" दर्पण समाज का "

तभी उन तथाकथित मौसी को अपनें वो दिन याद आ गए जब उनके बड़े लड़के की नियुक्ति बैंक क्लर्क  के पोस्ट में हुई थी। कितना मजा आता था उन दिनों, कई-कई गाँव से लड़कियों के रिश्ते आते  थे । तभी उसे वो वाकयात याद आनें लगा जब अजय और वीरू  रिश्ते के लिए एक लड़की को देखने गये थे । 

Mar 19, 2024 - 18:22
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" दर्पण समाज का "
society

बाजे गाजे के साथ दुल्हा-दुल्हन की डोली आँगन में आई । दुल्हा-दुल्हन का मौर परछन का रस्म किया जा रहा था । दीदी, बुआ, काकी, बड़ी माँ, सभी अत्यंत उल्लास के साथ मौर परछन के रस्म में शामिल हो रहे थे । 

लेकिन इन सभी रस्म अदायगी को दूर बैठी दुल्हे की  एक मौसी देख देखकर चिंता में डूबी जा रही थी ।

मन ही मन सोच रही थी-कैसे इन लोगों को ऐसा मुर्गा मिल जाता है जो अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए अपनी बेटी इनके बेटे को ब्याह देते हैं। 

हमें तो काला चोर नहीं मिल रहा जो आकर हमसे कहे कि हमारी बेटी का ब्याह अपनें लड़के के साथ कर लो । 

तभी उन तथाकथित मौसी को अपनें वो दिन याद आ गए जब उनके बड़े लड़के की नियुक्ति बैंक क्लर्क  के पोस्ट में हुई थी। कितना मजा आता था उन दिनों, कई-कई गाँव से लड़कियों के रिश्ते आते  थे । तभी उसे वो वाकयात याद आनें लगा जब अजय और वीरू  रिश्ते के लिए एक लड़की को देखने गये थे । 

खूब भोजन -पानी किए, खातिरदारी कराए और झूठा आस्वासन देकर वापस आ गए ।

अपने घर में बैठी अजय की माँ यानि तथाकथित मौसी जी पुनः अंदर पुनः बाहर जाते हुए उन लोगों के आने की राह देखते हुए मन ही मन सोच  रही थी, ये कमअक्ल लड़के लोग कहीं कोई बात में फंस न जाएँ,  रिश्ता तय करनें वाली बात कह कर न आ जाएँ । कितना तो समझाई हूँ खूब खाना पीना, मजे करना करना  और गोलमोल बात करके वापस  आ जाना ।  

पसीने से तर बतर मौसी हे राम! क्या होगा करके बेहद परेशान हुई जा रही थी ।

तभी दरवाज़े के पास बाइक रूकखने की आवाज़ सुनाई दी और वह दौड़ कर बाहर आई । अजय की माँ हांफते स्वर में कहने लगी आओ आओ अंदर आओ उसने ऊंगली मुंह पर रखते हुए चुप रहनें का इशारा किया।  देखो बेटा यहाँ बाहर में कुछ मत बोलना कोई सुन लेगा। शादी ब्याह की बात इस तरह बाहर में नहीं करते बेटे । 

उन दोनों को अंदर लाकर एक कमरे में तखत में बैठाकर फिर पंखा चलाकर बड़े ही इत्मीनान से पूछने लगी - मज़ा आया वहां, स्वादिष्ट भोजन बनाए थे कि नहीं , खीर बनाकर रख दिए थे कि चिकन वगैरह कुछ बनाए थे उन लोगों ने । उसका तो उद्देश्य ही यही था कि खा-पी कर वापस आ जाना है । इसीलिए लड़की दिखने में कैसी,  उसके बात व्यवहार कैसे लगे, इस तरह के प्रश्नों से कोसो दूर थी मौसी । 

कितना अंधा हो गया है आजकल समाज; जब एक लड़का योग्य हो जाता है सरकारी नौकरी मिल जाती है तब उसके माँ-बाप के पैर जमीन पर नहीं पड़ते, ऐसा महसूस करते हैं कि सारी कायनात हमारी हो गई। किन्तु  सभी बच्चे योग्य नहीं  होते कभी-कभी कोई बच्चा निकम्मा, निठल्ला भी हो जाता है । मगर उस वक्त तो उस मौसी को होश नहीं था कि उसका छोटा बेटा किसी काम का नहीं है । मगर  इसी मद में मदहोश थी वह मौसी । 

जिस तरह  भगवान के बनाए पांच उँगलियाँ एक बराबर नही होती ठीक उसी तरह एक ही गर्भ   के सभी बच्चे काबिल नहीं हो पाते  , लेकिन ब्याह तो उसका भी करना है । इस तरह उसे पता ही नहीं चला कि कब आँगन में मौजूद सभी संबंधियों ने मौर परछन कर लिया । तभी एक सुआसिन ने आकर कहा-चलिए मौसी मौर परछन कर लीजिये।  तब बोझिल कदमों से चलते हुए वह मौर परछन करने लगी  और डोली में बैठी दुल्हन की बलैया लेनें लगी ।मन ही मन कहा - हे भगवान अगली लगन में मेरे छोटे बेटे के लिए ऐसी ही लक्ष्मी का आगमन हो ! 

फिर क्या था लड़कियों को लाख उपेक्षित करे ये समाज ; लेकिन लड़कियां तो वास्तव में देवी ही होती हैं और किसी देवी के सामने मांगी हुई मन्नत अधुरी नहीं रहती ।

जैसा कि विधि का विधान है पशु-पक्षी के भी जोड़े होते हैं, अतः अगले लग्न में उस मौसी के छोटे लड़के का भी विवाह हो गया । 
           
गोमती सिंह 

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