महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के प्रथम आचार्य
Acharya Mahavir Prasad Dwivedi, the first great critic and reformer of modern Hindi literature, revolutionized Hindi prose and grammar through the Saraswati magazine and inspired generations of writers during the Hindi renaissance. इसके बाद द्विवेदी जी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन वर्ष १९०३ में उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ तब आया जब वह हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के संपादक नियुक्त हुए। क्या आप जानते हैं कि बाबू श्यामसुंदर दास के संपादक पद से इस्तीफ़ा देने के बाद द्विवेदी जी को सरस्वती पत्रिका की कमान सौंपी गई थी। बता दें कि द्विवेदी जी वर्ष १९०३ से १९२० तक सरस्वती पत्रिका के संपादक रहे और उन्होंने अपना सारा जीवन संपादन और हिंदी भाषा के सुधार में लगा दिया।

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म ९ मई १८६४ को उत्तर प्रदेश के जनपद रायबरेली के एक गाँव दौलतपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘रामसहाय द्विवेदी’ था। इनका बचपन दौलतपुर में ही बीता था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव के स्कूल में ही हुई थी। इसके बाद जब वे बड़ी कक्षा में प्रवेश लेने के लिए बड़े स्कूल में गए तो उनके पिता ने गलती से उनका नाम ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी लिखा दिया जबकि स्कूल की पाठशाला में उनका नाम महावीर सहाय द्विवेदी से दर्ज़ था। आगे चलकर वे इसी नाम से हिंदी के महान साहित्यकार के रूप में जाने गए।
महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के शिखर पर विद्यमान रहेंगे, उनकी पहचान हिंदी साहित्य के प्रथम आचार्य के तौर पर भी की जाती है।
द्विवेदी जी ने स्कूली शिक्षा के बाद स्वाध्याय ही अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने किशोरावस्था से ही जीवनयापन हेतु रेलवे में विभिन्न पदों पर रहते हुए नौकरी की। कुछ वर्ष रेलवे में कार्य करने के बाद वह झांसी में ज़िला ट्रैफिक अधीक्षक के कार्यालय में मुख्य क्लर्क नियुक्त हुए। नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपनी साहित्य सृजन यात्रा का भी आरंभ किया। वहीं लगभग पांच वर्षों के कार्यकाल पूरा होने के दौरान भी उनकी उच्चाधिकारी से अनबन होने लगी जिसके कारण उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
इसके बाद द्विवेदी जी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन वर्ष १९०३ में उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ तब आया जब वह हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के संपादक नियुक्त हुए। क्या आप जानते हैं कि बाबू श्यामसुंदर दास के संपादक पद से इस्तीफ़ा देने के बाद द्विवेदी जी को सरस्वती पत्रिका की कमान सौंपी गई थी। बता दें कि द्विवेदी जी वर्ष १९०३ से १९२० तक सरस्वती पत्रिका के संपादक रहे और उन्होंने अपना सारा जीवन संपादन और हिंदी भाषा के सुधार में लगा दिया।
द्विवेदी जी ने केवल हिंदी गद्य की भाषा का परिष्कार किया बल्कि लेखकों की सुविधा के लिए व्याकरण और वर्तनी के नियम स्थिर किए। वहीं संपादन के शुरूआती दौर में उन्हें लेखकों की कमी और प्रतिष्ठित लेखकों के बीच में साथ छोड़कर चले जाने के कारण स्वयं ही लेख लिखने पड़ते थे।
