दोषी तुम नहीं थे
प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया जितना जाल में फंसी मछली के हिस्से जीवन
पूरे अधिकार के साथ छलता रहा बरसों तक
भरोसे की गठरी रीतती गई
फिर भी क्षमा का दान मै क्यों देती गई ?
प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया
जितना जाल में फंसी मछली के हिस्से जीवन
रातें मेरी उम्र से भी लंबी होती गई
बिस्तरों पर सिलवटों की गिनती कम और
देह पर जख्म़ों का गणित अधिक आया मेरे हिस्से
मेरा घर घर नहीं था एक मकान था
जहाँ बेमानी की मक्खियाँ भिनभिनाती थीं
आज सोचती हूँ दहलीज पार करना
इतना कठिन था क्या उन दिनों ?
हाँ बाहर पितृसत्ता का वृक्ष इतना घना था
कि उसके साये में पौधे का पनपना असंभव था
एक दिन मैंने दुपट्टे में बाँधी
सपनों की गाँठे खोल दीं
एक कोमल सा जुगनू अपनी हथेलियों पर रख
अपने सफर की शुरुआत कर दी
आज इतने लंबे सफर के बाद लगता है
दोषी तुम नहीं थे वे थे दोषी
जिन्होंने बेदखल कर दिया
मुझे गर्भनाल की जमी से
दोष उन कक्षाओं के सीख का भी था
जहाँ यह सिखाया नहीं कभी
कहानी का राजकुमार केवल प्यार ही नहीं
बेइमानी भी करता है कभी कभी
सरिता एम सेल
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