अनपढ़
उस दिन पापा ने माँ को फिर अनपढ़ कहा तो मैं बोल पड़ा "पापा माँ को पढ़ना आता है।"
मैं प्लेटफार्म पर ट्रेन के इंतजार में चहल कदमी कर रहा था तभी उद्घोषणा हुई ट्रेन 1 घंटे लेट है। मैं बेंच पर आकर बैठ गया।
इस ट्रेन से माँ पहली बार मेरे पास आ रही थी । माँ की याद आते ही मन खो गया। मैंने बचपन से ही माँ को पिता की एक नौकरानी के रूप में देखा देखा है। पिता की हर बात को मानना, कभी भी कोई जवाब ना देना, पिता के लिए खाना बनाना, हम बच्चों की देखरेख करना और यदि कभी कुछ कहना चाहा तो फिर तो पिता का कहना "तुम अनपढ़ कुछ नहीं समझोगी।"
मैं छोटा था तो समझता था माँ पढ़ी-लिखी नहीं है पर एक दिन मंदिर में माँ को रामायण पढ़ते देख मैंने कहा "माँ तुम्हें तो पढ़ना आता है।"
माँ ने कहा "चार अक्षर पढ़ने से कोई पढ़ा लिखा नहीं हो जाता।"
उस दिन पापा ने माँ को फिर अनपढ़ कहा तो मैं बोल पड़ा "पापा माँ को पढ़ना आता है।"
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा "देखा, बेटा अब माँ की वकालत करने लगा है।"
माँ को पहली बार मुस्कुराते हुए देखा था। माँ से मेरी बहुत कम बात होती थी लेकिन जब मैं घर से हॉस्टल जाता था तो माँ बहुत सारे पकवान बनाकर रखती थी और अपने बचत के कुछ पैसे भी मेरे हाथ में रख देती थी।
मैंने शहर में पढ़कर वहीं पर नौकरी भी कर ली। मेरे ऑफिस में ही रिया भी नौकरी करती हैं। हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं किंतु विजातीय होने के कारण मैं जानता था कि पिताजी अनुमति नहीं देंगे। रिया ने अपने पिता को मना लिया किंतु मैं बात ही नहीं कर पाया।
रिया के पिता ने इसी शर्त पर हाँ कहा कि मेरे माता- पिता रिया का हाथ मांगने आएंगे।
जब मैंने पिताजी से इस संबंध में बात की तो वह गुस्से से लाल-पीले होते हुए बोले "एक विजातीय से शादी कतई नहीं ?
काफी समझाने के बाद तैयार हुए।
बोले "जाओ लड़की के पिता से कहो आकर मुझसे बात करें।"
मैंने कहा "वह नहीं आएंगे आपको ही जाकर बात करना होगी।"
पिताजी तो लगभग चिल्लाते हुए बोले "फिर तो यह शादी हो ही नहीं सकती? मैं लड़के वाला होकर उनके दरवाजे पर जाऊँ असंभव है।"
तभी माँ ने मेरी ओर देखा और बोली "बेटा मैं चलूंगी उनके दरवाजे लड़की का हाथ मांगने।"
पिता ने घूर कर माँ की और देखा और कहा "तुम मेरे विरुद्ध जाओगी।"
"हाँ, बेटे की खुशी के लिए आपके तो क्या मैं तो भगवान के विरुद्ध भी चली जाऊंगी।"
तभी ट्रेन के आने का संकेत हुआ मैं दौड़ कर पहुँचा। माँ के पैर छूते हुए बोल पड़ा
"माँ तुम अनपढ़ नहीं हो।"
मधु जैन
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