तकरीबन दो दशकों तक ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन करने के बाद जब द्विवेदी जी वर्ष १९२० में गंभीर रूप से बीमार पड़े और उनके ठीक होने की आशा नहीं रही। उस समय भी उन्होंने पहले से ही कई लेख लिखकर प्रेस को दे दिए ताकि उनकी जगह जब तक कोई नया संपादक नहीं आ जाता तब तक सरस्वती का प्रकाशन सुचारु रूप से चलता रहे। इस तरह ‘सरस्वती’ का संपादन छोड़ने के कुछ वर्षों बाद उनका २१ दिसंबर १९३८ को निधन हो गया।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिनमे मुख्य रूप से निबंध, आलोचना, इतिहास लेखन व संपादन शामिल हैं।
हिन्दी नवजागरण में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व, सृजन क्षमता, विद्वता, गहन शोधपरक मूल्यांकन, निरीक्षण व अटूट हिन्दी सेवा में परिलक्षित होता है। उन्होंने सरस्वती जैसी पत्रिका को हिन्दी की सशक्त पत्रिका के रूप में प्रतिस्थापित कर हिन्दी प्रदेश में एक नयी सामाजिक चेतना का प्रसार किया है। इसके माध्यम से उन्होंने हिन्दी नावजागरण में वैचारिक क्रांति उत्पन्न की और नवजागरण से जुड़े लेखकों के प्रेरणास्त्रोत बने। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के पहले लेखक थे, जिन्होंने केवल अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन हीं नही किया था, बल्कि उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा था। उन्होंने अनेक विधाओं में रचना की। कविता, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा, अनुवाद, जीवनी, आदि विधाओं के साथ उन्होंने अर्थशास्त्र, विज्ञान, इतिहास आदि अन्य अनुशासनों में न सिर्फ विपुल मात्रा में लिखा बल्कि अन्य लेखकों को भी इस दिशा में लेखन के लिए प्रेरित किया। द्विवेदी जी केवल कविता, कहानी, आलोचना आदि को हीं साहित्य मानने के विरूद्ध थे। वे अर्थशास्त्र, इतिहास, पुरातत्व, समाजशास्त्र आदि विषयों को भी साहित्य के हीं दायरे में रखते थे। वस्तुतः स्वाधीनता, स्वेदेशाी और स्वावलंबन को गति देने वाले ज्ञान-विज्ञान के तमाम अधारों को वे आंदोलित करना चाहते थे। इस कार्य के लिए उन्होंने सिर्फ उपदेश नहीं दिया बल्कि मनसा, वाचा, कर्मणा स्वंय लिखकर दिखाया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म कब हुआ था में अब जानिए महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं :
निबध-संग्रह
रसज्ञ रंजन
साहित्य-सीकर
साहित्य-संदर्भ
अद्भुत-आलाप
गद्य रचनाएँ
वैज्ञानिक कोश
नाट्यशास्त्र
हिंदी भाषा की उत्पति
संपत्तिशास्त्र (अर्थशास्त्र पर लिखी किताब)
कालिदास की निरंकुशता
वनिता-विलाप
कालिदास और उनकी कविता
सुकवि संकीर्तन
अतीत स्मृति
महिला-मोद
वैचित्र्य-चित्रण
साहित्यालाप
कोविद कीर्तन
दृश्य दर्शन
पुरातत्व प्रसंग
सम्पादन
सरस्वती साहित्यिक पत्रिका
अनुवाद
विनय विनोद– (वैराग्य शतक – भृतहरि)
विहार वाटिका– (गीत गोविंद – जयदेव)
स्नेह माला– (शृंगार शतक – भृतहरि)
गंगा लहरी – (गंगा लहरी – पंडितराज जगन्नाथ)
ऋतुतरंगिणी – (ऋतुसंहार – कालिदास)
मेघदूत– (कालिदास)
कुम्ाारसंभवसार (कुमारसंभवम – कालिदास)
भामिनी-विलास (भामिनी विलास- पंडितराज जगन्नाथ)
अमृत लहरी (यमुना स्रोत – पंडितराज जगन्नाथ)
बेकन-विचार-रत्नावली (निबंध – बेकन)
स्वाधीनता (ऑन लिबर्टी – जॉन स्टुअर्ट मिल)
हिंदी साहित्य आचार्य जी के उत्कृष्ट योगदान का सदैव ऋणी रहेगा। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को हिंदी साहित्य की आत्मा कहें या माथे का झुमर, कुछ भी कह लो अतिश्योक्ती नहीं होगी। दशकों दशक कहें या कई सताब्दी के बाद ऐसे युग पुरुष पैदा होते हैं।
अमित तिवारी
मुंबई, महाराष्ट्र
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