मुर्ख बूढ़े किसान की नवयुवती
युवती तो यह शब्द सुनते ही मनो उसके मन में न जाने कितने अरमान उसके दिल गोते खा रहे थे और खड़ी –खड़ी सपने भी देखने लगी थी उस बहरूपिए के साथ रहने की | वह बोली, “यदि ऐसी ही बात है तो मेरे बूढ़े पति के पास बहुत-सा धन है, वह वृद्धावस्था के कारण वह हिलडुल नहीं सकता। मै भी उसके साथ खुश नहीं हू |हमे अपना जीवन सुखमय करने के लिए रुपये की जरुरत पड़ेगी तुम यही रुको मैं अपने पति के पास धन लेकर आती हू ताकि हम अपना जीवन सुखमय से बिता सके और हमारा आने वाला भविष्य भी अच्छे से बीते |”
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सुल्तापुर गाँव में बूढ़ा किसान और उसकी नवयुवती पत्नी रहा करते थे। किसान तो बूढ़ा हो गया था लेकिन उसकी पत्नी सुंदर युवती थी। वह अपने पति से संतुष्ट न रहने के कारण बुढा किसान की पत्नी सदा दुसरे पुरुष की खोज में रहती थी, और उन पर वह जल्द आकर्षित भी हो जाती थी इस कारण एक क्षण भी घर में वह नहीं ठहरती थी।
एक दिन उसे एक बहरूपिया मिला जो ऐसी औरतो का फायदा उठता था | उसने बूढ़े किसान की औरत का पीछा करना शुरू कर दिया और उसकी सभी हरकतों पर ध्यान देने लगा की वह क्या करती है और मैं इसका कैसे फायदा उठा सकता हु |
एक दिन उसने उसका पीछा किया और जब देखा कि वह एकान्त में पहुँच गई तो उसके सामने जाकर बहुरुपिए ने कहा “देखो, मेरी पत्नी इस दुनिया में अब नहीं रही मैं कई दिनों से तुम्हे देख रहा हू |तुम्हारे तरफ मैं काफी आकर्षित हो रहा हू क्या तुम मेरे साथ चल सकती हो मेरे साथ रहो | मैं तुम्हे पसंद करने लगा हू |”
युवती तो यह शब्द सुनते ही मनो उसके मन में न जाने कितने अरमान उसके दिल गोते खा रहे थे और खड़ी –खड़ी सपने भी देखने लगी थी उस बहरूपिए के साथ रहने की | वह बोली, “यदि ऐसी ही बात है तो मेरे बूढ़े पति के पास बहुत-सा धन है, वह वृद्धावस्था के कारण वह हिलडुल नहीं सकता। मै भी उसके साथ खुश नहीं हू |हमे अपना जीवन सुखमय करने के लिए रुपये की जरुरत पड़ेगी तुम यही रुको मैं अपने पति के पास धन लेकर आती हू ताकि हम अपना जीवन सुखमय से बिता सके और हमारा आने वाला भविष्य भी अच्छे से बीते |”
बहुरुपिए ने युवती की बात सुनकर मन ही मन काफी कुश हो गया अरे वाह !वह जो चाहता था अब वो कार्य जल्द सफल हो जायेगा और युवती की मुर्खता पर मन ही मन खुश हो रहा था |उसने युवती से गहरी साँस भरते हुए कहा “ठीक है जाओ कल सुबह इसी जगह पर मिलना मैं तुम्हरा यही इन्जार करूंगा |”
इस प्रकार उस दिन वह बुढा किसान की पत्नी अपने घर लौट आई । रात होने पर जब उसका पति सो गया, तो उसने अपने पति का सारा धन और सोने के जेवर उसे लेकर प्रातःकाल उस जगह पर जा पहुंची जहां पर बहुरुपिए ने मिलने के लिए कहा था ।जब वहा पहुंची तो उसने देखा की बहुरुपिए तो पहले से वही पर खड़ा था |उसे देख कर काफी खुश हुई और दोनों वहां से चल दिए। दोनों अपने गाँव से बहुत दूर निकल आए थे|
गाँव के रस्ते से जाकर वे जंगल के रास्ते से निकलना चाहते थे कि गाँव का कोई व्यक्ति उन्हें न देख ले किसी को उस युवती पर कोई शक न करे और ऐसा न लगे बुढा आदमी ठग लिया गया है |जंगल का रास्ता काफी डरावना भी लग रहा था परन्तु शहर की तरफ जाने का यह छोटा रास्ता भी था |
