व्युत्पत्ति के क्रम में तत्सम से तद्भव बनी हिंदी ने बाहर की दुनिया बहुत
अधिक नहीं देखी। शादी के बाद नाम परिवर्तन होना कोई बड़ी बात नहीं! ऐसा ही नाम परिवर्तन हो गया था। जब उसका विवाह जबरन किसी ने विदेशी भाषा से करवा दिया। युगल रूप में दोनों साथ-साथ कई वर्षों तक रहे। हिंदी कहीं भी जाती, उसका सम्मान बड़ी गर्मजोशी से और उत्साह से होता।
अचानक प्लेट टेक्टोनिक की घटना जीवन में हुई,अपमान और अंहकार का भूचाल ,भूकंप टकराया। जिससे उसकी दशा और दिशा बदल
गई।
प्रवाह का मार्ग अवरुद्ध होने लगा तो उसने अस्तित्व और अस्मिता को
बचाने संघर्ष और आत्मनिर्भर बनने के लिए ढलान वाले रास्ते भी
खोजने शुरू कर दिए।
सुना है पानी अपना रास्ता खोज ही लेता है और जब ग्लेशियर पर
सूरज की किरणें पड़ती है तो उसे पिघलना ही पड़ता है।
आखिर समुद्र से कौन नहीं मिलना चाहता?
अभिलाषा सिर्फ स्वयं के अस्तित्व और आत्मसम्मान को बचाने की थी।
इसी उम्मीद में उसने दरवाजे खटखटाएं।
दरवाजों के पीछे से आवाज आई। कौन है?
उसने कहा हिंदी।
विद्यालय बोला हिंदी तो बहुत अच्छी है। लेकिन हमें हिंदी कि नहीं इंग्लिश की अध्यापिका चाहिए।
क्या आप पढ़ा सकती हैं?
जी नहीं उसने कहा।
कई माह निकल गए हिंदी को नौकरी खोजते खोजते।
उसने देखा देश के सभी पेपर, पत्रिका ऑनलाइन पोर्टल इंग्लिश की अनिवार्यता से भरे पड़े ।
उस पायदान पर वह खरी नहीं उतर रही थी।
उसका चेहरा दिन प्रतिदिन बोझिल और उदास हो गया।
लेकिन उसने अभी आशा और उम्मीद की किरण नहीं छोड़ी है।
नौकरी उसकी जरूरत से ज्यादा अब ज़िद बन गई।
और जब मस्तिष्क पर यह उच्चतम शिखर पर पहुंचती है तो कोई भी कार्य
असंभव या दुष्कर नहीं होता।
उसे तो सिंधु की तरह अविरल बहना था। ब्रह्मांड में कोई तो उसके
संकेत सुनेगा ? इसी तलाश में वह फिर सुबह- सुबह निकल गई नौकरी
की तलाश में। एक विद्यालय पहुंची। जहां उसे एक फॉर्म भरना था
जिसका पहला प्रश्न था ।
आप शिक्षण संस्थान से क्यों जुड़ना चाहती हैं?
उसने लिख दिया मनुष्य पर 3 ऋण होते हैं। उन्हीं में से एक ऋषि ऋण
को वह उतारना चाहती है।
अगला प्रश्न था। आप बच्चों को किस प्रकार से मोटिवेटेड करेंगे?
उत्तर में लिखा, यदि मनुष्य दौड़ नहीं सकता, तो चलना चाहिए और चल भी नहीं सकता तो रेंगने की कोशिश तो जारी रखनी ही चाहिए।
मैं रेंगने के लिए भी तैयार हूं।
अगला प्रश्न था, क्या आपको कोई शारीरिक व्याधि तो नहीं? उसने लिखा हाल ही में वह चोटिल और दुर्घटनाग्रस्त हुई है। उसके कुछ अंग शरीर से निकल गए, कुछ परेशानियां भी है।
नदी के प्रवाह में क्या
अवरोध आते हैं ? वह उन्हें क्या समझाती ?
क्या उसे वह नौकरी मिलेगी?
नहीं उसका फॉर्म निरस्त कर दिया गया।
लेकिन उसने भी आकाश -पाताल एक कर दिया। अनेक विद्यालयो से
निराश इस बार वह दूसरे विद्यालय में पहुंची। जहां उसकी मुलाकात
वहां की संस्थापक महोदय से हुई। जो स्वयं हिन्दी लेख लिखने का
शौक रखती थी और नम्र व मृदुभाषी थी।
इस बार उससे प्रश्न किया गया। एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए?
