3 June is World Bicycle Day : 3 जून विश्व साइकिल दिवस
This article captures the nostalgic memories of cycling in the 1970s-80s, its cultural relevance, and the importance of World Bicycle Day. More than a mode of transport, the cycle was a symbol of joy, bonding, and freedom in childhood.

सुबह रेडियो पर ‘बन के पंछी गाये प्यार का तराना है' ये गीत बज रहा था. ये ‘अनाड़ी ' फ़िल्म का गाना है इसमें साईकिल का इस्तेमाल किया है. इसी से साइकिल की बचपन की यादें तारो ताज़ा हो गई. आज भी साइकिल की घंटी सुनाई देती है तो बचपन की यादें सजती है. लगता है वो बचपन फिर से लौटकर आज आ जाए.
१९७०-१९८० के दशक मे बहुतांश घर में साइकिल का इस्तेमाल होता था. यातायात के लिए लोग साइकिल या बस का इस्तेमाल करते थे. उच्च वर्ग के लोग स्कूटर, फटफटी, ऑटो, मोटरकार का इस्तेमाल करते थे. बचपन में साइकिल किराये पर मिलती थी. हमारे घर के नजदीक एक साइकिल की दुकान हुआ करती थी. वहाँ पर साइकिल किराये पर मिलती थी. एक घंटे के लिए एक रूपया किराया रहता था. इसी दुकान के बगल में मटन शॉप था. हम तो शुद्ध शाकाहारी हैं उन सब को देखना हमको बहुत ही पाप लगता था. आँखों पर जैसे पट्टी लगाकर हम उससे बात करते थे और साइकिल किराये पर लाते थे.
उस ज़माने में बच्चों के लिए अलग कुछ साइकिल नहीं थी. आज कल छोटे बच्चों की साइकिल को तीन पहिए होते हैं. साइड में एक छोटा पहिया आता है.
साइकिल सीखना बहुत ही उत्साहवर्धक होता था. किसी के घर में माँ या बाबूजी अपने बच्चों को साइकिल नहीं सिखाते थे. बच्चे अपने आप ही साइकिल सीखते थे. सारे भाई-बहन मिलकर जो एक किराए की साइकिल लाते थे उस पर ही साइकिल चलाना सिखाते थे. जो बंदा नया नया साइकिल सीखता है उसका साईकल पर बैलेन्स करना बहुत ही कठिन होता है. सीखते समय बीच में गिर भी जाते हैं. तो जब नई नई साइकिल सीखते हो तो पीछे से किसी को साइकिल को पकड़कर चलना पड़ता है.
हम सब हमउम्र के भाई बहने छुट्टी के दिन दो-चार घंटे साइकिल किराये पर ले आते थे और साइकि चलाने का खूब मजा लूटते थे. माँ -बाबूजी को हाथ पैरों पर कुछ जख्म हुई तो बताते भी नहीं थे. उनको भी पता था बिना कुछ जख्म बच्चे सीखेंगे नहीं.
धीरे-धीरे एक-दूसरे के सहारे हमने साइकिल चलाना सीखा. साइकिल पर हमारी आँखे गड़ गई. आठ नौ साल के उम्र में हमको साकिल मिली. जिंदगी में मिला खुद का पहिला वाहन तो हम ख़ुशी के मारे फूले नहीं समाए.
साइकिल से जिंदगी तेज ऱफ्तार से चलने लगी.
नीचै: गच्छति उपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण। इसी का अर्थ कबीर के इस दोहे में भी है
कबीर का दोहा
जैसे चक्र घूमत हैं, तैसे जीवन गति है.
जैसे पहिए घुमत है, तैसे जीवन गति है.
जैसे घुमत पहिए, तैसे जीवन गति है।
कबीर कहते हैं कि जीवन एक पहिए की तरह है जो हमेशा घूमता रहता है. यह जीवन सुख और दुःख के चक्र में फंसा रहता है. कभी ऊपर उठता है, तो कभी नीचे गिरता है. इसी तरह, जीवन में सुख और दुख, समृद्धि और विपत्ति, सफलता और असफलता आते रहते हैं. यह एक निरंतर चक्र है जो हमेशा घूमता रहता है.
सन १९९० तक साइकिल का दौर रहा. लेकिन बदलते समय के साथ धीरे-धीरे इसका महत्व लोगों के बीच घटता चला गया.
३जून विश्व साइकिल दिवस
साइकिल दिवस मनाने की शुरवात २०१८ में हुई. अप्रैल २०१८में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व साईकल दिवस मनाने का फैसला लिया. इसलिए ३ जून का दिन तय किया गया. तब से अब तक भारत समेत कई देश विश्व साइकिल दिवस हर साल ३ जून को मनाते हैं.
साइकिल हमारे पर्यावरण के लिए फायदेमंद है. तो वहीं साइकिल चलाना सेहद के लिए भी लाभकारी है. बात अगर साइकिल चलाने के फायदे की करें तो कई शोधों में पाया गया है कि रोजाना आधा घंटा साइकिलिंग करने से व्यक्ति मोटापा, ह्रदय रोग, मानसिक बीमारी, मधुमेह और गाठिया जैसी बीमारियों से बचा रह सकता है. ऐसे में साइकिल का हमारे जीवन में अहम स्थान है।
अगर एक वाहन के तौर पर देखें तो भारतीय परिपेक्ष्य में कई लोग स्कूल, कॉलेज, से लेकर कार्यस्थल तक जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं। यह पर्यावरण के लिए बहुत अच्छा साधन है। डीजल-पेट्रोल का दोहन कम होने के साथ ही शहर का प्रदूषण स्तर भी कम होता है। वहीं स्वस्थ रखने के लिए भी साइकिल का उपयोग किया जाता है।
वो भी क्या जमाना था जब हर कोई साइकिल का दीवाना हुवा करता था. साइकिल की सवारी करना ऐसे लगता था कि जैसे हवाई जहाज की यात्रा से सफर करना। ज़िंदगी का एक खूबसूरत दौर था। जब साइकिल के पीछे कोई दोस्त बैठता था तो कभी बोझ नहीं लगता था। दोस्तों के साथ मीलों का सफर साइकिल पर बिता जाता था। आज के ज़माने में लोग सइकिल मेट्रो में ले जाते हैं. घर में कसरत करने के लिए अलग प्रकार की साइकिल बज़ार में मिलती है.
फिर भी आज ऐसे लगता है
पुराने लम्हा ख़त्म न हो जाए।
साइकिल की सवारी, है सबसे न्यारी,
बढ़ाती है यारी, बड़ी लगती है प्यारी।
पर्यावरण बचाती ये, प्रदूषण नहीं फैलाती ये,
बनकर गाँव की जीवनरेखा, बोझा ढोती जाती ये।
साइकिल मेरी प्यारी साइकिल बहुत कुछ मुझे सिखा गई
देख किसको फिर बचपन की याद आ गई
देवकी कुलकर्णी
पुणे
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