सही शिक्षा से जागृति लाकर अंधविश्वास मिटाये

ढोंगी एवं पाखंडी लोग जादू-टोने के नाम पर जनसामान्य को बेवकूफ बनाते है। इसके लिए वे वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते हुए कभी नीबू से खून निकालते है तो कभी आग पर चलकर जनसामान्य को अपने प्रभाव में लेते है। कई बार जनसामान्य अंधविश्वास के कारण अपराध में भी लिप्त हो जाते है। गांवों में पाखंडी लोग भोले-भाले ग्रामवासियों को अपने प्रभाव में लेकर ठगते है। हालांकि अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून भी बने है।

Mar 19, 2024 - 16:37
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सही शिक्षा से जागृति लाकर अंधविश्वास मिटाये
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ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामवासी अंधविश्वास से प्रभावित हो जाते है, वहीं महिलाएं टोनही जैसे कुरीतियों से प्रताडि़त होती है। बैगा-गुनिया एवं जादू-टोने से झांसे में आकर जनसामान्य ठगे जाते है। समाज में व्याप्त इन्हीं अंधविश्वास एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच के साथ जन-जागृति की जरूरत है।

ढोंगी एवं पाखंडी लोग जादू-टोने के नाम पर जनसामान्य को बेवकूफ बनाते है। इसके लिए वे वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते हुए कभी नीबू से खून निकालते है तो कभी आग पर चलकर जनसामान्य को अपने प्रभाव में लेते है। कई बार जनसामान्य अंधविश्वास के कारण अपराध में भी लिप्त हो जाते है। गांवों में पाखंडी लोग भोले-भाले ग्रामवासियों को अपने प्रभाव में लेकर ठगते है। हालांकि अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून भी बने है। लेकिन जनसामान्य में वैज्ञानिक सोच एवं जागरूकता की आवश्यकता है। आज भी गांव में ग्रामवासी कई बार बीमारियों का इलाज नहीं कराते और झाड़-फूंक में विश्वास करते है और बीमारी बढ़ जाने पर डॉक्टर के पास जाते है।

टोनही जैसे अंधविश्वास एवं कुरीतियां दुखद है। टोनही के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार एवं अपराध के रूप में कई उदाहरण सामने आते है। महिलाओं को टोनही कहकर प्रताड़ित करने तथा गांवों से बहिष्कृत कर निकालने की घटनाएं दुखद है। सभी आज मोबाइल का उपयोग तो करते है, लेकिन वैज्ञानिक सोच नहीं रखते है। पाखंडी बाबा चमत्कार कर लोगों को अपने गिरफ्त में लेकर लूटते है तथा शोषण एवं प्रताड़ित करते है, इसके लिए वे हाथ की सफाई एवं वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते है।

अंधविश्वास को न मिटाने से समाज ऐसा ही होता  जैसा आजकल है। भूत- प्रेतों पर विश्वास , बलि प्रथा से तथाकथित देवी-देवताओं को खुश करना, बहू के स्थान पर दहेज की मान्यता शताब्दियों से चली आ रही हैं तथा आगे भी चलती रहेगी। स्त्रियों के प्रति तांत्रिकों, पंडितों , पुरोहितों, मठाधीशों की मनमानी व कुत्सित दृष्टि रहती। इस पर भी कुछ समाज सुधारक इन्हें जड़ मूल से मिटाने का प्रयास करते। अशिक्षित ही नहीं, पढ़ें लिखे लोग भी इनपर ज्यादा विश्वास करते हैं और इन्हें प्रोत्साहन देते हैं । यह समाज की विडंबना ही है ।

अंधविश्वास की परिभाषा जैसे अंधे की तरह किसी बात पर या परंपराओं पर विश्वास कर लेना। हमारे समाज में अभी तक हर तरह के अंधविश्वास मौजूद हैं,रात में कुत्ते का रोना, बिल्ली का रोना, विधवा का दिखाई देना,काने व्यक्ति का दिख जाना और घर से निकलते वक्त किसी को छींक आना, ये सब प्रचलित अंधविश्वास में आते हैं।

समाज में व्याप्त अंधविश्वास के कारण आज भी देश के कई भागों में विधवाओं को दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है। पति की मृत्यु के बाद उन्हें उनके सारे अधिकारों से वंचित कर घर से निकाल दिया जाता है। ऐसी हजारों महिलाएं कठिनतम जीवन जीती हुई वृंदावन को ही अपना मुक्तिधाम मान बैठती हैं। दो वक्त की रोटी के लिए ये बर्तन धोने, साफ-सफाई से लेकर सारे काम करती हैं। यहां तक कि किसी आश्रम में जगह न मिलने पर ये भीख मांग कर जीवन जीने को अभिशप्त हो जाती हैं। इन महिलाओं का यौन-शोषण भी खूब होता है। वृंदावन के अलावा काशी, मथुरा, हरिद्वार सहित देश के अन्य कई हिस्सों में भी परिवार से निष्कासित विधवाएं आश्रमों और गलियों-चौराहों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

