21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस

बच्चे का शैशव जहाँ बीतता है , उस माहौल में ही जननी भाव है . जिस परिवेश में वह गढा जा रहा है , जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषायें सीख रहा है , जहाँ वह विकसित – पल्लवित हो रहा है , वही महत्वपूर्ण है .

Mar 12, 2024 - 17:02
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21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस
International Mother Language Day

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाने का उद्देश्य है—विभिन्न भाषाओं और भाषाई
विविधता को बढावा देना, परंतु आज हम सब भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिये सूचना और
संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग का संकल्प कर सकते हैं .

यूनेस्को ने सन् 1999 में प्रतिवर्ष 21 फरवरी की अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाये जाने की घोषणा की थी .
केवल मातृ शब्द के कारण मातृभाषा का सही अर्थ एवं भाव समझने में हमेशा से परेशानी हुई है . मातृभाषा
बहुत पुराना शब्द नहीं है परंतु इसकी व्याख्या करते हुय़े लोग इसे बहुत प्राचीन समझ लेते हैं . हिंदी का
मातृभाषा शब्द दरअसल अँग्रेजी के मदरटंग मुहावरे का शाब्दिक अनुवाद है .

बच्चे का शैशव जहाँ बीतता है , उस माहौल में ही जननी भाव है . जिस परिवेश में वह गढा जा रहा है , जिस
भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषायें सीख रहा है , जहाँ वह विकसित – पल्लवित हो रहा है , वही महत्वपूर्ण
है .

हिंदी के संदर्भ में यह सामने नहीं आया वरन् इसका संदर्भ बांग्ला भाषा और बाँग्ला परिवेश था . अँग्रेजी राज
में जिस कालखंड को पुनर्जागरण काल कहा जाता है , उसका उत्स बंगाल भूमि से ही है .

राजा राममोहन राय , ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे उदार राष्ट्र वादियों का सहयोग अँग्रेजों ने शिक्षा प्रसार के
लिये लिया . पूरी दुनिया में बह रही नवजागरण की बयार को भारतीय जन भी महसूस करें , इसके लिये
भारतीयों को पारंपरिक अरबी- फारसी की शिक्षा के स्थान पर अँग्रेजी सिखाने की जरूरत मैकॉले ने महसूस की
. यहाँ हम उनकी शिक्षा पद्धति की बहस में नहीं पड़ेंगें , सिर्फ भाषा की बात करेंगें .

हर काल खंड में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है . मुस्लिम दौर में अरबी –
फारसी में शिक्षा ग्रहण करना आम भारतीय के लिये राजकाज और प्रशासनिक परिवेश को जानने में तो मदद
करता था परंतु इन दोनों भाषाओं में ज्ञानार्जन करने से आम हिंदुस्तानी के वैश्विक दृष्टिकोण में , संकुचित
सोच में कोई बदलाव या परिवर्तन नहीं आ रहा था. उसका कारण यह था कि अरबी -फारसी का दायरा काफी
सीमित था . अरबी फारसी के जरिये पढे लिखे हिंदुस्तानी प्राचीन भारत ,फारस और अरब आदि की ज्ञान
परंपरा से तो जुड़ रहे थे परंतु सुदूर पश्चिम में जो वैचारिक क्रांति हो रही थी , उसे हिंदुस्तान में लाने में अरबी
-फारसी सहायक नहीं हो पा रही थी .

भारतीयों को अँग्रेजी भाषा सीखनी चाहिये , यह सोच काफी महत्वपूर्ण थी . इसी समय यह बात भी सामने
आई कि विशिष्ट ज्ञान के लिये तो अँग्रेजी भाषा माध्यम बने परंतु आम हिंदुस्तानी को आधुनिक शिक्षा उनकी
अपनी जुबान में मिले. उसी समय मदरटंग जैसे शब्द का अनुवाद मातृभाषा सामने आया .

यह बाँग्ला शब्द हैऔर इसका अभिप्राय भी बाँग्ला से ही था . तत्कालीन समाजसुधारक चाहते थे कि आम
आदमी के लिये मातृभाषा में ( बांग्ला भाषा ) में आधुनिक शिक्षा दी जाये . आधुनिक मदरसों की भी शुरुआत
बंगाल से ही मानी जाती है .
मातृकुल नहीं वरन् परिवेश महत्वपूर्ण ---

मातृभाषा की पुरातनता सिद्ध करने के लिये ऋग्वेदकालीन एक सुभाषित को अक्सर ही कोट किया जाता है –
मातृभाषा , मातृसंस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें .
जब मैंने इसको समझने के लिये अध्ययन किया तो इसका मूल वैदिकी स्वरूप यह हाथ लगा –
इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुवः ... जिसका अँग्रेजी अनुवाद कुछ इस प्रकार से किया गया है –
One should respect his motherland, his culture and his mother tongue because they are givers
of happiness.

यह दिलचस्प तथ्य है कि वैदिक सूत्र में मातृभाषा शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है . इला और महि शब्दों का
अनुवाद जहाँ संस्कृति , मातृभूमि, किया गया है वहीं सरस्वती का अनुवाद मातृभाषा किया गया है . मातृभाषा
का जो वैश्विक भाव है , उसके संदर्भ में तो यह सही है परंतु मातृभाषा का रिश्ता जन्मदायिनी माता के स्थूल
रूप से जोड़ने के अर्थ में यह साबित नहीं कर पायेंगें कि सरस्वती का अर्थ मातृभाषा कैसे हो सकता है .... यहाँ
सरस्वती शब्द से अभिप्राय सिर्फ वाक् शक्ति से है , भाषा से है .

ध्यान देने की बात यह है कि वैदिकी भाषा, जिसमें वेदों की रचना है , अपने समय की प्रमुख भाषा थी .
सुविधा की दृष्टि से संस्कृत कह सकते हैं , परंतु वह संस्कृत नहीं थी . वैदिकी या छांदस सामान्य संपर्क
भाषा कभी नहीं रहीं . विद्वानों का कहना है कि वेदकालीन भारत में निश्चित ही कई तरह की प्राकृतें प्रचलित
थीं , जो अलग अलग जन ... (जनपदीय व्यवस्था ) में प्रचलित थीं .

आज की बाँग्ला , मराठी , मैथिली , अवधी जैसी बोलियाँ इन्हीं प्राकृतों से विकसित हुईं . अर्थात मेरा तात्पर्य
यह है कि यह विभिन्न प्राकृतें ही अपने अपने परिवेश में मातृभाषा का दर्जा रखती रहीं होंगीं . और विभिन्न
जनसमूहों में बोली जाने वाली इन्हीं भाषाओं के बारे में उक्त सूक्त में सरस्वती शब्द का उल्लेख आया है .
मेरा स्पष्ट विचार है कि मातृ शब्द से अभिप्राय उस परिवेश , स्थान , समूह ,में बोली जाने वाली भाषा से है ,
जिसमें रह कर कोई भी व्यक्ति अपने बाल्यकाल में दुनिया से संपर्क में आता है . मातृभाषा शब्द मदरटंग के
बारे में इस तरह से परिभाषित किया गया है ---

The term “mothertongue” should not be interpreted to mean that it is the language of one’s
mother. In some paternal societies, the wife moves in with the husband and thus may
have different first language , or dialect , than the local language of the husband . Yet their
children usually only speak their local language . Only a few will learn to speak their
mother’s languages like natives. Mother in this cotext probably originated from the
definition of mother as source, or origine, as in mother - country or – land .( सूत्र)
एक दूसरा संदर्भ देखें ---

In the wording of the question on mother tongue, the expression “ at home “ was added to
specify the context in which the individual learned the language (सूत्र)
जाहिर है कि मातृभाषा से तात्पर्य उस भाषा से कतई नहीं जिसे जन्मदायिनी माँ बोलती रही है . अकेली माँ
बच्चे के परिवेश के लिये उत्तरदाय़ी नहीं है और न ही जन्म के लिये . केवल माँ की भाषा को मातृभाषा से
जोड़ना एक तरह से ज्यादती है , सामाजिक व्यवस्था के साथ भी ...

भारत समेत ज्यादातर सभ्यताओं में भी , कोई स्त्री , विवाहोपरांत ही बच्चे को जन्म देती है . बच्चे की भाषा
के लिये यदि सिर्फ माँ ही उत्तरदायी मान ली जाये, तब अलग -अलग भाषिक पृष्ठभूमि वाले दंपत्तियों में बच्चे
की भाषा मातृ परिवार की होगी और बच्चे को वह भाषा सीखने के लिये माँ का परिवेश ही मिलना भी चाहिये.
मातृसत्तात्मक व्यवस्थाओं में यह संभव है परंतु पितृसत्तातमक व्यवस्था में यह कैसे संभव होगा ...यह
मानना कि प्रत्येक को अपनी मातृभाषा सिर्फ माँ से मिलती है , मातृभाषा का कमजोर निष्कर्ष होगा और
वैश्विक संदर्भ इसे अमान्य करते हैं .

एक बच्चा माँ की कोख से जन्म अवश्य लेता है , परंतु मातृकुल के भाषाय़ी परिवेश में नहीं , वरन् माँ ने
जिस समूह में उसे जन्म दिया है , उसी परिवेश की भाषा से उसका रिश्ता होता है . उस मामले में नारी मुक्ति
या पुरुष प्रधानता वाली भावुकता भी कोई मानें नहीं रखती .

मातृ सत्ता और पितृसत्ता दायरे से बाहर आकर देखें तो भी बच्चे का शैशव जहाँ बीतता है , उस माहौल में ही
जननी भाव है . जिस परिवेश में वह गढा जा रहा है , जिस भाषा के माध्यम से से वह अन्य भाषायें सीख रहा
है , जहाँ वह विकसित , पल्लवित हो रहा है , वही महत्वपूर्ण है . यही उसका मातृ परिवेश कहलायेगा . माँ
के स्थूल अर्थ या रूप से इसका रिश्ता ढूँढना फिजूल है .

