राष्ट्र ध्वज केवल एक कपड़े का टुकड़ा नहीं होता, बल्कि वह राष्ट्र की आत्मा, उसकी पहचान और उसके सार्वभौमिक गौरव का प्रतीक होता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज भी भारत की जनता की भावनाओं और आशाओं का प्रतिरूप है। यह हम सब के मानस में एक अद्वितीय और विशेष स्थान रखता है। भारत का तिरंगा, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरा रंग तथा केंद्र में अशोक चक्र समाहित है, स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक भारतीय अस्मिता का प्रतिनिधित्व करता आया है। इसी राष्ट्रीय प्रतीक की गरिमा और उपयोग से संबंधित दिशा-निर्देशों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने हेतु २६ जनवरी २००२ को भारतीय झंडा संहिता, २००२ (इत्aु ण्द दf घ्ह्ग्a, २००२) लागू की गई। गौरतलब है कि राष्ट्रीय झंडे के लिए सभी के मन में प्रेम, आदर और निष्ठा है फिर भी, राष्ट्रीय झंडे को फहराने के बारे में कानून, प्रथाओं तथा परम्पराओं की जानकारी का अभाव देखने में आया है। यह अभाव न केवल लोगों में बल्कि सरकारी संगठनों, एजेंसियों में भी पाया गया है। सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए गैर-सांविधिक निर्देशों के अतिरक्ति, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का ध्वजारोहण राष्ट्रीय झंडे का प्रदर्शन, संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग का निवारण) अधिनियम, १९५० (१९५० का सं० १२) और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, १९७१ (१९७१ का सं० ६९) के उपबंधों द्वारा नियंत्रित होता। भारतीय झंडा संहिता, २००२ में उक्त दोनों अधिनियमों में दिए गए उपबंधों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। झंडा संहिता का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के हर नागरिक को तिरंगे को फहराने का अधिकार मिले, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि उसका उपयोग गरिमा, सम्मान और मर्यादा के साथ किया जाए। यह कानून न केवल एक अधिकार देता है, बल्कि जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व की भी शिक्षा देता है।
इतिहास एवं पृष्ठभूमि-
भारत के स्वतंत्र होने के बाद १९४७ से लेकर २००२ तक, आम नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को सार्वजनिक स्थानों पर फहराने का अधिकार सीमित रूप से प्राप्त था। केवल सरकारी संस्थानों, शैक्षणिक संगठनों एवं विशेष अवसरों पर ही तिरंगे के उपयोग की अनुमति थी। परंतु स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति और लोकतांत्रिक मूल्यों की भावना के अनुरूप, इस प्रतिबंध को चुनौती दी गई। उद्योगपति नवीन जिंदल द्वारा दायर याचिका के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों को झंडा फहराने का मौलिक अधिकार माना और इसके फलस्वरूप केंद्र सरकार ने २००२ में झंडा संहिता लागू की। भारतीय झंडा संहिता, २००२ को ३० दिसम्बर, २०२१ के आदेश द्वारा संशोधित किया गया और अब व्यवस्था है कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते गए और हाथ से बुने हुए या मशीन द्वारा निर्मित सूती/पॉलिएस्टर/ऊनी/सिल्क/खादी के कपड़े से बनाया गया हो। जनता का कोई भी व्यक्ति, कोई भी गैर-सरकारी संगठन अथवा कोई भी शिक्षण संस्थान राष्ट्रीय ध्वज को सभी दिनों और अवसरों, औपचारिकताओं या अन्य अवसरों पर फहरा या प्रदर्शित कर सकता है, बशर्ते कि राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा और सम्मान को ध्यान में रखा जाए। जब कभी भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाए तो उसकी स्थिति सम्मानजनक और पृथक होनी चाहिए। फटा हुआ और मैला कुचैला झंडा किसी भी स्थिति में प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए। झंडे को किसी भी अन्य झंडे या झंडों के साथ एक ही ध्वज दंड में नहीं फहराया जाना चाहिए। संहिता के भाग ३ की धारा ९ में उल्लिखित गणमान्यों जैसे कि राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल के अतिरिक्त ध्वज को किसी और के वाहन पर नहीं फहराया जाना चाहिए। साथ ही किसी दूसरे ध्वज या पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचा या उससे ऊपर या उसके बराबर भी नहीं लगाना चाहिए।