ये स्थिति भारत में ही नहीं विदेशों में भी है। स्पेन का एक स्वायत्त प्रांत है, केटालोनिया। पिछले वर्ष इसकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसके तहत वहां डायन या चुड़ैल बताकर मारी गयी महिलाओं को उनके दोष से मुक्त कर दिया गया और संसद ने इस प्रकार की हत्याओं के लिए सार्वजनिक माफी माँगी। इससे पहले स्विट्ज़रलैंड, स्कॉटलैंड और नॉर्वे की संसद में भी ऐसे ही प्रस्ताव पारित किये जा चुके हैं।

दरअसल यूरोपीय देशों में लगभग 500 वर्ष पहले तक काला जादू या फिर आकस्मिक आई सामाजिक आपदा का कारण डायन या चुड़ैलों को बताकर बहुत से लोगों की हत्याएं की गईं थीं, जिनमें लगभग 90 प्रतिशत महिलायें थीं।

दूसरी तरफ यूरोप में इसके निषेध से सम्बंधित पहला क़ानून वर्ष 1424 में ही लागू कर दिया गया था। इसके बाद धीरे-धीरे अनेक देशों में यह प्रथा बंद होती गयी, पर केटालोनिया क्षेत्र में और स्कॉटलैंड में यह तमाशा और ऐसी हत्याएं 18वीं शताब्दी तक प्रचलित रहीं। इतिहासकारों के अनुसार यूरोप में वर्ष 1580 से 1630 के बीच डायन, चुड़ैल या काला जादू करने वालों के नाम पर 50000 से अधिक लोगों को मार डाला गया, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक महिलायें थीं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2000 से 2016 के बीच 2500 से अधिक महिलाओं की हत्या डायन या चुड़ैल बताकर कर दी गयी, यानि प्रति वर्ष औसतन 156 हत्याएं।

झारखंड के गुमला में एक बर्ग दम्पति की हत्या डायन का आरोप लगाकर पिछले वर्ष 21 अप्रैल को कर दी गयी, 21 अक्टूबर 2021 को जमशेदपुर में 55 वर्षीय महिला की ह्त्या की गयी, 29 अक्टूबर 2021 को पूर्वी सिंहभूम में एक बुजुर्ग महिला की ह्त्या की गयी, इस वर्ष 6 जनवरी को जामताड़ा में 55 वर्षीय महिला की ह्त्या की गयी, इसी वर्ष 5 अगस्त को ओडिशा के रायगडा में बुजुर्ग पुरुष की ह्त्या कर दी गयी, इसी वर्ष 13 अक्टूबर को सिहभूम में 60 वषीय महिला को निर्वस्त्र कर पेड़ से बाँध कर पीटा गया और 5 नवम्बर को बिहार के गया में एक महिला को डायन के शक में ज़िंदा जला दिया गया।

ऐसे सैंकड़ों अंधविश्वास और भी हैं। जो हमारे परंपराओं में सम्मिलित हैं। अंधविश्वास छोटा या बड़ा नहीं होता है ,भयानक और आसान नहीं होता है।अंधविश्वास डर और लोभ से बना हुआ एक ऐसा बीज है ,जो इंसान के शरीर में प्रवेश करने के बाद उसके आत्मविश्वास को हमेशा कमजोर बनाता रहता है।

अनपढ़ लोग ही अंधविश्वास नहीं फैलाते वे तो अंधविश्वास में फंस जाते हैं। अन्धविश्वास को फ़ैलाने वाले लोग तो पढ़े लिखे ही हैं । अन्धविश्वास के जनक पुराणों को लिखने वाले अनपढ़ नहीं पढ़े लिखे थे। रामायण, महाभारत, गीता आदि में अंधवैश्वासिक बातों की मिलावट करने वाले भी पढ़े लिखे ही थे, और वह भी संस्कृत के ज्ञाता। रामचरितमानस जैसे ग्रंथ के लेखक भी पढ़े लिखे थे और आज भी सभी मन्दिरों, तीर्थ स्थलों में बैठे लोग , ज्योतिष और वास्तु शास्त्र आदि के नाम पर अन्धविश्वास फैलाने वाले लोग भी पढ़े लिखे ही हैं । क्या रामपाल और ब्रह्मा कुमारी सम्प्रदाय जैसे लोग पढ़े लिखे नहीं हैं जो सब शास्त्रों के मनमाने अर्थ करके अंधविश्वास फैलाते हैं ? तो पढ़े लिखे लोग ही अनपढ़ या कम शिक्षित लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। उनमें अंधविश्वास पैदा कर , उनसे अपना तन मन धन समर्पित करवा कर खुद ऐश और आराम की जिंदगी जीते हैं । अनपढ़ लोग तो दया के पात्र हैं । हम सब का उत्तरदायित्व है कि उन्हें शिक्षित करें और अन्धविश्वास से बाहर निकलने में सहायता करें ।

शिक्षा से जागृति लाए जाए तथा समाज सुधार हेतु सामाजिक संस्थाओं, एन जी ओ, शिक्षण संस्थाओं, सरकार आदि की सक्रियता काम आएगी। ऐसे कई माध्यम है जिनसे हम अंधविश्वास को दूर कर सकते है।जैसे सोशल मीडिया, टेलीविजन, विद्यालय, ब्लॉग, सामाजिक कार्यक्रम व अन्य से जागृति पैदा कर सकते है।

पूजा गुप्ता

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