प्रेम भरी पाती
से ही पाती के नायक का सरनेम लिखने लगी थी । नेहा के दिल में अपने प्रेमी के लिए प्यार तो इतना था कि एक सुन्दर ललित निबंध लिखा जाए । वह अपने पाती के नायक अनुभव रोशन से प्रेम तो अनन्त करती थी, पर प्रेम का इजहार अपने पाती के नायक की ओर से चाहती थी । यह भी आइडिया सहेली रोमा का ही था । नेहा तो चाहती थी कि, वह अनुभव से हाले दिल व्या कर दे पर रोमा नहीं चाहती थी कि प्यार का इजहार पहले नेहा के द्वारा हो ।
नेहा रोज प्यार की पाती लिखती और कई-कई बार पढ़ती फिर कुछ जोड़ती, काटती फिर उस पाती को अपने हाथों में भींच कर दोनों हथेलियों के धर्षण से गेंद बनाकर खिड़की से बाहर बहते नाले में फेंक देती । पाती बहते बहते दूर निकल जाता । खिड़की से बहते पाती को देखकर वह मंद-मंद मुस्काती, कभी लज्जा से सिर झुका लेती । वह करीब छह माह से पाती लिख रही है । पर पाती पर अब तक वह अपने मन की बात न लिख पाई थी । उसकी सहेली रोमा उसके पाती वाली बात पर चिढ़ाती और रोमा उसे रोज नए-नए आइडिया भी देती । नेहा, रोमा की आइडिया ले रोज पाती लिखती । पाती की शुरुआत कभी वह डियर से करती कभी माई लव से करती । अंत में तुम्हारी प्रेम में नेहा रोशन लिखना न भूलती । नेहा का मूल नाम नेहा गुप्ता था । रोशन तो उसके पाती के नायक का सरनेम था । नेहा अभी
से ही पाती के नायक का सरनेम लिखने लगी थी । नेहा के दिल में अपने प्रेमी के लिए प्यार तो इतना था कि एक सुन्दर ललित निबंध लिखा जाए । वह अपने पाती के नायक अनुभव रोशन से प्रेम तो अनन्त करती थी, पर प्रेम का इजहार अपने पाती के नायक की ओर से चाहती थी । यह भी आइडिया सहेली रोमा का ही था । नेहा तो चाहती थी कि, वह अनुभव से हाले दिल व्या कर दे पर रोमा नहीं चाहती थी कि प्यार का इजहार पहले नेहा के द्वारा हो । वह जनना चाहती थी कि अनुभव के दिल में नेहा के लिए कितना प्यार है । वह अनुभव के प्यार को परखना चाहती थी । यह प्रेम-आग दोनों तरफ से समान रूप से लगी थी । दुविधा यह थी कि अनुभव भी चाहता था कि हाले दिल पहले नेहा कहे । इनकी प्रेम कहानी लिखते वक्त एक कहानी मुझे याद आ गई कि लखनऊ के नवाबों की गाडी पहले आप, पहले आप में छुट गई थी । कहीं ऐसा न हो कि इनकी प्रेम कहानी भी लखनऊ के नवाबों की तरह पहले आप, पहले आप में मिलन बिन्दु तक पहुँचते-पहुँचते कोई दूसरी होनी ना हो जाए । जैसे फिल्मों में देखने को मिलता है । नेहा, रोमा, अनुभव तीनों कला स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के प्रथम वर्ष के छात्र-छात्रा थे । नेहा और अनुभव का प्रथम मिलन हिन्दी की व्याख्यान कक्षा में हीं हुई थी । इस प्रेम कहानी की शुरुआत यहीं से हुई थी । इस प्रेम कहानी की आधारशिला यहीं पर रखी गई थी । हिन्दी में एक रस श्रृंगार रस भी आता है । अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य 'प्रिय प्रवास' का व्याख्या प्रो. डॉ . हरेराम