भारतीय स्वातंत्रय आंदोलन में गणेशोत्सव
चतुर्भुज गणेश प्रतिमा के हाथों में परशु, त्रिशूल मोदक व कमल वर्णित होते हैं। पुराणों में गणेश के ६४ अवतारों का वर्णन है त्सतयुग में कश्यप व आदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नारातंक का वध किया। त्रेता युग में उन्होंने उमा के गर्भ में जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नमक दैत्य का विनाश करने के बाद में वे मयूरेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुनः जन्म लिया और वह गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्त महाभारत लिखी। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक लड्डू ,प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दूर्वा, प्रिय वृक्ष शमी पत्र केला आदि हैं। केसरिया चंदन अक्षत,दूर्वा अर्पित कर एवं कपूर जलाकर गणेश जी की पूजा व आरती की जाती है।
भारतीय धर्म संस्कृति एवं परंपरा में भगवान गणेश का महत्वपूर्ण स्थान है. किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ श्री गणेश से ही होता है मंगलकारी देवता के रूप में एवं मंगल मूर्ति के नाम से उनकी पूजा संपूर्ण भारत में की जाती है. देवताओं के स्वामी गणपति बड़े उदर वाले एवं गजमुख वाले देवता है, गण वस्तुतः रूद्र शिव के भयंकर व उपद्रवी अनुयाई थे। यह विध्नहर्ता तथा सिद्धदाता देव हैं। परंपरा के अनुसार जब ब्रह्मा ने वेदव्यास को महाभारत की रचना का आदेश दिया तो गणेश को महाभारत का लेखक नियुक्त किया गया था। मानव गृहसूत्र में गणेश को विनायक कहा जाता है। सिद्धि व बुद्धि उनकी दो पत्नियों मानी गई हैं। जिसे क्रमशः क्षेम (शुभ)व लाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुए।
चतुर्भुज गणेश प्रतिमा के हाथों में परशु, त्रिशूल मोदक व कमल वर्णित होते हैं। पुराणों में गणेश के ६४ अवतारों का वर्णन है त्सतयुग में कश्यप व आदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नारातंक का वध किया। त्रेता युग में उन्होंने उमा के गर्भ में जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नमक दैत्य का विनाश करने के बाद में वे मयूरेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुनः जन्म लिया और वह गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्त महाभारत लिखी। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक लड्डू ,प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दूर्वा, प्रिय वृक्ष शमी पत्र केला आदि हैं। केसरिया चंदन अक्षत,दूर्वा अर्पित कर एवं कपूर जलाकर गणेश जी की पूजा व आरती की जाती है।
चारों दिशाओं में सर्व व्यापकता का प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में बिचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्य शक्ति, व छोटी पैनी आंखें सूक्ष्म तीक्ष्ण सृष्टि की सूचक है। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है। गणेश का बड़ा पेट उदारता एवं संपूर्ण स्वीकार्यता को प्रदर्शित करता है। उनका ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है। जबकि झुका हुआ हाथ अनंत दान का प्रतीक है। भगवान गणेश वस्तुतः प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप है मुद्गल एवं गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेश के ३२ मंगलकारी रूप बताए गए हैं, इनमें से वे बाल रूप में भी हैं और किशोर रूप में भी, ब्रह्मा विष्णु महेश की शक्ति भी उनमें समाहित है तो वह सरस्वती लक्ष्मी और दुर्गा का भी रूप हैं। यह पेड़,पौधे, फल पुष्प के रूप में संपूर्ण प्रकृति को स्वयं में समेटे हैं, वह योगी भी हैं और नर्तक भी। कर्नाटक में मैसूर के निकट नंजंगुड शिव मंदिर में भगवान गणेश के सभी ३२ रूप मौजूद हैं। कुषाण शासक हुविष्क की मुद्राओं पर धनुर्धारी गणेश का अंकन प्राप्त होता है। गुप्तकालीन प्रतिमाओं में गणेश को बैठा हुआ, खड़ी मुद्रा में या नृत्य करते हुए मुद्राओं में प्रदर्शित किया गया है। भीतरगांव मंदिर में एक टेरा कोटा फलक पर गणेश को हवा में उड़ते हुए दिखाया गया है। गणेश जी का वाहन चूहा (मूषक) है। संभवतः चूहा कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में हानिकारक था, अतः गणेश का चूहा वाहन उस हानि को विराम देता था। दसवीं शताब्दी में गणेश हिंदू परिवार में लोकप्रिय देवता हो गए विशेषकर पश्चिमी भारत में गणपति पूजा काफी प्रचलित हो गई तथा गणपति संप्रदाय का आविर्भाव हुआ। गणेश के उपलक्ष्य में गणेश चतुर्थी के व्रत का महत्व अग्नि पुराण में दिया गया है।
