रेडियो
मेरे दादा जी को सुनाता रोज खबर, लगाता हमारे लिए खबरो का अंबर,
बाल मन की बाल कल्पना है ये,
मोबाइल का लगता पिता है ये,
बिना तारो के भी देता संदेश है ये,
रेडियो नाम से जाना जाता है ये ।
मेरे दादा जी को सुनाता रोज खबर,
लगाता हमारे लिए खबरो का अंबर,
देता है देश विदेश की पल पल खबर,
दिल का हाल अपना जाने हर दिलबर ।
क्रिकेट की कमेंट्री के वो बोल,
देना सुबह शाम मौसम को तौल,
ना जाने क्यो लगता घर सा रोल,
करता हम को एक जगह कंट्रोल ।
अब भी लगता है उसका जमाना,
टीवी के चक्कर मे इसे ना गंवाना,
'ये है आकाशवाणी' प्यार भरा बोलना,
जैसे चिङिया का आंगन मे चहचाना।
संजय जांगिड. 'भिरानी'
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