मेघा की दास्तां

दोनों का दाम्पत्य जीवन सुखमय हुआ। पति भी मेघा को पढ़ाई के लिए बहुत सहयोग देते हैं और विवाह उपरांत मेघा ने दस एग्जाम क्लियर किये। विदेश से भी नौकरी के अवसर मिले, लेकिन ठुकरा दिये। मेघा ने वकालत स लेकर, दर्शननिष्णात ( एमफिल अंग्रेजी) की पढ़ाई संपूर्ण की । अनेकों कालेजों में अध्यापन के अवसर मिले लेकिन कुछेक प्रतिकुल परिस्थितियों के चलते ज्वाइन नहीं किया।

Mar 21, 2024 - 13:59
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मेघा की दास्तां
barish

मेघा माता पिता की लाड़ली बेटी है और एक भाई है जो सेना में नौकरी करता है। मेघा पढ़ाई में होशियार थी और हमेशा प्रथम आती रही। एक नामी कालेज से बैचलर ऑफ सांईस किया और उसके पश्चात् दिल्ली आ गई। पिताजी
भी दिल्ली में ही नौकरी करते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स अंग्रेजी विषय में फर्स्ट श्रेणी में की और वहां के ही एक नामी अस्पताल में नौकरी मिल गई क्योंकि पढ़ाई में अव्वल थी और दूसरे अंग्रेजी भी फराटेदार बोलती थी। इस वजह से सेलेकशन हो गया। मेघा जितनी पढ़ाई-लिखाई में अव्वल है, उससे भी अच्छी उसकी इंसानियत थी। एकदम साफ दिल की । स्वयं के बारे में उससे कोई भी पूछते तो सब कुछ बता देती थी मानो सत्य की जीवन्त प्रतिमा है। सब कुछ बता देना शायद बाद में मेघा की कमजोरी बन गई थी। मेघा के माता-पिता बहुत चिंतित रहने लगे कि बेटी बड़ी हो गई है और क्यों न उसके लिए योग्य वर की तलाश की जाए। पिता मेघा को इस बात की भनक तक नहीं लगने देते थे कि उसकी कहीं कुड़माई हो रही है। मेघा का ध्येय पढ़ाई-लिखाई में ही है। कुछ समय पश्चात् उस नौकरी से रिजाइन दे डाला और दूसरी नौकरी में चयन हो गया। मेघा ने जहां भी नौकरी के प्रयोजन से प्रयास किया, हर जगह कामयाब होती रही। मानों इस पच्चास करोड़ बेरोजगार वाले मुल्क में भी नौकरी उसके पीछे-पीछे भागती थी। मेघा के सपने बड़े थे लेकिन कहीं न कहीं सुक्ष्म सा समझौता करना ही पड़ता। माता पिता चाहते हैं कि अब बेटी ब्याह देनी चाहिए। हम भी बुजुर्ग हो चले हैं। अल्प समय में ही मेघा का विवाह सुशील, शिक्षित व सरकारी नौकरी वाले राजन नाम के युवक से हुआ।

दोनों का दाम्पत्य जीवन सुखमय हुआ। पति भी मेघा को पढ़ाई के लिए बहुत सहयोग देते हैं और विवाह उपरांत मेघा ने दस एग्जाम क्लियर किये। विदेश से भी नौकरी के अवसर मिले, लेकिन ठुकरा दिये। मेघा ने वकालत स लेकर, दर्शननिष्णात ( एमफिल अंग्रेजी) की पढ़ाई संपूर्ण की । अनेकों कालेजों में अध्यापन के अवसर मिले लेकिन कुछेक प्रतिकुल परिस्थितियों के चलते ज्वाइन नहीं किया। कुछ समय पश्चात् मेघा की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई। काफी लोगों ने साक्षात्कार में भाग लिया, लेकिन मेघा की प्रखर प्रज्ञा, मृदुभाषी व संप्रेषण के चलते वे लोग कहीं टिक नहीं पाते थे। मेघा ने नौकरी करते करते तमाम सरकारी एग्जाम अच्छे रैंक से पास किये लेकिन हर बार साक्षात्कार में विफल रही क्यों कि दोष मेघा का नहीं व्यवस्था का है। दूसरे कुछेक ईर्ष्यालु लोग भी मेघा की तरक्की से नाखुश हैं और वो नहीं चाहते कि मेघा आगे बढ़े। उसमें कुछ अपने भी है और कुछ अजनबी किस्म के लोग। मेघा की कर्मभूमि एक ऐसे क्षेत्र में हैं जहां के कुछेक लोग अंधविश्वासों से घिरे हुए हैं। वे भी परोक्षरूप से मेघा के व्यक्तित्व से जल रहे हैं और उन्होंने मेघा को कुछ मंत्र युक्त चीज़ धोखे से खाने को दी जिससे मेघा तनावग्रस्तव नकारात्मक हो गई। अब उसे लगता है कि मेरा जीवन एक सीमित सा बन कर रह गया है। अनेकों तरह के विचार मन में घर कर गये। अपनी इस समस्या को बतायें तो बतायें पर किस को । घर वाले भी मजाक में इस बात को लेने लगे क्योंकि आधुनिक युग वैज्ञानिक हैं और कौन ऐसा करता है। ऐसे जादू टोने में विश्वास करता है। मेघा बहुत परेशान हो गई । हनुमंत चालीसा पढ़कर समय व्यतीत करने लगी। रात्रि में भयावह चीजें दिखना व नींद न आना मानों मेघा के जीवन के अंग बनकर रह गये थे। मेघा का जो संघर्ष है वो आम भारतीय

नारी के लिए एक मिसाल है। किस प्रकार मेघा सब कुछ होने पर भी स्वयं को असह्य महसूस कर रही है। माता पिता और पति भी चिंता ग्रस्त हो गये कि आखिर ये हो क्या रहा है?

मेघा ने डटकर इन पिशाची शक्तियों का सामना किया। एक समय तो ऐसा भी आया कि उसने आत्महत्या का मन बना लिया था लेकिन उसकी एक मासूम सी बच्ची शनाया है जो उसे इससे बाहर निकाल गई मानों शनाया उसके
लिए जीवनदायिनी बनकर आईं हैं।

व्यवस्था की खामिया देखिए मेघा ने पच्चास पेपर क्लियर किये लेकिन हर बार इंटरव्यू में चयन नहीं हुआ। मेघा एक सरकारी स्कूल में सामान्य मास्टर बनकर रह गई थी। वक्त का पासा देखिए जब पलटा तो भनक तक नहीं
लगी किसी को।

मेघा का सरकारी कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयन हो गया तो बधाईयां देने वही लोग सबसे पहले पहुंचें जो उस बुरे कालखंड में विषधारी बनकर डस रहे थे। मेघा स्वयं भी आश्चर्य में है कि वाकई में प्रोफेसर हो गई हूं।
ख़ुशी के आंसुओं की धारा उसकी आंखों से प्रवाहित होने लगी। धन्य है यह संयम की देवी और ज्ञान की देवी जिसने इतना प्रतिकूल वक्त सहन किया और गिरकर स्वयं को संभाला और एक काबिल बनाया।

कहते हैं कि शीघ्र मिली कामयाबी इंसान के मूल्य खत्म कर देती है। यही मेघा आज कालेज की प्रिंसिपल हो गई है और समाज के कमजोर वर्गों के बच्चों के हितार्थ भी कार्य कर रही है। उसने अपना एक एन जी ओ बनाया है जहां
पर असहाय बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है।

ऐसी महान विभूति मेघा को सलाम है इस समाज का ।

छविंदर शर्मा 

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