" अकेलापन मेरा रहबर "
दीवारों से गले लग कर कर लेती हूँ मन हल्का ।
अकेलापन है मेरा रहबर
मैं कभी न भागूं इससे घबराकर।
किसको सुनाऊँ और क्यों सुनाऊँ
किसे है फुर्सत सुनने का ।
दीवारों से गले लग कर
कर लेती हूँ मन हल्का ।
सूनापन मेरा साथी है,
संग रहता है बन कर रहबर।
सूनेपन में जब खो जाती हूँ,
तब आकर मिलते हैं परमेश्वर।
यहाँ आना है अकेला
और जाना भी है अकेला।
मत घबराना अकेलेपन से
बना लेना उसको रहबर ।
ऐसा समझाते हैं,
मेरे एहसास में बसकर।
फिर ईश्वर बन जाते हैं मेरे रहबर
कहते हैं कलम उठा और सृजन कर
अकेलापन ही होता है ,
सृजन करनें का सुनहरा अवसर।
जीवन में जब जब आए अकेलापन
बदल लेना उसे अपनी ताकत में,
लेखनी से उद्धृत किया करना ,
कृति अपनी सुन्दर सुन्दर।
अकेलापन से मत घबराना
बना लेना उसे अपना रहबर ।
गोमती सिंह
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