नरसी मेहता के चुने हुए भजनों का हिंदी अनुवाद

Jun 19, 2024 - 14:30
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स्वतंत्रता के इस अमृत काल में जब साहित्यनामा पत्रिका ने स्वतंत्रता पर विशेष अंक निकालने का निर्णय किया तो
मैंने भी विचार किया कि इसी पृष्ठभूमि पर मैं अनुदित रचना आपके समक्ष लेकर आऊँ । इस बार मैं लेकर आई हूँ
भक्तिकाल के कृष्ण भक्त कवि नरसी मेहता के गुजराती में कहे कुछ भजनों का हिंदी में भावपूर्ण अनुवाद । नरसी
मेहता को चुनने का एक कारण यह था कि उनका एक गुजराती भजन “वैष्णो जन तो तैने कहिये, जे पीड़ परायी
जाणे रे” गाँधी जी को बहुत ही प्रिय था। नरसी मेहता गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम कवि थे। नरसी मेहता
को 'नरसिंह मेहता' या 'नरसी भगत' (1414-1481) के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें एक भक्त और वैष्णव कविता
के प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है । उनके कृतित्व और व्यक्तित्व की महत्ता के अनुरूप साहित्य के इतिहास
ग्रंथों में "नरसिंह-मीरा-युग" नाम से एक स्वतंत्र काव्य काल का निर्धारण किया गया है, जिसकी मुख्य विशेषता
भावप्रवण कृष्ण की भक्ति से अनुप्रेरित पदों का निर्माण है। नरसिंह मेहता ने कृष्ण और उनकी लीलाओं पर
आधारित मर्मस्पर्शी भजनों की रचना की और उनका गायन किया । पदप्रणेता के रूप में गुजराती साहित्य में नरसी
का लगभग वही स्थान है जो हिन्दी में महाकवि सूरदास का है। ऐसा माना जाता है नरसी मेहता ने एक हज़ार से
भी ज्यादा भजनों की रचना की जिन्हें बाद में पुस्तकों में संग्रहित किया गया जैसे सुरत संग्राम, गोविंद गमन, चातुरी
छब्बीसी, चातुरी षोडशी, दाणलीला, सुदामाचरित, रास सहस्त्रपदी, श्रृंगारमाला, बाललीला इत्यादि।
मैंने उनके चार भजनों को अनुवाद के लिए चुना है और जिसमें गाँधी जी का प्रिय भजन भी सम्मिलित है। मैंने
प्रयास किया है कि अनुवाद करते समय उसकी गेयता भी लगभग वैसी ही बनी रहे। आप इन्हें पढ़िए, गाइये और
अपनी प्रतिक्रिया दीजिये।

1. વૈષ્ણવ જન તો તેને કહિયે, જે પીડ પરાઈ જાણે રે
પર દુ:ખે ઉપકાર કરે તો યે મન અભિમાન ના આણે રે...
हरि प्रिय जन तो उसको कहिए, जो पीर पराई जाने रे
दुख दूजों के दूर करें, पर मन में गुमान न लाए रे
सकल विश्व में सबको पूजे, न निंदा करे किसी की रे
मन कर्म वचन को निश्चल रखे, धन-धन जननी उसकी रे
हरि प्रिय जन तो उसको कहिए, जो पीर पराई जाने रे
दुख दूजों के दूर करें, पर मन में गुमान न लाए रे
समदर्शी और तृष्णा त्यागी, माने परस्त्री को मात रे
जिव्ह्या से असत्य न बोले, नहिं डाले परधन हाथ रे

हरि प्रिय जन तो उसको कहिए, जो पीर पराई जाने रे
दुख दूजों के दूर करें, पर मन में गुमान न लाए रे
मोह माया जिसे छू न सके, दृढ़ वैराग्य जिसके मन में रे
राम नाम की लगन हो जिसको, सकल तीरथ उसके तन में रे
हरि प्रिय जन तो उसको कहिए, जो पीर पराई जाने रे
दुख दूजों के दूर करें, पर मन में गुमान न लाए रे
लोभ कपट से रहित है जो, काम क्रोध पर विजयी रे
नरसय्या करे दर्शन उसके जो, कुल इकहत्तर तर जाते रे
हरि प्रिय जन तो उसको कहिए, जो पीर पराई जाने रे
दुख दूजों के दूर करें, पर मन में गुमान न लाए रे

2. જશોદા ! તારા કાનુડાને સાદ કરીને વાર રે;
આવડી ધૂમ મચાવે વ્રજમાં, નહિ કોઈ પૂછણહાર રે...

यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे
इतनी धूम मचाए बिरज में, नहि कोई पूछनहार रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

छींका तोड़ा, गोरस बिखराया, खोल कर किवाड़ रे
माखन खाया और छितराया, पर बताया तुम्हें इस बार रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

ताका-झांकी करता चले, डरे नहीं एक बार रे
दही बिलौनी मटकी फोड़ी, ऐसा कैसा लाड़ रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

बार-बार कहती हूं तुमसे, अब नहीं रखूंगी मान रे
रोज-रोज कितना सहे, रहना तो है इसी गाम रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

मेरा कान्हा तो घर में ही था बाहर दिखा कहाँ पर रे
दूध दही से घर भरा हुआ है, चखता नहीं कोई बार रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

चीखती चिल्लाती हुई दस बारह, क्यों आयीं रे
नरसैयां का स्वामी सच है, झूठी ब्रज की नारी रे
यशोदा तेरे कान्हा को आवाज दे के रोक रे

3. નાગર નંદજીના લાલ ! રાસ રમંતાં મારી નથણી ખોવાણી.
કાના ! જડી હોય તો આલ, રાસ રમંતાં મારી નથણી ખોવાણી...

नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई
मिली होय तो दई दे कान्हा रास करत मारी नथनी हेराई
नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई
नन्हीं सी नथनी में जडा है हीरा, नथनी लौटा दे सुभद्रा के वीरा
नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई
नन्हीं पहनूं तो नाक पे न सुहाय बड़ी पहनूं तो मुख पे झूल जाय
नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई
वृंदावन की कुंज गली में बोल रहे हैं मोर राधे की नथनी का तो श्यामल ही है चोर
नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई

नथनी दई दे मेरे नन्द कुमार, ऐसे नरसैया के प्रभु पर जाऊं बलिहार
नागर नन्द जी के लाल रास करत मारी नथनी हेराई

4. ચાલો સખી! વૃંદાવન જઈએ, જિહાં ગોવિંદ ખેલે હોળી;
નટવર વેશ ધર્યો નંદ નંદન, મળી મહાવન ટોળી...
चालो सखी वृंदावन चलिए, जहां गोविंद खेलें होली
नटवर रूप धरे नंदनंदन, मिल के महावन टोली
चालो सखी वृंदावन चलिए, जहां गोविंद खेलें होली
एक नाचे एक चंग बजाए, छिड़के केसर घोली
एक अबीर गुलाल उड़ाए, एक गाय रंभाये भोली
चालो सखी वृंदावन चलिए, जहां गोविंद खेलें होली
एक दूजे से करे छेड़खानी, हंस हंस कर दें ताली
मन ही मन में वो मुसकाएं, बीच खेले वनमाली
चालो सखी वृंदावन चलिए, जहां गोविंद खेलें होली
वसंत ऋतु वृंदावन पसरी, फगुनाया फागुन मास
गोविंद गोपियां खेलें रंग भर-भर, देखे नरसाइयों दास
चालो सखी वृंदावन चलिए, जहां गोविंद खेलें होली

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