दोषी तुम नहीं थे

प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया जितना जाल में फंसी मछली के हिस्से जीवन

Apr 17, 2024 - 15:27
 0  20
दोषी तुम नहीं थे
guilty

पूरे अधिकार के साथ छलता रहा बरसों तक
भरोसे की गठरी रीतती गई
फिर भी क्षमा का दान मै क्यों देती  गई  ?

प्रेम मेरे हिस्से उतना ही आया
जितना जाल में फंसी मछली के हिस्से जीवन

रातें मेरी उम्र से भी लंबी होती गई
बिस्तरों पर सिलवटों की गिनती कम और
देह पर जख्म़ों का गणित अधिक आया मेरे हिस्से

मेरा घर घर नहीं था एक मकान था
जहाँ बेमानी की मक्खियाँ भिनभिनाती थीं
आज सोचती हूँ दहलीज पार करना
इतना कठिन था क्या उन दिनों  ?
हाँ बाहर पितृसत्ता का वृक्ष  इतना घना था
कि उसके साये में पौधे का पनपना असंभव था

एक दिन मैंने दुपट्टे में बाँधी
सपनों की गाँठे खोल दीं
एक कोमल सा जुगनू अपनी हथेलियों पर रख
अपने सफर की शुरुआत कर दी

आज इतने लंबे सफर के बाद लगता है
दोषी तुम नहीं थे वे थे दोषी
जिन्होंने  बेदखल कर दिया
मुझे गर्भनाल की जमी से

दोष उन कक्षाओं के सीख का भी था
जहाँ यह सिखाया नहीं कभी
कहानी का राजकुमार केवल प्यार ही नहीं
बेइमानी भी करता है कभी कभी

सरिता एम सेल

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow