बचपन की बारिशें

This nostalgic Hindi story recalls the writer’s childhood memories of monsoon — the joy of getting drenched, a thrilling encounter with a snake, and the warmth of a mother’s love. “Childhood Rains” beautifully captures innocence, freedom, and the magic of growing up in the 1980s, reminding us that rains are still here, but childhood is gone.बचपन की यादें, बचपन की बारिश, हिन्दी कहानी, बारिश की कहानी, संस्मरण, बचपन की घटना, भावनात्मक कहानी, माँ और बेटी की कहानी, बाल्यकाल की यादें, पुरानी यादें, हिंदी साहित्य, बारिश में भीगना

Oct 23, 2025 - 15:45
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बचपन की बारिशें
rains of childhood

मैं जब भी अपने बचपन को याद करती हूँ,रोमांचित हो जाती हूँ। खासकर बचपन की बारिशें, इनको याद कर मैं आज भी खुद को भूल जाती हूँ। बचपन में बारिशों का इंतजार करना,बारिशों में भीगना फिर माँ से डाँट खाना,आज तो सब ख्वाब सा लगता है। वह भी अगर शनिवार को बारिश हो तो मेरी खुशी बचपन में दुगनी हो जाती थी क्योंकि सप्ताह का अंतिम दिन अगर कपड़े गीला भी हो जाए तो चिंता की कोई बात नहीं होती थी।
आज मुझे बारिश के मौसम की एक घटना की याद आ रही है जिस पर मैं अब भी विश्वास नहीं कर पाती हूँ। १९८० की घटना है,मैं ८ वीं क्लास में पढ़ती थी। शनिवार का दिन था। मैं विद्यालय गई थी,दो बजे दोपहर से बारिश शुरू हो गई थी,हमारे विद्यालय की छुट्टी चार बजे से होती थी। अंतिम पीरियड चल रहा था,मैं कक्षा में बैठी सोच रही थी, हे इंद्र भगवान,बारिश मत रोकना,बरसाते रहना ताकि मैं भीग सकूँ।' इंद्र भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली और बारिश नहीं रुकी। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैं भीगती हुई घर की ओर चल दी। जहाँ गड्ढे में पानी ज्यादा होता था मैं वहीं जाकर कूदने लगती थी। स्कूल यूनिफॉर्म,जूता मोजा सब गीला हो गया था। मेरे यूनिफॉर्म का पैंट चौडी मोहड़ी का था। मेरा दाहिना पैर का पैंट गीला होने के कारण ज्यादा भारी लग रहा था और मुझे असहज महसूस हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरे दाहिने पैर को किसी रस्सी से जकड़ लिया हो। मुझे बहुत गुस्सा आया और बिना देखे हुए मैंने जोर से अपने पैर को झटका दिया। क्या देखती हूँ कि एक बड़ा मोटा सा साँप मेरे पैर से थोड़ी दूर पर अलग हो गिर पड़ा। मैं घबराई नहीं,बस मौन होकर वहीं खड़ी हो गई। मेरे सारे दोस्त घबराकर वहाँ से भाग गए,लेकिन मैं मस्ती से भीगती हुई घर पहुँची।

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इधर घर में तूफान मचा हुआ था,जिसे देखकर उत्साह मेरा रफू चक्कर हो गया था। मेरी एक सहेली मुझसे पहले मेरे घर पहुँचकर माँ को सारी बात बता दी थी। मैं जैसे घर पहुँची माँ बोलना शुरू की,'यह लड़की तो मुझे जिंदा ही मार देगी जितना भी समझाओ कि मत भीगो लेकिन मानती कहाँ है,साँप के साथ भींगती है,कहीं काटा तो नहीं,दिखाओ।' माँ ने मेरे पैर को देखा फिर गोल मिर्च खाने को दिया। मुझे गोल मिर्च तीखी ही लग रही थी। फिर माँ ने साँप के विष को झाड़ने वाले एक भगत जी को बुलवाया। भगत जी बोले,' साँप नहीं काटा है फिर भी मैं एक मंत्र पढ़ कर इसे एकदम सुरक्षित कर दूँगा।' भगत जी ने एक पीतल की थाली में रेत डालकर मेरे पीठ पर रखे और मंत्र पढ़ने लगे। इस तरह साँप का विष झाड़ा गया।
एक राज की बात बताऊँ,उस समय मुझे साँप से बिल्कुल डर नहीं लगा था जितना मैं आज साँप से डरती हूँ।उस घटना के बाद भी मैं बारिश में भीगा करती थी। चाहे बीमार पड़ूँ पर बारिश में भीगना मुझे बहुत ही अच्छा लगता था। जब भी मैं बचपन की बारिशों को याद करती हूँ आज भी खुद को तरो ताजा महसूस करती हूँ। काश वो बचपन फिर से लौट आता और बचपन की बारिशें हमें स्निग्ध शीतलता प्रदान करती। बारिशें तो आज भी हैं पर बचपन नहीं है।

मनोरमा शर्मा मनु
हैदराबाद, तेलंगाना

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