वीर सेनानी योद्धा कुंवर सिंह

देशभक्ति और उसके प्रति प्रेम की गहरी भावना के कारण ही जाना जाता है। वह एक उत्कृष्ट घुड़सवार तलवार चलाने वाले गोरिल्ला युद्ध रणनीति की गहरी समझ रखने वाले और अपने नेतृत्व कौशल के लिए भी जाने जाते थे उनकी आज्ञा के तहत लड़ने वाली वफादार सैनिकों की भी एक बड़ी संख्या थी जिसकी वह प्रेरणा थे।

Nov 8, 2023 - 15:06
Nov 19, 2023 - 20:12
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वीर सेनानी योद्धा कुंवर सिंह
brave warrior warrior kunwar singh

आजादी की जिसके मन में धधक रही थी ज्वाला
और नहीं कोई वह अपना कुंवर सिंह मतवाला।

22 सितंबर 2008 को डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा बाबू वीर कुंवर सिंह के चित्र का अनावरण  किया गया जो श्री गोपाल द्वारा निर्मित है और मनमोहन सिंह को यह चित्र श्री रामविलास पासवान जी द्वारा भेंट किया गया।
निश्चित रूप से हिस्से और कई ज्यादा सम्मान के अधिकारी हैं हमारे भी नाम अनम क्रांतिकारी जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में बिताया और अपने आप को देसी हेतु समर्पित कर दिया गया फिर भी जब किसी को कुछ सम्मान मिलता है तो हमें खुशी तो होती ही है।

