एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य के लिए योग
This article highlights the connection between Earth and Yoga as described in Hindu scriptures and modern global thought. It discusses the origin and evolution of Earth, biodiversity, environmental balance, and PM Narendra Modi’s initiative for International Yoga Day. Yoga not only ensures physical and mental well-being but also promotes sustainability, discipline, and harmony — the true spirit of “Yoga for One Earth, One Health.”
हिन्दू शास्त्रों में पृथ्वी का वर्णन बार-बार आता है। पृथ्वी को धरती,भू,धरा भी कहा गया है। पृथ्वी को उसकी धारण करने की असीमित क्षमता व सहनशीलता के एवरेस्ट सरीखे प्रतिमान स्थापित करने के कारण भारतीय संस्कृति में माँ के बराबर दर्जा दिया जाता है।
वैज्ञानिक व भौगोलिक दृष्टि से पृथ्वी सौरमंडल का जीवन सम्भावनाओं से परिपूर्ण एकमात्र ग्रह है। जहाँ पर २९ज्ञ् थलीय क्षेत्र व ७१ज्ञ् जलीय क्षेत्र है। विशाल महासागरों, सागरों, नदियों, झीलों, ग्लेशियरों से सुसज्जित होने के कारण पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है। तथ्यों के आधार पर पृथ्वी की उत्पत्ति करीब ४.५४ अरब वर्ष पूर्व हुई थी। सर्वप्रथम जलीय जीवों का विकास हुआ और बाद में अपने अंगों को स्थलीय वातावरण के अनुकूल करते रहने से स्थल पर भी जीवों का क्रमिक विकास आरम्भ हुआ। इसी विकास ने जैवविविधता को जन्म दिया। पृथ्वी पर जैव विकास की सतत प्रक्रिया के कारण लाखों प्रजातियां नष्ट हो गईं तो लाखों उत्पन्न भी हुईं और आज भी जल-थल-नभ में विज्ञान निरन्तर नई प्रजातियों की खोज में उद्यत है। यह तब है जब जीवन का प्रमुख स्रोत माने गए सूर्य से पृथ्वी १५ करोड़ किलोमीटर दूर है और सूर्य को प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में ८ मिनट २० सेकण्ड का समय लगता है। पृथ्वी पर वैसे तो लाखों जीव-जंतु रहते हैं जिनमें मनुष्य को सर्वाधिक बुद्धिमान माना गया है। यही मानव फसल भूमि के रूप में १५१०-१६११ मिलियन हेक्टेयर, चारागाह के रूप में २५००-३४१० मिलियन हेक्टेयर भूमि, प्राकृतिक जंगल के रूप में ३१४३-३८७१ मिलियन हेक्टेयर भूमि, स्थापित जंगल के रूप में १२६-२१५ मिलियन हेक्टेयर भूमि,शहरी क्षेत्र के रूप में ६६-३५१ मिलियन हेक्टेयर भूमि व अप्रयुक्त, उत्पादन के रूप में ३५६-४४५ मिलियन हेक्टेयर भूमि का उपयोग कर रहा है। कुल मिलाकर पृथ्वी के बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने सदृश है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का योग दिवस के प्रति योगदान ऐतिहासिक और विश्वव्यापी है। उन्होंने २७ सितंबर २०१४ में संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग को मानवता के लिए अमूल्य उपहार बताते हुए `अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' मानने का प्रस्ताव रखा, जिसे रिकॉर्ड १७७ देशों का समर्थन मिला। ११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र ने हर साल २१ जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया. इसके बाद २१ जून २०१५ में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। उनके प्रयासों से योग आज वैश्विक मंच पर सम्मानित है। मोदी जी स्वयं हर वर्ष योग दिवस पर योगाभ्यास करते हैं और देश-विदेश के लोगों को प्रेरित करते हैं। उनके नेतृत्व में योग न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत बना, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का माध्यम बन गया है।
आधुनिक परिदृश्य में विकास:- आज विज्ञान की उन्नति ने जहाँ लोगों के जीवन को सुगम बनाया है वहीं तमाम अनचाही चुनौतियों का सामना करने की स्थिति में भी ला खड़ा कर दिया है।आज बढ़ते प्रदूषण,जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी पर जनजीवन को अस्त- व्यस्त कर दिया है। ऐसी गम्भीर चुनौतियों का सामना करने के योग एक उम्मीद की किरण लेकर आया है।
योग क्या है:- योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसका उद्देश्य शरीर,मन और आत्मा में सुंदर समन्वय स्थापित करना है।धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं योगः कर्मसु कौशलं अर्थात कर्म द्वारा कुशलता प्राप्त करना ही योग है।योग को यदि समता व सन्तुलन से जोड़ कर देखा जाए तब हम सुख-दुःख, मान-अपमान,सिद्धि-असिद्धि आदि विरोधी भावों में समान रह सकते हैं। योग चित्त वृत्तियों का निरोध रूप है इससे यह भी कहा जा सकता है कि योग आन्तरिक वृत्तियों का नाम है।
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कोविड का भयावह दौर:-
