कुछ अनसुने स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें मैं भी जानती थी
मैं आज अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली समझ रही हूँ कि मुझे ये अवसर मिला है कि मैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ऊपर कुछ लिखूं । मैं जिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मिली हूँ या जिन्हें नजदीक से देखा और जाना है उनके बारे में जो कुछ मुझे याद है या पता है वह इस आलेख में आपके सामने लाने का प्रयास कर रही हूँ। अब चूंकि बात स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की है तो जाहिर सी बात है कि सारे संस्मरण मेरे बचपन के ही होंगे बताती चलूँ कि मेरा बचपन या मेरा जीवन का आधा समय लखनऊ में ही बीता । मेरे नाना एक संपन्न परिवार के थे और साथ ही सरकारी नौकरी भी करते थे । उनका घर लखनऊ के हुसैनगंज चौराहा पर बर्लिंगटन होटल के पास कैंट रोड पर पहला ही मकान था और पता था 42 कैंट रोड । मेरे पापा की भी सरकारी नौकरी ही थी । शुरू के कुछ वर्ष गांव और कस्बों में पोस्टिंग रही फिर मलिहाबाद से सीधे लखनऊ तबादला हुआ फिर वहीं रहना हुआ ।
महिलाबाद से आने के बाद नाना के घर के सामने सड़क के दूसरी तरफ था पुराना विधायक निवास में एक बहुत बड़ा अहाता था । उसके अंदर अंग्रेजों के जमाने के मकान थे तो ये विचार हुआ कि फिलहाल यहीं कोई कमरा ले लेते हैं । तो हम लोगों ने वहीं पर रहना शुरू किया और मकान नंबर 16 था । अब अगला सवाल स्कूल में दाखिले का आया तो हमारे घर के बहुत सारे लोग जिस स्कूल में पढ़े थे वहीं दाखिला लेने की सलाह मिली । फिर क्या था हम तीनो भाई बहनो ने टेस्ट की तैयारी शुरू कर दी क्योंकि वहाँ उस समय भी लिखित टेस्ट पास करने पर ही दाखिला मिलता था । आखिरकार हमारी मेहनत रंग लाई और मुझे और मेरे बड़े भाई को तीसरी कक्षा और छोटे भाई को पहली में दाखिला मिला । ये वही स्कूल था जिसमें मेरी मौसी ने (जो अभी रिटायर्ड जज हैं) प्रिपरेटरी कक्षा से पढ़ाई करी थी 1954 में और मेरे दूसरे मामा लोगों ने 1964 में प्रिपरेटरी में यही दाखिला लिया था ।
ये स्कूल था शहीदे आज़म भगत सिंह जी की मुंह बोली भाभी और स्वतंत्रता संग्राम के महान वीर भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद की टोली की सक्रिय महिला सदस्य दुर्गा भाभी का । स्कूल का नाम है लखनऊ मोंटेसरी स्कूल । ये स्कूल लखनऊ में कैंट रोड पर थोड़ा आगे जाने पर एक जगह है पुराना किला वहाँ स्थित है ।
दुर्गा भाभी किसी परिचय की मोहताज नहीं है दुर्गा भाभी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी यह वही दुर्गा भाभी हैं जिन्होंने सांडर्स का वध करके भगत सिंह के हुलिया बदलकर गिरफ्त से निकलने के वक्त उनकी पत्नी का अभिनय कर लाहौर से कोलकाता भेजने में भूमिका निभाई थी । स्वतंत्रता संग्राम के उसे दौर में जब एक-एक करके सारे क्रांतिकारी इस दुनिया से विदा ले रहे थे तो दुर्गा भाभी के लिए जीवन काफी मुश्किल हो गया । इधर उनका बेटा भी बड़ा हो रहा था और पुलिस भी उन्हें बार-बार परेशान कर रही थी । लाहौर से उन्हें जिला बदर कर दिया गया ऐसे में 1935 में वह गाजियाबाद आ गई । 1935 में उन्होंने मैट्रिकुलेशन पास किया और 1936 में गाजियाबाद स्थित प्यारेलाल गर्ल्स स्कूल में पढ़ाने लगी । कुछ समय यहाँ स्कूल में अध्यापिका की नौकरी की फिर 2 साल कांग्रेस पार्टी में काम किया फिर वह भी छोड़ दिया । 1939 में उन्होंने मद्रास में मारिया मांटेसरी से मांटेसरी शिक्षा पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त किया । मारिया मांटेसरी 1939 से 1947 तक भारत में रहीं थीं और वह मांटेसरी शिक्षा पद्धति की आविष्कारक थीं । एक साल बाद 1940 में दुर्गा भाभी ने लखनऊ में उत्तर भारत का पहला मोंटेसरी स्कूल खोला । उन्होंने 1975 तक स्कूल स्वयं चलाया बाद में वह गाजियाबाद चली गईं । जीवन के अंतिम समय तक वो अपने विद्यालय से जुड़ी रहीं । पूरी दुनिया से अलग मानो उन्होंने स्वयं को इस विद्यालयके लिए समर्पित कर दिया था । दुनिया ने भी उनकी खोज खबर न ली और 14 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में उन्होंने संसार से विदा ले ली । लखनऊ में आज भी यह विद्यालय है और अब लखनऊ मोंटेसरी कॉलेज के नाम से जाना जाता है ।
