मां है ममता की मूरत

नौ माह तक बच्चों को गर्भ में रखती है न जाने कितने दुखों को सहती है, झेलती है फ़िर धरा पर अवतरित करती हैं। वो नारी नहीं, सृष्टि की अवतारी है मां।

Mar 19, 2024 - 17:40
 0  27
मां है ममता की मूरत
mother

ममता की मूरत होती है मां
भोली -भाली सूरत जिनकी वो होती है मां।
मां है तो मैं हूं, ये दुनियां है , जहां है।
वो नारी नहीं जगत जननी अवतारी है मां।
नौ माह तक बच्चों को गर्भ में रखती है
न जाने कितने दुखों को सहती है, झेलती है
फ़िर धरा पर अवतरित करती हैं।
वो नारी नहीं, सृष्टि की अवतारी है मां।
पूरे जीवन में खुद कष्ट सहती है पर,
बच्चों को जरा सी भी पीड़ा नहीं होने देती हैं।
कड़ाके की ठंड हो या पौस की रात या बरसात हो
खुद ठिठुरी रहती है पर बच्चों को गर्म सुलाती है।
गर्मी हो, लू हो या ज्येष्ठ की दोपहरी की बात हो।खुद तपती है, 
जलती है पर बच्चों को अपनी आंचल की छांव में सुलाती है।
मन में लिए सपनों को संयोजती है ,
अपने बच्चों को महान बनाना चाहती है।
कोई गांधी, सुभाष , नेहरू, बुद्ध, अंबेडकर, कलाम
तो कोई छत्रपति शिवाजी, राणा प्रताप तो कोई 
सम्राट अशोक महान बनाना चाहती है।
कोई सीता, सावित्री  लता, कल्पना, मैरी कॉम,
साइना, हिमा दास, इंद्रा, प्रतिभा, ममता,जयललिता
बना देश का मान बढ़ाना चाहती है।
कोई पुतली बाई, जीजा बाई, फूले सावित्री बाई,
या कोई कौशिल्य, यशोदा बन मां की महत्ता बढ़ाती हैं।
कहते हैं लोग पुत्र - कुपुत्र भले हो जाय पर,
माता - कुमाता न हो   यह भाव जगाती है।
खुद भूखे रहती पर बच्चों को भरपेट खिलाती हैं।
बच्चे का क्रंदन जब होता है तो सिकन मां के चेहरे पर आ जाती हैं।
मुस्कान सदा हो चेहरे पर इसके लिए हद से गुजर जाती है।
पुत्र हो या पुत्री दोनों पर समता का भाव रखती है मां।
गोद से उतर कर जब सड़कों पर दौड़ते हैं उनके लल्ले,
तो बेचैनी और घबराहट कि तड़प बढ़ जाती जिसमें वो है मां।
बालपन से युवा मन और युवा से गृहस्थ में जब लोग पंहुचते हैं।
बहूएं आती हैं घर जब तो बवंडर सा हलचल कुछ मच जाती हैं।
कष्टों को सहते आयी हैं सास ससुर से,अब बहुओं की भी आगे सहती है।
ख़ामोश वो रहती हैं पर कुछ न मुंह से कहती है।
उम्र के दहलीज पर जैसे-  जैसे आगे बढ़ती जाती हैं,
उनकी सेवा सुश्रुषा में अब कमी आ जाती हैं।
कैसी विडम्बना है देखो अब, मां को घर से बेघर कर दी जाती है।
जिस आशियाना को बनाया उसने,
उसे हटा कर वृद्धाश्रम में पंहुचाई जाती है।
तड़प कर रह जाती पर उफ़ तक न करती
हमेशा दुआ बरसाती है।
अंत में देह त्याग कर इहलोक से परलोक सिधर जाती है। 
जिंदा कुछ कर न सके सेवा, खिला न सके मिष्टी मेवा।
कहने को घड़ियाली आंसू बहाते हैं लोग।
दान - पुण्य , कर्मकांडो के बहाने जरूरत के सामान
अब धरती से स्वर्ग भिजवाते हैं लोग।
फ़िर भी मां कहती है,मेरी न कर फिक्र,
अपना तू ख्याल रख।
दिखावे के स्वांग में अपना सब कुछ न बर्बाद  कर।
मां हूं मै तेरी, तेरी मां हूं मैं।
ममता, समता, सहजता और सहनशीलता
की परिकाष्ठा है असीम मुझमें।
हां मैं मां हूं तेरी, तेरी हूं मां मैं।


भीम कुमार

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0