सिंह द्वारा इतना लालित्य पूर्ण होता था कि दोनों इसकी कमनीयता के सागर में डूब जाते । दोनों एक दूसरे के सौन्दर्य को निहारने लगते । कभी प्रेम के छंद लिखते । दोनों काॅलेज के गार्डन में बैठ घंटों प्रिय प्रवास महाकाव्य के बिंब-विधान, भाषा शिल्प आदि पर चर्चा करते । इस चर्चा के माध्यम से दोनों अपनी-अपनी भावनाएं भी रखते । प्रेम शब्द से परे भाव की परिणति है और भाव तो शब्द सीमा में आता ही नहीं है । उसकी तो सीमा रेखा असीमित है । पहला मिलन दूसरा विछोह । प्रेम में मिलन और विछोह एक पारावार की तरह है । प्रेम दोनों ही दशाओं में परात्पर है । क्योंकि, दोनों प्रेम का ही अलग-अलग नाम है । दोनों एक दूसरे की शुरुआत में अपने प्रेम को छुपाया प्रेम की अग्नि में भभक रहे थें । एक दिन बाजार में अनुभव रोमा से मिला । वह रोमा को तीर बनाकर अपने लक्ष्य को साधना चाहता था । रोमा से, नेहा के बारे में अपने हृदय में उमड़ते प्रेम को वह रोमा को बता देना चाहता था, ताकि रोमा उसके मन की बात नेहा से कह सके । अनुभव ने बड़े अनुनय-विनय किया । पर, रोमा संवदिया बनने को तैयार न हुई । उसने अनुभव से कह -
"अपने और नेहा के प्रेम प्रसंग में मुझे बीच में ना लाव । तुम्हें प्यार है नेहा से तो तुम्हीं जा कर बताव । तुम्हारी सुविधा के लिए एक बात कहे देती हूँ । प्यार तो उसे भी है तुमसे, मगर शुरुआत वह तुम्ही से चाहती है ।"
रोमा की इस बात से वह रोमांचक से भर उठा । उसके रोम-रोम में अप्रत्याशित खुशी घुल गई । वह स्वयं को हवा में उड़ता हुआ महसूस कर रहा था । वह नेहा की मन की बात, उसकी सहेली रोमा से जानकर आनन्दित हो उठा था । उसके सारे संशय मिट गए । उसके और नेहा के बीच किन्तु, परन्तु जैसे शब्द का स्थान रिक्त हो गया । वह पूरे रास्ते कल्पनाओं में ही खोया रहा । उसका मन उससे अभी ही मिलकर दिल की सारी बात कह देना चाहता था । वह पूरी रात शब्दों को चुनता और सजाता रहा जैसे कोई योद्धा युद्ध में जाने से पहले अपने श्रेष्ठ वाण चुनता है । वह नेहा के प्रीत के रंग में डूबा प्रेम के पथ पर चला जा रहा था । उसके चारों तरफ आनन्द और उल्लास ही छाया था । क्षितिज से फूलों की वर्षा हो रही थी । चाँदनी रात उसे अपनी दुधिया रोशनी से नहला रही थी । तारें उसके बनाव, श्रृंगार में लगे थे । वह दूल्हे की भाँति दमक रहा था । यह ऐसा क्षण था जब मनुष्य अपना सर्वस्व अपने प्रेम पर लूटा देने को आतुर रहता है । यही जीवन का सच्चा आनंद है । प्रेम की शक्ति और प्रेम की भक्ति दोनों ही आदमी को नन्हा बालक बना देता है ।