लखनऊ मोंटेसरी कॉलेज -
मैं जिस समय की बात कर रही हूँ वह है 1969 की और उस समय भी वह स्कूल बहुत ही बड़ा, आलीशान और शानदार था । स्कूल के मेन गेट के पास ही एक और गेट था जो एक बड़े गलियारे में खुलता था वह गलियारा स्कूल के सबसे पिछले ओर आखिरी छोर तक जाता था, वहां दो घर थे और यही दुर्गा भाभी का निवास था । अब वो दुर्गा भाभी नहीं वरन दुर्गा दीदी के नाम से जानी जाने लगी थीं । दुर्गा दीदी के साथ वाला घर हिना दीदी का था । दुर्गा दीदी स्कूल के अंदर तो जब कोई प्रोग्राम हो या अतिथि आते थे तब ही आती थीं पर उनके घर की तरफ खुलने वाली क्लास की खिड़कियों के आस पास अक्सर टहलती रहती थीं और अंदर उनकी नजर रहती थी । हम लोग भी उनको देख कर किताब में अपनी नजर गड़ा लेते थे । वो सफेद साड़ी में आम तौर पर सर ढके हुए ही दिखती थीं । हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को ताजा नाश्ता और मिठाई वहीं स्कूल में बनती थी सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने वाले हम सभी बच्चों को रोज नाश्ता भी मिलता था । वहां सभी धर्मों के शिक्षक थे और स्कूल में जबरदस्त अनुशासन था । तो यह हुई बात दुर्गा दीदी या दुर्गा भाभी की।
अब मैं एक दूसरे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताती हूँ उनका नाम विचित्र नारायण शर्मा है । यह टिहरी गढ़वाल के रहने वाले थे बचपन से ही देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत थे । महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर जे बी कृपलानी के नेतृत्व में स्वाधीनता संग्राम में कूदे थे। यह 1930 से 1942 तक महात्मा गांधी के चलाए गए आंदोलन में भाग लेते रहे । आजादी के बाद उन्होंने मेरठ को अपना कर्म क्षेत्र बनाया और सामाजिक काम करने लगे 1952, 57 और 62 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मेरठ से निर्वाचित होकर गोविंद बल्लभ पंत, संपूर्णानंद जी के मंत्रिमंडल में सदस्य रहे और मंत्री भी रहे । जीवन भर महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते रहे । उन्हें 1993 में जमनालाल बजाज पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया । वो आजीवन गांधी आश्रम से जुड़े रहे । देश में खादी आश्रम स्थापित करने वालों में वह एक प्रमुख व्यक्ति थे । जीवन पर्यंत स्वतंत्रता संग्राम और खादी ग्रामोद्योग के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करते रहे। विचित्र नारायण शर्मा जी की दो बेटियां और तीन बेटे थे । बेटियां उषा और इंद्रा और बेटे रमेश, उमेश और अखिलेश। मेरे तो वे नाना थे और उनके बच्चे मौसी और मामा । जैसा कि मैंने ऊपर बताया था कि मेरे नाना संपन्न थे और अच्छी सरकारी नौकरी थी, गाड़ी, फोन, चपरासी सब ही थे । मेरी मौसी सबसे छोटी थीं तो वह लखनऊ मोंटेसरी जाती थीं । मम्मी उनसे बहुत बड़ी थी और वह कॉलेज में पढ़ती थीं । विचित्र नारायण शर्मा जी की बेटियां और मेरी मम्मी एक ही कॉलेज में पढ़ते भी थे । अब उस समय तो यह था कि लड़की अकेले कैसे जायेगी तो एक टाइम मेरे नाना जी की गाड़ी जाती लड़कियों को छोड़ आती दूसरे टाइम विचित्र नारायण शर्मा (नाना) की गाड़ी जाती थी । वह उस समय मंत्री थे, दोनों ही घरों में फोन और गाड़ी थी तो उस पर सब चर्चा भी हो जाती थी । दोनों घरों में घरेलू और मधुर सम्बन्ध थे, मम्मी की शादी के बाद बिदा हो कर कुछ घंटे इनके घर पर रहीं फिर एक बार अपने घर आकर, कानपुर के लिए बिदा हुईं । मेरे सबसे बड़े मामा जो पायलट ऑफिसर