Hindi Poetry | Woman Freedom | किस बात की अबला है तूं

किस बात की अबला है तूं हौंसले प्रतन्च चढ़ा बौद्धिक ढंकार भर

Sep 1, 2024 - 15:12
Sep 5, 2024 - 14:41
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Hindi Poetry | Woman Freedom | किस बात की अबला है तूं
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किस बात की अबला है
तूं हौंसले प्रतन्च चढ़ा
बौद्धिक ढंकार भर
सामाजिक बेड़ियों को भेदकर
नव भारत की ताज सजा।

वाद-संवाद हैं तेरे सबल
तूं सब स्नेह भाव की मूरत है
फिर किस बेड़ियों में बधना है
तूं तोड़ , रूढ़ता का जटिल संजाल
जो तेरे पांव के काँटे हैं।
इस मन्तव्य से तूं,
नव भारत की ताज सजा।।

आत्म दीप की प्रतिमा है
तूं प्रेम भाव में उज्ज्वल है
फिर किस अंधकार में फँसना है
तूं उठ , दमन कर पुरूष मानसिकता को
तुम्हें अपना भविष्य बनाना है।
सरपट दौड़ लगा तूं,
नव भारत की ताज सजा।।।

वाद विवाद हैं तेरे सबल
हौंसले चित्रकार लिया
रँगविरंगे प्रसंचित मुख पर,
सतरंगी परमान लिया
तूं हौसले बुलंद कर
नव भारत की ताज सजा।।

साहस कर ,तूं आगे बढ़
हम जैसे कुछ साथ हैं
बन परिंदा ,फैला पंख को
यह आंसमा तेरा है
इस हौसले से,इस जगत में
नव भारत की ताज सजा।।

शैलेश यादव   

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