हर निशा का अंत प्रात पर होता है । प्रात आशा की किरण लेकर आता है । जिसमें मनुष्य अपने अतीत से क्षिक्षा लेकर वत्तर्मान और भविष्य को सजाने का कार्य करता है । अनुभव आज समय से पहले ही काॅलेज के लिए घर निकल गया । उसका ध्यान तो केवल मंजिल पर था । रास्ता तो देख ही नहीं रहा था । काॅलेज के मुख्य द्वार पर वह खड़ा होकर नेहा की प्रतीक्षा करने लगा । कुछ देर इंतजार करने के उपरांत वह काॅलेज के गार्डन में जाकर बैठ गया । धीरे-धीरे लड़के-लड़कियों की भीड़ बढ़ने लगी । क्लास का समय भी हो गया था । सभी धीरे-धीरे क्लास में अपनी जगह पर बैठने लगे । वह भी बैठ गया, लेकिन क्लास में उसकी निगाहें सिर्फ नेहा गुप्ता को हीं खोज रही थी । वह कलम को बार-बार अपनी उँगलियों में नचाता फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखता । इंतजार की घड़िया बड़ी लम्बी होती है इसका एक कारण यह भी है कि हमारी निगाहें बार-बार घड़ी को ही निहारती है । इंतजार की घड़ियाँ खत्म हुई। नेहा क्लास में इन कर गई । आज वह पीले सूट में आयी थी । सूट की कोर पर लाल लैस की बाॅडर थी । बाॅडर पर सुनहले रंग के सितारे टंके थे । बीच-बीच में लटकने भी टकी थी । जो चलने पर सितार की ध्वनि-सी झंकृत हो रही थी । बाल खुले हुए थे । उसके लंबे काले बाल, काले मेध की घटा-सी जान पड़ती थी । उसकी काली आँखें प्रेम की प्रतिमूर्ति बनी चमक रही थी । वह आकर अनुभव के आगे वाले बेंच पर बैठ गई, शशिकला के ठीक बगल में और अनुभव के ठीक पीछे । क्लास प्रारम्भ होकर खत्म भी हो गया पर अनुभव उसके खुले केश ही निहारता रह गया । वह भीतर ही भीतर साहस जुटाने की कोशिश करता । जब सभी उठकर जाने लगे तो चुपके से अनुभव ने कागज़ का एक टुकड़ा उसके हाथ में पकड़ा दिया । वह उस कागज़ को अपने दुपट्टे की ओट में छुपकर नज़रे झुका पढ़ने लगी । उसमें लिखा था -
"मैं तुम से बहुत प्रेम करता हूँ, क्या तुम भी मुझसे उतना ही प्रेम करती हो । यदि, हाँ तो काॅलेज के गार्डन में संध्या तीन बजे मुझसे मिलना …
तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा
अनुभव रोशन "
नेहा ने घड़ी की ओर देखा अभी ढेड़ बजे थे । नेहा सोचने लगी कि यह बात रोमा को बताए या न बताए । बहुत विचार करने के उपरांत उसने निर्णय लिया कि मेरे और अनुभव के बीच रोमा का क्या काम । नेहा ढ़ाई बजे ही गार्डन में जाकर बैठ गई और अनुभव से अपने हाले दिल सुनाने की तैयारी करने लगी । जैसे परीक्षा के समय परीक्षार्थी अपना पूरा ध्यान पेपर पर लगाए रखता है ठीक, नेहा की भी यही दशा थी । ठीक तीन बजे अनुभव गार्डन में आया । नेहा को वहाँ बैठा देख खुशी से भर उठा । दोनों कभी नज़रे मिलाते कभी नज़रे झुकाते । फिर नेहा ने उसका हाथ कस के पकड़ लिया । नेहा का हाथ अपने हाथ में देख अनुभव प्रेम उदबोधन से भर गया । उसने अपनी सारी मन की बात एक ही सांस में कह डाली और नेहा को अपने आलिंगन-पाश में जकड़ लिया । नेहा उसका आलिंगन पाकर तृप्ति के सागर में डूब गई । उसके प्रेम भरी पाती पर उसका प्रेमी अपने नाम का हस्ताक्षर कर दिया था । प्रेमी का हस्ताक्षर पाकर नेहा सौन्दर्य-बोध में नहाई अपने श्रृंगार में भास्वर दिखाई पड़ रही थी ।
अभिषेक कुमार अभ्यागत
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