वसुंधरा को मान दे

धरा झुलस रही है और ये धूसरित अकाश है। मनुज के कर्मफल हैं ये, या प्रकृति उदास है?

Mar 13, 2024 - 12:40
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वसुंधरा को मान दे
BARISH
विकास है? 
विनाश है?
के तम है 
या प्रकाश है?
धरा झुलस रही है और
ये धूसरित अकाश है।
मनुज के कर्मफल हैं ये,
या प्रकृति उदास है?
या और और और और
और की ये प्यास है?
रुकेगा कब ये कारवां?
थमेंगी कब ये आंधियां?
के नष्ट कर के यह धरा,
मनुष्य जाएगा कहाँ?
सम्भल सम्भल सम्भल अभी,
न खेल तू प्रकृति से ही।
वसुंधरा को मान दे,
वजूद है तेरा यही।
वसुंधरा को मान दे,
वजूद है तेरा यही।
मुकेश जोशी 'भारद्वाज'

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