यूनेस्को ने वर्ष 1999 में 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के रूप में घोषित करने के बाद वर्ष
2000 से यह दिवस संपूर्ण विश्व में मनाया जा रहा है .
यह दिन बांग्लादेश द्वारा अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिये ये गये लंबे संघर्ष को भी रेखांकित करता है .
कनाडा में रहने वाले एक बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने 21 फरवरी के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का
सुझाव दिया था .

उद्देश्य---
यूनेस्को ने भाषायी विरासत के संरक्षण के लिये मातृभाषा आधारित शिक्षा के महत्व पर जोर देने के लिये एवं
सांस्कृतिक विविधता रक्षा के लिये स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक प्रारंभ किया है ---
विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की विविध संस्कृतियों एवं बौद्धिक विरासत की रक्षा करना तथा मातृ भाषाओं का
संरक्षण करना एवं उन्हें बढावा देना है .

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार , हर 2 सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है , और विश्व एक पूरी सांस्कृतिक
और बौद्धिक विरासत को खो देता है .

भारत में यह विशेष रूप से उन जनजातीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है , जहाँ बच्चे उन वियालयों में सीखने
के लिये संघर्ष करते हैँ , जिनमें उनको मातृभाषा में निर्देश नहीं दिया जाता है ..
ओडिसा में केवल 6 जनजातीय भाषाओं में केवल एक लिखित लिपि है . इसी कारण से बहुत से लोगों तक
साहित्य और शैक्षिक सामग्री पहुँचने से वंचित है ,

भाषाओं के संरक्षण के लिये वैश्विक प्रयास ----
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 से 2032 के मध्य की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के नाम से
नामित किया है .

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (I YIL ) घोषित किया
था .

वर्ष 2018 में चागशा (चीन ) मैं यूनेस्को द्वारा की गई यूलु (Yuelu ) उद्घोषणा, भाषाय़ी संसाधनों और
विविधता की रक्षा के लिये विश्व भर के देशों एवं क्षेत्रों के प्रयासों के मार्गदर्शन करने में केंद्रीय भूमिका निभाती
है .

स्वदेशी भाषाओं की रक्षा के लिये भारत की पहल ----
भाषा संगम – सरकार ने भाषा संगम कार्यक्रम प्रारंभ किया है. जो छात्रों को अपनी मातृभाषा सहित विभिन्न
भाषाओं को सीखने और समझने के लिये प्रोत्साहित करता है .

केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान ---सरकार ने केंद्रीय भाषा संस्थान भी स्थापित किया है , जो भारतीय भाषाओं के
अनुसंधान और विकास के लिये पूर्णतया समर्पित है .

वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग ( Commission for Scientific and Technology-CSTT) CSTT
क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन के लिये प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है .
इसकी स्थापना वर्ष 1961 में सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली विकसित करने के लिये की
गई है .

राज्य स्तरीय पहलें ---मातृ भाषाओं की रक्षा के लिये कई राज्य स्तरीय पहल भी की गईं हैं .उदाहरण के लिये
ओडिसा सरकार ने अमा घर ( ) कार्यक्रम शुरू किया है , जो आदिवासी बच्चों को आदिवासी भाषाओं में
शिक्षा प्रदान करता है .

केरल राज्य सरकार की नमथ बसई (Namath Basai ) पहल आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को शिक्षा के माध्यम के
रूप में स्थानीय भाषाओं को अपनाकर शिक्षित करने में काफी प्रभावी साबित हुई है .

वर्तमान कठिन परिस्थिति के बावजूद भारतीय मातृभाषाओं के लिये आशा की किरण है क्योंकि भारतीय शिक्षा
नीति 2020 में शिक्षा के शुरुआती चरणों से लेकर उच्चशिक्षा तक मातृ भाषा आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित
करता है . इस कारण से इन भाषाओं को दीर्घ अवधि तक तक बने रहने में मदद मिल सकती है .
हालांकि भाषाय़ी न्याय के प्रश्न का समाधान करनाऔर यह सनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि भाषाशिक्षा के
लिये बाधक नहीं है .

जन्म के बाद प्रथम जो भाषा का प्रयोग करते हैं उसे हम मातृभाषा कहते हैं . पहले प्राथमिक पाठशाला में
बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा दी जाती थी जो अंग्रेजी के बढते प्रभाव के कारण यह प्रथा लुप्त होती जा रही है
मातृभाषा में बच्चों का बात ना करना फैशन बनता जा रहा है इस कारण से गाँव और शहर के बच्चों में
दूरियाँ बढती हैं . इस विचारधारा और दृष्टिकोण को बदलने के विचार से अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाया
जाता है .

पद्मा अग्रवाल
                   

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