उसने जवाब दिया । एक शिक्षक को उस सूफे की तरह होना चाहिए जो
थोथा थोथा उड़ा दे और उपयोगी चीजें रहने दे।
उसे इस प्रकार से शिक्षित करें कि जिज्ञासा उत्कंठा और कोतूहल बना
रहे।
जब विद्यार्थी घर जाए तो कुछ ऐसा सीख कर जाए। जिससे कि वह
स्वयं को समृद्ध और उत्साही महसूस करें बिलकुल एक मां मातृभाषा की तरह उसके शब्द स्पंदन का अहसास, सुखद अनुभूति करवायें।
इस बार उसे सफलता मिली और वह अध्ययन अध्यापन में जुट गई।
मदर टीचर कहलाए जाने वाले शब्दों से सुशोभित प्रेप क्लास में देखा छोटे-छोटे बच्चों को तीन -चार प्रकार की अल्फाबेट सिखाया जाना है। और वह मन ही मन स्वयं से प्रश्न कर रही थी ।
इनका क्या औचित्य है? क्या इससे जीवन के प्रवाह की गति, सनातन सभ्यता और संस्कृति
जीवंत रह पाएगी। मातृभाषा हिंदी जो मनुष्य की चेतना की सहभागिनी है ।
क्या बच्चे उस भाषा को समझ पा रहे हैं?
कहीं हिंदी हृंग्लिश तो नहीं
बन जाएगी
जैसे सिंधु इंदु इंडस सिविलाइजेशन में बदल गई और कहां विलुप्त हो
गई
उसके साक्ष्य अभी भी वैज्ञानिकों को नहीं मिले हैं। उसे पता है इसमें दोष विद्यालय या अध्यापकों का नहीं है लेकिन किसी का तो दोष है, कौन है वो?
व्यक्तित्व के विकास में विदेशी भाषा को कितना महत्व दें? लेकिन फिर याद आया, प्रश्न तो अभी स्वयं के अस्तित्व और अस्मिता को बचाने का है। ओजोन परत के क्षरण में क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस
उत्तरदाई है। लेकिन अब जब वह स्वयं अस्थमा से ग्रस्त हो चुकी ।
तो इनहेलर में उसे प्राण वायु के रूप में सीएफसी ही लेनी पड़ेगी।
यदि नहीं ली तो क्या होगा?
इसी बीच वह विदेशी भाषा,
हिंदी का हाल चाल पूछने फिर से आई। हिंदी को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी देख स्वयं को असुरक्षित और विचलित सी महसूस करती हुई। एक कटाक्ष हिंदी पर कर गई।
तुझमें इतनी योग्यता तो है नहीं की तुझे 10,000 से अधिक की राशि पगार में मिले।
तुझे पता है मुझे इस बार कितना मुनाफा हुआ है? हिंदी ने कहा मुझे नहीं पता?
वह बोली तुझे जो एक माह में नहीं मिलता उसका 100 गुना मुनाफा
मिलता है।
फिर से मेरे साथ चल, तुझे भी वही सुख, समृद्धि और सम्मान दिला दूंगा। जो मुझे मिलता है। हिंदी ने कहा उसे सुख नहीं शांति चाहिए।
उसे सुख और दुख नहीं आनंद चाहिए।
क्या हिंदी स्वयं के अस्तित्व और आत्मसम्मान को समाप्त कर देगी?
नदी की तीन अवस्थाओं की तरह वह प्रौढ़ से वृद्धा अवस्था में प्रवेश
करती हुई प्रतीत हो रही है। उसके तटों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है
अविरल धारा कहीं अवरुद्ध ना हो जाए। सदानीरा कहीं सूख ना जाए।
अब उसमें युवा अवस्था की तरह अवसाद और अवरोध सहन करने की
क्षमता नहीं बची।
उसे डर है सिंधु से इंडस बन चुकी,
यह नदी जिसका आविर्भाव कभी स्थल खंड में उत्थान के पहले हुआ था। पहले से प्रवाहित होने वाली
यह जलधारा कहीं विलुप्त प्राय सरस्वती में तो परिणित नहीं हो जाएंगी?
क्या आगे चलकर वह स्वयं के अस्तित्व और अस्मिता को बचा सकेंगी?
मन ही मन सोच रही है न्याय कौन करेगा? वह न्यायालय जिनकी स्वयं की भाषा ही इंग्लिश है? क्या वे इस भाषा को समझ पाएंगे?
क्या मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव है?
दुखी मन से हिंदी सोच रही है विकल्प सुख ,स्वतंत्रता , और कभी-कभी स्वच्छंदता भी देते हैं। लेकिन,
क्या हर रिश्ते में विकल्प होना अच्छी बात है ?
(एकता शर्मा, जयपुर,
यह मेरी मौलिक और अप्रकाशित रचना है