घिर गए
बस्ती में आ के तेरी वबालों में घिर गए। हम बे सबब ही कितने सवालों में घिर गए।।
बस्ती में आ के तेरी वबालों में घिर गए।
हम बे सबब ही कितने सवालों में घिर गए।।
पूछो ना हमसे क्या हुआ दिल टूटने के बाद।
होते ही शाम हम तो पियालों में घिर गए।।
इंसान बन के उतरे थे हम तो जमीन पे।
क्यूँ दैर में हरम में शिवालों में घिर गए।।
दिल की नज़र ने कर दिया ऐसा कमाल कुछ।
दिल के बुझे चराग़ उजालों में घिर गए।।
खुशियां मना सका न मैं मंज़िल को छू के भी।
ऐसे थके कदम मेरे- छालों में घिर गए।।
देखा जो हमने चांद उतरते तालाब में।
हम यार बस तिरे ही खय़ालों में घिर गए।।
जब तक ज़मीं पे थे तो सुकूँ था ऐ वन्दना।
छूकर बुलन्दियों को रिसालों में घिर गए।।
वंदना मोदी गोयल
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