२०१९ में जब चीन से प्रसारित कोविड नाम के एक वायरस ने पूरी दुनियां को शवों के ढ़ेर में बदल दिया था तब भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भारतीय मेधा पर भरोसा किया परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों ने स्वदेशी वैक्सीन का निर्माण कर दिखाया जिससे अपने देश व कई अन्य देशों के नागरिकों की जान बचाई जा सकी। उस दौर में जब कार्यालय, विद्यालय, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन, सिनेमाघर, बाजार आदि सब बंद थे।लोग घरों में कैद थे। डर का माहौल था। उस समय योग ने लोगों में तनाव कम किया, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई और लोगों को मानसिक रूप से मजबूत किया। उस दौरान सबसे ज्यादा लाभ उन पेशेवरों को मिला जिन्होंने वर्क प्रâॉम होम किया। उन्होंने ताड़ासन, वक्रासन, पादहस्तासन, त्रिकोणासन, भद्रासन, भुजंगासन, शवासन,पवनमुक्तासन और प्राणायाम करके खुद को स्वस्थ रखा।
योग शाम को भी:- दिन भर की थकान को दूर करने के लिए शाम को पश्चिमोत्तानासन व उत्तानासन कर सकते हैं जो रीढ़ की हड्डी से तनाव कम करते हैं। रात्रि के भोजन के बाद वज्रासन कर सकते हैं। लेकिन सभी आसन एक्सपर्ट की सलाह के पश्चात ही करें। इससे हम समझ सकते हैं आदियोगी भगवान शिव, श्री कृष्ण, महर्षि पतंजलि के समय से प्रचलित योग के महत्व को बाद के आधुनिक काल में योगी अरविंद, स्वामी रामदेव आदि महान व्यक्तियों ने घर-घर तक पहुँचा दिया है।
योग का अभ्यास क्यों:- योग एक प्रकार से होम्योपैथी की दवाई है जो देर से ही सही परन्तु जड़ से बीमारी काे नष्ट करता है। २०२५ में योग दिवस की थीम एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य आज एक नीतिगत आवश्यकता है। नियमित योगाभ्यास से मांसपेशियों की मजबूती, रक्तसंचार में सुधार व पाचनतंत्र की कार्यक्षमता बढ़ती है। हृदय स्वस्थ रहता है जिससे उच्च रक्तचाप, मधुमेह दूर रहते हैं। मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है जिस कारण हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं।जब योग व्यक्ति के शरीर व मन को संतुलित करता है तब उसी मनुष्य के अंदर पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने की नींव भी रखता है। योग न केवल व्यक्ति को स्वस्थ बनाता है बल्कि प्रकृति व समाज के प्रति जिम्मेदार बनाता है। एक जागरूक योगी समाज, पर्यावरण व अर्थव्यवस्था की भलाई में यथासम्भव योगदान देता है। योग एकजुटता व समरसता को बढ़ावा देता है, हमें आत्मनियंत्रण व अनुशासन सिखाता है।यह हमारे भीतर सकारात्मक भावनाओं को जागृत करता है। नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है जिससे हमारे समग्र जीवन की गुणवत्ता सुधरती है। अतः योग को केवल निजी क्रिया न समझ कर वैश्विक उत्तरदायित्व समझना चाहिए। यह केवल अभ्यास की चीज नहीं है बल्कि नीति, शिक्षा व व्यवहार में योग को आत्मसात कर हम अपने जीवन को उत्तम बनाकर समाज कल्याण में महती भूमिका निभा सकते हैं ।
पृथ्वी और योग :-एक दूसरे के पूरक
वर्तमान परिदृश्य में अगर देखा जाए तो पृथ्वी और योग एक दूसरे के पूरक प्रतीत होते हैं। यदि पृथ्वी ही नष्ट हो जाएगी तो समस्त गतिविधियों पर रोक लग जायेगी। पृथ्वी हमारा घर है जो हमें जीवन के लिए जरूरी संसाधन व पर्यावरण प्रदान करता है। पृथ्वी सुरक्षित रहेगी तो जैवविविधता के कारण पारिस्थिकी तंत्र सुरक्षित रहेगा और ग्लोबल वार्मिग से हम कम प्रभावित होंगे। अगर पृथ्वी स्वस्थ नहीं तो हम कैसे स्वस्थ रह सकेंगे। दूषित हवा,पानी,भोजन हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आसान शब्दों में योग इस वैश्विक संकट का प्रभावी समाधान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानता है कि मानव,पशु व पारिस्थिकीय स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं। एक आंकड़े के अनुसार करीब ७५ज्ञ् बीमारियों की जड़ जानवर हैं जो मनुष्य के साथी हैं। अतः तमाम स्वास्थ्य संकटों का समाधान आधुनिक चिकित्सा से न होकर प्राकृतिक जीवनशैली व पर्यावरण संतुलन से ही सम्भव है।
आज का समय असन्तुलन व अस्वस्थता से घिरा है जलवायु परिवर्तन व अनियमित जीवनशैली से बीमारियाँ बढ़ रही हैं। जीवनदायिनी पृथ्वी का अंधाधुंध विकास के क्रम में निरन्तर दोहन किया जा रहा है। आज जीवन की सम्भावनाओं को बरकरार रखने के लिए पानी के संरक्षण, तेल के कम उपयोग,हरित उर्जा के अधिक उपयोग, प्लास्टिक के कम उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग और अधिक वृक्षारोपण की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए योग से परिपूर्ण जीवनशैली को अपनाने की जरूरत है। योग हमें सादगी,संयम और प्रकृति के साथ जुड़कर जीने की प्रेरणा देता है इसलिए (yoga for one earth, one health) केवल एक थीम न होकर बल्कि एक जरूरत सी बन गयी है। अतः स्वयं भी योग करें और दूसरों को भी प्रेरित करें ताकि हमारे सामूहिक प्रयासों से धरती को और बेहतर बना सकते हैं।
।। योग को स्वीकार करो-निज यश का विस्तार करो ।।
डॉ. सौरभ दीक्षित
गोला गोकर्णनाथ (खीरी, उत्तर प्रदेश)
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