भारतीय झंडा संहिता, २००२ की प्रमुख विशेषताएँ
१. संहितात्मक संरचना
झंडा संहिता को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
भाग १: राष्ट्रीय ध्वज की परिभाषा, आयाम, रंग, संरचना एवं सामग्री।
भाग २: आम नागरिकों, निजी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों आदि द्वारा झंडे के प्रयोग के नियम।
भाग ३: सरकारी संस्थाओं, सैन्य इकाइयों और कूटनीतिक प्रतिनिधियों द्वारा झंडे के प्रयोग के निर्देश।
२. झंडे की बनावट और मापदंड
झंडे का आयाम ३:२ (लंबाई:चौड़ाई) होना आवश्यक है।
इसमें तीन समांतर पट्टियाँ होती हैं- केसरिया (ऊपरी), श्वेत (मध्य), और हरा (निचला)।
मध्य में गहरे नीले रंग का २४ तीलियों वाला अशोक चक्र होता है।
पहले केवल खादी या हाथ से बुने कपड़े का प्रयोग ही मान्य था, लेकिन २०२१ में इसमें संशोधन कर पॉलिएस्टर एवं मशीन से बने झंडों को भी अनुमति दी गई।
उपयोग संबंधी नियम
झंडा संहिता के अनुसार नागरिक तिरंगे को किसी भी दिन फहरा सकते हैं, बशर्ते वे निम्न मर्यादाओं का पालन करें:
ध्वज को कभी भी भूमि, जल या धरती पर नहीं गिराया जाना चाहिए।
इसे फाड़ना, जलाना या अपमानजनक ढंग से उपयोग करना कानूनन अपराध है।
तिरंगे पर कुछ भी लिखा नहीं होना चाहिए, और न ही इसे वेशभूषा, वस्त्रों, तकियों आदि में प्रयुक्त किया जा सकता है।
तिरंगे को अन्य किसी झंडे से ऊपर या समांतर नहीं रखा जा सकता।
संशोधन एवं परिवर्तन
भारत सरकार ने ३० दिसंबर २०२१ को आfधसूचना जारी कर खादी के साथ-साथ मशीन से निर्मित पॉलिएस्टर के झंडों को भी वैध घोषित किया। वहीं ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के तहत नागरिकों को रात में भी झंडा फहराने की अनुमति दी गई, किंतु उचित प्रकाश व्यवस्था रात में झंडा फहराने की अनिवार्य शर्त है। इससे पहले केवल सूर्य उदय से सूर्यास्त तक ही झंडा फहराया जा सकता था। गौरतलब है कि झंडे का अपमान करना न केवल उक्त संहिता के विरुद्ध है, बल्कि यह भारतीय न्याय संहिता और राष्ट्र-गौरव अपमान-निवारण अधिनियम, १९७१ के अंतर्गत दंडनीय अपराध भी है।
वर्तमान महत्व और नागरिक भूमिका
भारतीय झंडा आज केवल राजकीय प्रतीकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आम नागरिक की भावनाओं और देशभक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुका है। हर घर तिरंगा, स्कूलों में ध्वज गीत, स्वतंत्रता दिवस पर झंडारोहण- ये सब तिरंगे को जनमानस से जोड़ने का कार्य करते हैं। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक है कि नागरिक झंडे के सम्मान, गरिमा और मर्यादा का पूर्णतः पालन करें।
२०२२ में आज़ादी के ७५ वर्ष पूरे होने पर 'हर घर तिरंगा' अभियान की शुरुआत की गई, जिसने यह दिखाया कि राष्ट्रीय ध्वज अब केवल सरकारी इमारतों तक सीमित नहीं, बल्कि जन-जन के हृदय का हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या केवल झंडा फहराना ही देशभक्ति है? सच्ची देशभक्ति तब है जब हम उससे नियमों और मर्यादाओं का पालन भी करें। झंडे को फहराने से पहले उसके अर्थ और महत्व को समझें, तभी हमारा राष्ट्रप्रेम सार्थक होगा। राष्ट्रीय ध्वज उस संकल्प का प्रतीक है जिसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर प्राप्त किया। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम न केवल तिरंगे का सम्मान करें, बल्कि इसके उपयोग में विवेक और मर्यादा का भी पालन करें।
क्या करें:
तिरंगे को सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराना चाहिए।
इसे स्वच्छ, सुरक्षित और अच्छी स्थिति में रखना चाहिए।
सभी नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, या किसी अन्य राष्ट्रीय अवसर पर झंडा फहराने की अनुमति है।
अब रात में भी झंडा फहराना संभव है, यदि उचित प्रकाश व्यवस्था हो।
क्या न करें:
झंडे को जमीन पर न गिराएं।
तिरंगे पर कोई संदेश, स्लोगन या डिजाइन न बनाएं।
इसका उपयोग कपड़ों, कुर्सियों, गद्दों, रूमालों या किसी भी अपवित्र उद्देश्य के लिए न करें।
नेहा राठी
दिल्ली