उस समय उस बहुरुपिए के मन में विचार आया “कि इस युवती को अपने साथ ले जाकर मैं क्या करूंगा जो अपने पति की न हुई वह मेरा क्या साथ देगी एक दिन मेरे साथ भी ऐसा धोखेबाजी करेगी ऐसी युवती किसी की पत्नी नहीं बन सकती यह सब बहुरुपिए अपने मन में सोच रहा था ,और फिर इसको खोजता हुआ कोई मेरे पीछे आ गया तो मैं फंस सकता हूँ वैसे भी इसके साथ जाना संकट ही है। अतः किसी प्रकार इससे सारा धन हथियाकर अपना पिण्ड इससे छुड़ा लेना चाहिए। यह सब सोच विचार कर बहुरुपिए ने कहा, “देखो जंगल बहुत घना है और डरावना भी यहाँ जानवर ,साँप ,बिच्छू सब घूमते रहते है | तुम एक काम करो यह गठरी तुम मुझे दे दो मई इसे अपने कमर से बांध लेता हूँ और तुम आराम से मेरा हाथ पकड़ के चलो | पागल युवती बहुरुपिए की मंशा बिना समझे गठरी उसे थमा दी | लेकिन अभी भी कुछ जेवर युवती ने पहने हुए थे वह भी उसे निकलवाने थे |
उसने फिर युवती से कहा “ देखो यह जंगल है और तुमने इतने जेवर अपने शरीर पर डाले हो कोई डाकू या चोर आ गया तो वह सब हमसे ले लेगा यह भी उतारकर इसमें रख दो |
मुर्ख युवती ने कहा “ठीक है, ऐसा ही करो।” बुढा किसान की पत्नी ने अपनी गठरी उसे पकड़ाई बहुरुपिए को सारा जेवर उतार कर दे देती है | रात काफी हो जाती है चलते – चलते तो बहुरुपिए बोला, “ थोडा देर हम यही पर एक पेड़ के नीचे आराम कर लेते है क्या कहती हो |युवती भी चलते –चलते थक चुकी थी तो वह गहरी साँस भरते हुई बोली “ठीक है थोडा आराम कर लेते है |” एक कपड़ा बिछाकर दोनों पेड़ के नीचे बैठ जाते है युवती थक गई थी उसे भूख भी लगी थी यह बहुरुपिए जान गया था और वह यही मौके के तलाश में था उसने युवती हालत देखि तो उससे बोला “प्रिये तुम काफी थक गई हो मुझे लग रहा है तुम्हे भूख भी लगी है तुम यही बैठी रहो मई आस – पास में देखता हूँ कुछ फल मिल जाये तो तुम्हारे लिए लेकर आता हूँ तुम भूखी रहो यह मुझे अच्छा नहीं लग रहा है |” अपने लिए कितनी चिंता और प्रेम देख कर युवती ने कहा “हां प्रिये भूख लगी तो है लेकिन इस जंगल में तुम्हे कहा कुछ मिलेगा जाने दो मैं एक दिन भूखी रह लुंगी |भोर होते ही हम इस जंगल से निकल जायेंगे तो शहर जाकर खूब खायेंगे तुम मेरी चिंता मत करो |”
बहुरुपिए को अपना इतना किया कराया कार्य ख़राब नहीं करना था उसने कहा नहीं ....नहीं मैं तुम्हारे साथ हर जन्म में रहना चाहता हूँ तुम मेरे लिए कितनी महत्त्व रखती हो यह तुम्हे नहीं पता है | मैं अभी गया और अभी कुछ तुम्हारे लिए खाने को लाता हूँ तुम मेरा यही इन्जार करना |” अपने लिए इतना अगाध प्रेम देख कर युवती ने कहा “ठीक है जाओ संभल कर और जल्दी आना |”
बहुरुपिए ने कहा “तुम व्यर्थ में मेरी चिंता करती हो|” और उसके माथे को चुमते हुए वहां से चल देता है और यह मुर्ख युवती उसके प्रेम में खो जाती है और उस बहुरुपिए के बारे में सोचते –सोचते कब उसे नींद लग जाती है उसे पता ही नहीं चलता है |
दुसरे दिन जब पक्षियों के शोर आकाश में सुनाई देता है और देखती है सुबह हो गई लेकिन वह बहुरुपिए आया नहीं तब वह सब समझ गई अब वह औरत अपने कुकृत्यों के कारण कहीं की नहीं रही।इस कहानी से यह सिख मिलती है जैसा बोओगे वैसा पाओगे.
डॉ. निशा सतीश चन्द्र मिश्रा, मुंबई
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