नारी की अभिलाषा
महिला बिन पुरुषों का अस्तित्व भला नज़र कहीं आता है
मिले सदैव सम्मान, समादर ये रमणी की आशा है,
बंदिनी रूप से मुक्ति पाना, हर नारी की अभिलाषा है।
रस्म वास्ता देकर के हर जगह झुकाना ठीक नहीं,
कुल मर्यादा शूली पर, जबरन का चढ़ाना ठीक नहीं
नर की तुलना में नारी को, क्यों कमतर आंका जाता है ?
बंदिनी रूप से मुक्ति पाना, हर नारी की अभिलाषा है
अप्रबल,निरीह, दम्य समझ
दोयम का दर्जा देते हैं
न जाने वनिता को सब अधीनस्थ समझ क्यों लेते हैं
महिला बिन पुरुषों का अस्तित्व भला नज़र कहीं आता है
बंदिनी रूप से
कदम-कदम पर आकर के विराम चिह्न लगाते हो,
और शब्दों से लक्ष्मी, अम्बा का अवतार बताते हो
दुराचरण को देखकर होती बहुत निराशा है
बंदिनी रूप से मुक्ति पाना हर नारी की अभिलाषा है
शालिनी सिंह सूर्य
What's Your Reaction?