  विदेशी शासन के खिलाफ भारत के लोगों द्वारा छेड़े गए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर नायकों में से एक बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनका जन्म  13 नवंबर 1777को जगदीशपुर में हुआ।  माता का नाम रानी पंचरत्न में देवी तथा पिता का नाम राजा साहब ज्यादा सिंह था
उनके छोटे भाई अमर सिंह दयालु सिंह जाने-माने जागीरदार थे वह बिहार के उज्जैनिया परमार छतरी और मालवा के प्रसिद्ध राजा भोज के वंशज हैं इसी वंश में महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने भी जन्म लिया था 80 साल की उम्र में कुंवर सिंह ने अंग्रेजों का सामना किया और हाथ में गोली लगने के बाद अपना हाथ काटा यही उनके प्रतिष्ठित वंश का उदाहरण है।
एक तरफ जहां पुरुष भारत की स्वाधीनता के लिए अपनी जान निछावर कर रहे थे वहीं दूसरी ओर महिलाएं भी बराबर उनके साथ खड़ी थी उनमें से एक है बिहार के आर की धर्मन भाई।
मुजरा देखने के दौरान उनकी मुलाकात हरमन भाई से हुई थी एक दूसरे से प्रेम करने लगे और इसी वजह से उन्होंने विवाह भी धर्मन बाई से ही किया।
18 57 के विद्रोह के दौरान उनकी भूमिका पूर्व नियोजित थी अंग्रेजों द्वारा उनकी संपत्ति से वंचित किए जाने के कारण उन्हें पहले से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी शिकायतें थी सो बिहार में विद्रोह फैलते ही पहले कुंवर सिंह ने विद्रोह की तैयारियां शुरू कर दी थी
उन्हें उनकी देशभक्ति और उसके प्रति प्रेम की गहरी भावना के कारण ही जाना जाता है। वह एक उत्कृष्ट घुड़सवार तलवार चलाने वाले गोरिल्ला युद्ध रणनीति की गहरी समझ रखने वाले और अपने नेतृत्व कौशल के लिए भी जाने जाते थे उनकी आज्ञा के तहत लड़ने वाली वफादार सैनिकों की भी एक बड़ी संख्या थी जिसकी वह प्रेरणा थे।
कुंवर सिंह उन्हें कुछ नेताओं में से थे जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया, अंग्रेजों के शासन को मानने से इनकार कर दिया और अपनी मृत्यु तक लड़ते रहे।
1857 के भारतीय विद्रोह में उनकी छवि एक राष्ट्रीय नायक के रूप में उभर कर सामने आती है।
कुंवर सिंह के पिता राजा साहब ज्यादा सिंह जगदीशपुर के जमीदार थे और अपने साहस और वीरता के लिए जाने जाते थे कुंवर सिंह राजा साहब ज्यादा सिंह के तीसरे पुत्र थे और उन नेताओं के परिवार में पले बढ़े थे जो अपनी बहादुरी और निडरता के लिए जाने जाते थे छोटी उम्र से ही कुंवर सिंह ने युद्ध कला सीखने की ओर झुकाव दिखाया और हथियारों के इस्तेमाल में विशेषज्ञ बन गए उन्हें तलवारबाजी घुड़सवारी और तीरंदाजी की कला में प्रशिक्षण मिला था जो उन दिनों एक योद्धा के लिए आवश्यक कौशल माने जाते थे के बचपन को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय शासकों के बीच लगातार संघर्षों से चिन्हित किया गया था उनके परिवार की अंग्रेजों के साथ लंबे समय से प्रतिद्वंद्विता थी जो बलपूर्वक भारत में अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे थे ईस्ट इंडिया कंपनी ने पड़ोसी राज्य अवैध कब्जा कर लिया रामस्वरूप कई लोगों का विस्थापन हुआ और अंग्रेजो के खिलाफ व्यापक विद्रोह हुआ था।
संघर्ष के इस माहौल में पले बड़े कुंवर सिंह में प्रतिरोध की भावना और अपने लोगों को अंग्रेजों से बचने की इच्छा को आप साथ किया वह अपने पूर्वजों के विचारों से बहुत प्रभावित थे उनके पूर्वजों ने भी मुगलों और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। अपनी उन्नत आयु के बावजूद कुंवर सिंह भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय रहे और कई युवा क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता के संघर्ष में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया भारतीय स्वतंत्रता के लिए उनका अटूट डेट संकल्प प्रतिबद्धता आज भी भारतीयों की वीडियो के लिए प्रेरणा है और यह प्रेरणा सदा ही रहेगी।
वीर कुंवर सिंह पर अपने पिता का सबसे ज्यादा प्रभाव था जो एक कठोर अनुशासक और राजपूत परंपराओं के सख्त अनुयाई थे उन्हें सम्मान बहादुर और अपने कबीले और देश के प्रति वफादारी का महत्व सिखाया गया था उनके पिता भी कला और साहित्य के संरक्षक थे और वीर कुंवर सिंह ने कविता और संगीत में गहरी रुचि विकसित की जिसे उन्होंने जीवन भर जारी रखा।
विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि से आने के बाद भी वीर कुंवर सिंह अपनी विवरणता सादगी के लिए जाने जाते थे वह बहुत सरल हृदय थे और जड़ों से गहराई से जुड़े हुए थे अपने लोगों की परंपराओं रीति रिवाज के प्रति वह बहुत सम्मान रखते थे और उनके पालन पोषण और उनके व्यक्तित्व और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को आकार देने हेतु इन्होंने बहुत योगदान दिया।
जिसका जैसा पालन होता है वह उसके जीवन में नजर आता है यह बात कुंवर सिंह के लिए भी लागू होती है कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का उनके जीवन और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी अंतिम भूमिका पर गहरा प्रभाव पड़ा उनके कर्तव्य की भावना कबीले के प्रति उनकी निष्ठा अपने लोगों के प्रति उनका गहरा लगाव वह सब इस समय उजागर हुआ।
कुंवर सिंह जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ही प्राप्त की थी जो स्वयं एक विद्वान प्रसिद्ध योद्धा थे उन्हें हिंदू धर्म संस्कृत हिंदी और उर्दू के साथ पढ़ाई गए थे।
अपनी औपचारिक शिक्षा के अलावा वीर कुंवर सिंह अपने समय के समाज सुधार को राजनीतिक नेताओं के विचारों से भी परिचित थे वे स्वामी विवेकानंद महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अन्य प्रमुख नेताओं की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे इन विचारों के प्रति उनके संपर्क और सामान्य रूप से उनकी शिक्षा ने उन्हें देशभक्ति की गहरी भावना से भर दिया था।
धनवान घर से होने के बावजूद कुंवर सिंह सामाजिक न्याय समानता की भावना रखते थे वह बहुत न्याय प्रीत है और न्याय संगत समाज के विचार नेतृत्व विश्वास रखते थे और ऐसे नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रयास भी करते थे उन्होंने अपनी शिक्षा प्रभाव का उपयोग अपने क्षेत्र के लोगों को सामने लाने के लिए किया जागरूकता बढ़ाने के लिए किया। उन्होंने कभी भी अपने को शिक्षा से वंचित नहीं रखा और अन्य बुद्धिजीवियों कार्यकर्ताओं के साथ विचार विमर्श अपने देश के सामने आने वाले जटिल मुद्दों को बेहतर ढंग से समझना समस्याओं के समाधान खोजना आदि में उनकी विशेष रूचि थी।
शर्म तो हम ही कह सकते हैं कि वीर कुंवर सिंह की शिक्षा ने उनके विश्वासों और कार्यों को आकार देने में और भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्हें एक दूजे नेता बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की सामाजिक न्याय समानता के प्रति उनकी जो प्रतिबद्धता थी देश के प्रति जो उनकी गहरी भावना थी वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक शक्ति के रूप में उभरी और जो आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणादाई है।