थे उनकी शादी में तो विचित्र नारायण शर्मा जी की सरकारी गाड़ी ही सजाई गई थी मामा के बैठने के लिए । जब विचित्र नारायण जी के घर पर कोई नहीं होता था तो दोपहर का खाना मामा लोग सचिवालय में ले जाकर खिलाते थे और रात का खाना खाने के लिए वह स्वयं आ जाते थे । जब वह मंत्री नहीं भी थे तब भी वह आते थे और अक्सर रात को पैदल चले आते थे । जब मंत्री थे तब उनका घर शायद मॉल एवेन्यू में था बाद में ला प्लास में रहने लगे थे । उनकी एक बेटी ने तो गांधी आश्रम का ही काम संभाला था उनका खादी का सारा काम ला प्लास से ही हो रहा था । उनकी एक बेटी लखनऊ बॉटनिकल गार्डन में थीं और इनके हसबैंड बोटोनिकल गार्डन में ही वैज्ञानिक थे । उनका नाम शायद डॉक्टर सोम शर्मा था । इनके तीन बेटों में से सबसे छोटे वाले अखिलेश मामा तो अक्सर कैंट रोड वाले हमारे घर में हफ्तों रुकते थे ।
विचित्र नारायण शर्मा -
अब बात करती हूँ स्वतंत्रता संग्राम में मेरे पहचानने वाले तीसरे स्वतंत्रता सेनानी की । जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि हम पुराना विधायक निवास में रह रहे थे 16 नंबर में, तो सन 1974 की बात है, हमारे घर के साथ वाले घर में एक सरदार जी रहने आए शरीर बहुत लंबा, आकर्षक व्यक्तित्व था साथ में उनकी पत्नी भी थी, हम लोग उनसे मिलने गए । उन्होंने हमें बताया कि वो सरदार कुलतार सिंह हैं और भगत सिंह जी के छोटे भाई हैं । हमें तो अपनी आंखों और कान पर विश्वास ही नहीं हुआ । उनसे मिलने का पल गौरवान्वित करने वाला पल था । पता चला कि 1951 में सरदार कुलतार सिंह सहारनपुर में रहने आ गए थे और फिर वहीं बस गए । 1974 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सहारनपुर से विधायक निर्वाचित हुए थे और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे । उन्हें खाद्य और राजनीतिक पेंशन विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया था । तब उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पेंशन से जुड़े ज्यादातर मामले निपटाए । क्योंकि कुलतार सिंह जी पहले तो मात्र विधायक थे इसलिए उन्हें विधायक निवास में रहने के लिए कमरा आवंटित किया गया था वह वही रहते थे जब विधानसभा चलती थी । उसके सिवाय भी उनका और उनकी पत्नी का आना जाना रहता है और क्योंकि उस समय फोन की इतनी सुविधा नहीं होती थी तो विधायक निवास में एक कॉमन फोन होता था इसलिए बात करने के लिए वहां जाना पड़ता था । पर कुलतार सिंह जी के आने से उनके घर में सरकारी फोन लग गया था और इसलिए हमें भी फोन की सुविधा रहती थी, कोई काम होता था तो उनके घर से फोन कर लेते थे । उनके यहां से ताजी सब्जियां और घर का बना मक्खन हमारे यहां नियमित आती थी क्योंकि सहारनपुर में उनका फार्म हाउस था । थोड़े समय बाद जब उनको मंत्री पद मिला तो उनको मंत्री का सरकारी आवास आवंटित हो गया फिर वह वहां से चले गए पर हमारे संबंध उनके के साथ बहुत दिनों तक बने रहे।
अंत में मैं बात करूंगी ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की जिनका नाम शायद बहुत कम ही लोगों ने सुना हो । उनका नाम था चिरंजीलाल पालीवाल विधायक निवास में ही रहते थे । जहां तक याद है 9 या 10 नंबर का कमरा था वह उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के छिबरामऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे । उस समय उनके भाई का परिवार भी वहीं रहता था । उनके बच्चे हमारी ही उम्र के थे, हम उनके साथ ही समय बिताते बड़े हुए । चिरंजी लाल पालीवाल जब भी आते थे तो हमारे घर ताजी सब्जियां लाते थे । उस समय यूरिया का चलन बढ़ने लगा था तो वह यह बताना नहीं भूलते कि इसमें यूरिया नहीं पड़ा है यह गोबर की खाद से तैयार है, यह पौष्टिक है इसे खाना चाहिए । उनसे भी हमारी बहुत आत्मीयता और घरेलू संबंध रहे हैं ।
रचना दीक्षित
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