जलता चला गया
शिकायत बहुत थी जिंदगी से, पर बताता किसको? हर शख्स मुझे देखकर, बचता चला गया।
दीप था,रोशनी के लिए जलता चला गया,
हटा कर कांटे,राह के, चलता चला गया।
शिकायत बहुत थी जिंदगी से, पर बताता किसको?
हर शख्स मुझे देखकर, बचता चला गया।
जो मुझसे हर सवाल का जवाब चाहता था,
पूछा एक सवाल तो वो हँसता चला गया।
जमाने का ये सितम आखरी होगा,अब तो,
सोचकर,हर सितम यूँ ही सहता चला गया।
जो सुनने आया था दर्द मेरा,वो भी,
मेरी न सुनकर,दर्द अपना कहता चला गया।
उगते ही,वो समझ बैठा था सबकुछ खुद को,
आते ही रात,फिर ढलता चला गया।
जब दूर थे उनके कद्रदान थे हम भी,
बढ़ी नजदीकियां तो फासला बढ़ता चला गया।
रमेश सेमवाल
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