उनके पिता राजा साहबजादा सिंह के निधन के पश्चात उन्हें 1826 में गद्दी पर बिठाया गया उनके राज्य में शाहबाद जिले के दो परगना और अनेक तालुके सम्मिलित थे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कुंवर सिंह ने ब्रिटिश सेवा के खिलाफ सशस्त्र बलों में से एक दल का सक्रिय रूप से नेतृत्व किया वृद्धावस्था के बावजूद कुंवर सिंह का नाम ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों में भय उत्पन्न कर देता था। जिन सैनिकों ने अंग्रेजी सेना के विरुद्ध विद्रोह किया कुंवर सिंह की सहानुभूति उनके साथ सदा ही रही। वह बिहार के वह अंतिम बहादुर थे जिन्होंने कैप्टन डूंगर और कैप्टन ली ग्रैंड के बालों को आरा से के दिया और आजमगढ़ में ब्रिटिश बालों पर सहसा आक्रमण कर उन्हें चौंका दिया।

जब 10 मई 1857 को मेरठ शहर में ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में सैनिक विद्रोह की शुरुआत हुई तो यह बात भारत के अनेक भागों में आग की भांति फैल गई यह क्रांति कंपनी की शक्ति के लिए गंभीर खतरे के रूप में सामने आई और ब्रिटिश बलों और रजवाड़ों के नेतृत्व वाले बलून विद्रोही भारतीय सैनिकों आदि के बीच कई स्थानों पर युद्ध लड़े गए और इस प्रकार उपनिवेशवादी शासन के खिलाफ प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ।

कैप्टन डूंगरपुर के नेतृत्व वाले सैन्य दल की करारी हार उसे समय हुई जब 29 जुलाई को आरा में बंधक ब्रिटिश व्यक्तियों को छुड़ाने के लिए लगभग 445 सैनिकों का सैन्य दल दानापुर से भेजा गया परंतु यह दल जिसका नेतृत्व कैप्टन डोनोवर कर रहे थे जैसे ही सोन नदी को पार कर आर पहुंचा उसे कुंवर से के नेतृत्व में लड़ाकू ने अधिकृत घर तक पहुंचने से पहले ही उसे सैन्य दल पर घात लगाकर हमला कर दिया और उन्हें खदेड़ दिया गया।

