मेरी पहचान
इस समाज की खातिर अबला, होती है बदनाम भला क्यों ?
एक साल में इक दिन मिलता,
नारी को सम्मान भला क्यों ?
हम ही देने से कतराते,
हर दिन उसको मान भला क्यों ?
रोज़ कुचलते उसकी इज़्ज़त,
करते लहूलुहान भला क्यों?
इस समाज की खातिर अबला,
होती है बदनाम भला क्यों ?
दर्जा देवी, फ़िर भी उसको,
न समझे इंसान भला क्यों ?
जननी के आगे ही मानव,
बन बैठा शैतान भला क्यों ?
ज्ञान और शक्ति की मूरत,
को ही देते ज्ञान भला क्यों ?
उसके अपने ही करते हैं,
उसका ही अपमान भला क्यों ?
सारे फ़र्ज़ उसी के हिस्से,
इस से भी अंजान भला क्यों ?
कुछ खोई सी, कुछ पाई सी,
औरत की पहचान भला क्यों ?
कहकशां
What's Your Reaction?