नील मत पुराण के अनुसार कश्मीर में कृष्ण पक्ष विनायक अष्टमी को विशेष रूप में गणेश की पूजा होती थी। सातवाहन काल, चालुक्य, राजपूत आदि राजवंशो में भी गणेश पूजा का उल्लेख प्राप्त होता है। मराठा साम्राज्य में भी गणेश पूजा का विशेष महत्व था और इसे राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक माना गया। ऐसा कहा जाता है कि पुणे में कस्बा गणपत नाम से प्रसिद्ध गणपत की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान करने एवं राष्ट्र गौरव को पुनर्स्थापित करने में गणेश उत्सव का महत्वपूर्ण योगदान है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना दिया इस महोत्सव का स्वरूप केवल धार्मिक कर्मकांड तक की सीमित नहीं रहा बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने एवं समाज को संगठित करने तथा सामान्य आदमी का ज्ञानवर्धन करने का एक माध्यम बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया १८९३ ईस्वी में जब बाल गंगाधर तिलक जी ने सामूहिक गणेश पूजन का आयोजन किया तो उसका मकसद सभी जातियों, धर्मो को एक साझा मंच देने का था जहां सब मिल बैठकर विचार कर सके।
गणेश उत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात संपूर्ण महाराष्ट्र में फैल गई इससे अंग्रेज भी घबरा गए थे। `स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है मैं इसे लेकर रहूंगा' का प्रभावशाली नारा देने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज के माध्यम से अपने इस संघर्ष में अपनी संस्कृति के एक मुख्य त्योहार को लोगों को एकजुट करने का एक माध्यम बनाया वे जनमानस में सांस्कृतिक चेतना जगाने एवं लोगों को एकजुट करने के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत करना चाहते थे।
ऐसा इसलिए क्योंकि १८९२ ई.में ब्रिटिश सरकार ने एंटी पब्लिक असेम्बली लेजिस्लेशन का नियम लाकर सार्वजनिक स्थानों पर सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसी स्थिति में तिलक ने गणेशोत्सव के माध्यम से लोगों को संगठित करने का प्रयास किया।लाला लाजपत राय बिपिन चंद्र पाल अरविंद घोष और अश्वनी कुमार दत्त जैसे नेताओं के सहयोग से तिलक ने १८९३ई. में सार्वजनिक गणेश उत्सव को प्रारंभ किया। गणेश चतुर्थी १० दिनों तक मनाया जाने वाला त्यौहार है तिलक ने जन देवता के रूप में गणेश की एक बड़ी प्रतिमा सार्वजनिक स्थान में स्थापित किया इस अवसर पर श्रद्धालुओं का पंडाल में गणेश प्रतिमा के पास आना-जाना लगा रहा लोग आते जाते एक दूसरे से मिलते देश के बारे में भी बात करते राम कथा के आधार पर लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने का भी प्रयास होता।अंग्रेजी शासन के विरोध में भाषण दिए जाते।
गणेश चतुर्थी के १० दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में पूजा अर्चना तो हुई ही साथ ही साथ राष्ट्रवादी कार्यक्रम में जिसमें देश की आजादी को लेकर लोगों के भावनाओं को संबल मिला एक धार्मिक स्थान को आधुनिक सरोकार से जोड़ने का काम किया था तिलक ने इस त्यौहार के माध्यम से सामाजिक चेतना का प्रवाह तेज करके ब्रिटिश राज के खिलाफ जनमत का निर्माण किया अंग्रेजों की `फूट डालो राज करो नीति' के खिलाफ लोगों में भयंकर आक्रोश हुआ फलस्वरुप स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ। १९०५ ई के पश्चात गणेश उत्सव जन उत्सव बन गया। देश भर में सार्वजनिक पंडाल बनाए जाने लगे। लोग अपने शहर में पंडाल लगाते और लोगों में आजादी की अलग जगाते। महाराष्ट्र के पुणे में पहला गणेश उत्सव की शुरुआत करने के पश्चात तिलक ने काशी में द्वितीय गणेश उत्सव की शुरुआत की। २०वीं सदी में सार्वजनिक गणेशोत्सव अत्यंत लोकप्रिय हो गया। वीर सावरकर एवं कवि गोविंद ने नासिक में गणेश उत्सव मनाने के लिए' मित्र मेला' संस्था बनाई जो बड़े पैमाने पर धा मिक आयोजन करती थी। वर्तमान में भी गणेश उत्सव का न केवल संपूर्ण भारत में बल्कि विदेशों में भी विशेष प्रचलन है। निश्चित ही इस उत्सव के माध्यम से हम वर्तमान में भी विभिन्न वैश्विक समस्याओं का हल कर सकते हैं।
डॉ. जितेन्द्र प्रताप सिंह (इतिहासकार)
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