य अकादमी के कार्यकारी समिति के सदस्य रहे ।

Oct 18, 2025 - 16:44
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भीष्म साहनी
Bhisham Sahni

बहु आयामी प्रतिभा के धनी भीष्म साहनी आधुनिक हिंदी साहित्य के महान रचनाकारों में से एक थे, जिन्होंने साहित्य जगत में अपना परचम फहराया। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनशीलता, सामाजिक व्यथा, यथार्थ और प्रगतिशील विचारों का समावेश है। भीष्म साहनी को हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। कथाकार  के रुप साहनी जी पर यशपाल  और प्रेमचंद जी की गहरी छाप है। लेखन से पहले उन्होंने अपनी  अंग्रेजी साहित्य  में एम.ए की डिग्री वर्ष १९३७में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से ली। विभाजन  के बाद उन्होंने भारत आकर वर्ष १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.की उपाधि हासिल की।
भारत विभाजन के पूर्व भीष्म साहनी जी शिक्षण  के साथ-साथ व्यापार भी करते थे। समाचार पत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (एप्टा) से जा मिले ।अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापन का कार्य किया। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली महाविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। वर्ष १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में अनुवादक के रूप में कार्य किया, उन्होंने लगभग दो दर्जन रुसी किताबें जैसे टॉलस्टॉय, आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिन्दी में रुपांतरण किया है। वर्ष १९६५ से १९६७तक नयी कहानियां नामक पत्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अप्रâो-एशियायी लेखक संघ से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक साहित्य अकादमी के कार्यकारी समिति के सदस्य रहे ।

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भीष्म साहनी जी का जन्म ८ अगस्त १९१५ को अविभाजित भारत के रावलपिंडी (जो अब पाकिस्तान में है) में श्री हरबंस लाल साहनी के घर पुत्र रुप में हुआ था।उनकी माँ का नाम लक्ष्मी देवी था। प्रसिद्ध अभिनेता बलराज साहनी भीष्म साहनी जी के बड़े भाई थे।
आपने `बलराज माय ब्रदर' आत्म कथा की रचना कर उसे अपने भाई बलराज  साहनी को समर्पित किया। सन १९४३ में श्रीमती शीला जी भीष्म जी की जीवन संगिनी बनी। विवाह से पूर्व शीला जी रावलपिंडी में डी.ए.वी कॉलेज में अंतिम वर्ष की छात्रा थी, वहीं पर भीष्म जी अंग्रेजी के अध्यापक थे। अंग्रेजी क्लास में पढ़ाते समय उनकी पहली मुलाकात शीला जी से हुई थी। शीला जी को उनकी अध्यापन शैली बहुत पसन्द आयी।२८ वर्ष की उम्र में उनका विवाह  शीला जी के साथ सम्पन्न  हुआ। भीष्म साहनी जी के पिता एक समाज सेवक थे,जिसका प्रभाव उन पर रहा। साहनी जी ऐसे साहित्यकार थे जो बात की सच्चाई और गहराई को नाप लेना भी उतना ही उचित समझते थे जितना अंकित करना। साहनी जी ने साधारण एवं व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग कर अपनी रचनाओं को जन मानस के निकट पहुँचा दिया। उन्होंने पूरी जीवन्तता और गतिमयता के साथ खुली और  फैली जिंदगी को अंकित किया है। एक शिल्पी के रूप में साहनी जी सिद्धहस्त कलाकार थे। कथा और वस्तु के प्रति यदि उनमें तत्परता और सजगता का भाव था तो शिल्प सौष्ठव  के प्रति भी निरंतर सावधानी रखते थे। भीष्म जी की सबसे बड़ी विशेषता थी, उन्होंने जिस जीवन को जिया, जिन संघर्षों को झेला, उसी का यथावत  चित्र अपनी रचनाओं में अंकित किया। यही कारण है उनके लिए रचना कर्म और जीवन धर्म में कोई भेद नहीं था। उन्होंने लेखन की सच्चाई को अपनी सच्चाई माना।

नीलम पाठक 
ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश

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