कुंवर सिंह के पहुंचने पर जो कि वे कानपुर के युद्ध में भाग लेने के पश्चात पहुंचे थे अवध के राजा ने उन्हें शाही पोशाक से सम्मानित किया और आजमगढ़ जिले के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र की जागीर प्रदान की मार्च 18 सो 58 में उन्होंने आजमगढ़ को अधिकृत कर लिया।

22 मार्च 1818 को कुमार सिंह और उनके आदमियों ने अतरौलिया आजमगढ़ से 23 मील दूर ब्रिटिश सेना पर आकस्मिक हमला किया और उनके तात्कालिक का नल मिलमैन के नेतृत्व वाले ब्रिटिश बलों को वहां से वापस भगा दिया कुमार सिंह द्वारा इस क्षेत्र का घेराव किया गया ब्रिटिश अधिकारियों के पूरे क्षेत्र को पराजय का भय सताने लगा कुंवर सिंह के आगे बढ़ने की स्थिति संभावनाओं से पूर्ण थी और गवर्नर लॉर्ड कैनिंग की स्थिति से निपटने के लिए अत्यावश्यक उपाय करने पड़े क्योंकि वह कुंवर सिंह के सहज साहस और शौर्य से परिचित थे। इतनी वृद्धावस्था में भी वह ब्रिटिश सेवा के नए-नए दस्ते जो आते थे उन्हें हराने में कामयाब रहे यह उनके साहस का ही परिणाम था।
23 अप्रैल 1858 को पूरी तरह से जब उनकी सी परास्त हो गई तब कैप्टन ली ग्रैंड के नेतृत्व वाले ब्रिटिश बाल आरा में विद्रोहियों को वापसी की खबर सुन उनसे लड़ने आए थे और कुंवर सिंह के युद्ध वालों ने उन्हें बुरी तरह से कुचल दिया उन्होंने अपने महल में पुनः प्रवेश किया ऐसा कहा जाता है की गोली लगने पर कुंवर सिंह अपना एक हाथ स्वयं तलवार से कटकर गंगा नदी को भेंट कर दिया वीर कुंवर सिंह का निधन 26 अप्रैल 1858 को हुआ।

ऐसे निर्भय योद्धा को हमारा देश तो क्या पूरा विश्व सलाम करता है और उनकी वीरगाथा पीढ़ियों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी कर्नल जी बीमा लिसन ने अपनी पुस्तक द इंडियन यूनिटी आफ अट्ठारह सौ सत्तावन जो मूल रुप से 18 सो 91 में प्रकाशित हुई थी लिखा है कि इस महान योद्धा ने अंग्रेजों द्वारा किए गए अपमान ,,,जैसा कि वह समझते थे,,,, का प्रतिरोध तो लिया ही उनके छक्के भी छुड़ा दिए।

यह कुंवर सिंह के नेतृत्व का ही कमाल था कि लंबे समय तक ब्रिटिश वहां पर कोई निर्णायक युद्ध नहीं जीत पाए शाहबाद जिले के जमीदार बाबू कुमार सिंह ने सच्चे भोजपुरी लोकनायक जो मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लड़ाई के रूप में अविस्मरणीय ख्याति अर्जित की कुंवर सिंह उदार स्वभाव के व्यक्ति थे उन्होंने कई व्यक्तियों का अनेक अनुदान दिया तीर्थ स्थानों के रखरखाव के लिए भी बहुत खर्च किया और जिसमें पटना शहर का मुस्लिम तीर्थ स्थल भी शामिल है जातिगत भेद से ऊपर थे कुंवर सिंह की स्मृति सतत आंदोलन में उनके योगदान के सम्मान में भारत सरकार द्वारा 23 अप्रैल 1920 को एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया जब भी भारत देश के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण होगा तब उन्हें  भारत सम्मानित करता  रहेगा  बाबू वीर कुंवर सिंह की गिनती प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख बहादुर नायकों में होती है होती रहेगी।

डॉ रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर सी जी

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