शिवानी का व्यक्तित्व और कृतित्व

1935 में शिवानी की पहली कहानी 12 साल की उम्र में हिंदी की पत्रिका 'नटखट' में प्रकाशित हुई। यही वह समय था जब वह तीनों भाई बहनों को शांति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'विश्व भारती विश्वविद्यालय' में अध्ययन के लिए भेजा गया। शिवानी शांतिनिकेतन में एक और 9 साल तक रही और 1943 में स्नातक के रूप में वहां से निकल गई। शांतिनिकेतन में बीते वर्षों के दौरान उनके गंभीर लेखन की शुरुआत हुई।

Mar 22, 2025 - 11:28
Mar 22, 2025 - 11:31
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शिवानी का व्यक्तित्व और कृतित्व
Shivani's personality and work
 प्रसिद्ध लेखिका शिवानी जी का जन्म 17 अक्टूबर 1923 ई- को प्रातः काल के समय विजयदशमी के दिन सौराष्ट्र गुजरात के राजकोट में हुआ था। लेखिका शिवानी ने हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। जीवन में आए अनुभव अध्ययन चिंतन मनन का ही प्रतिफल शिवानी का साहित्य रहा है। लेखन के विषय नारी जीवन, नारी मनोविज्ञान, सामाजिक विषमता और उसका विरोध आदि रहे हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी ऐसी शख्सियत रही है। जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ रही है। शिवानी जी का असल नाम गोरापंत था, लेकिन लेखन जगत में शिवानी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
हिंदी की सर्वाधिक लोकप्रिय कथा लेखिका गोरापंत शिवानी जन्मी भले ही गुजरात में पर उनके व्यक्तित्व में कुमाऊं एवं बंगाल की संस्कृति का अद्भुत मिश्रण रहा।
जीवन परिचय (व्यक्तित्व): गोरापंत शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर 1923 को गुजरात में हुआ था। जहां उनके पिता अश्वनी कुमार पांडे राजकोट रियासत में शिक्षक थे। वह कुमाऊनी ब्राह्मण थे। उनकी माँ संस्कृत की विद्वान थी और लखनऊ महिलाविद्यालय पहली छात्रा थी। बाद में उनके पिता रामपुर के नवाब के यहां दीवान और वायसराय की बार काउंसिल के सदस्य बने। इसके बाद परिवार ओरछा रियासत में चला गया जहां उनके पिता ने एक महत्वपूर्ण पद संभाला। इस प्रकार शिवानी के बचपन पर इन विविध स्थान का प्रभाव पड़ा और विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं के अंतर्दृष्टि मिली जो उनके अधिकांश कार्यों में परिलक्षित हुई। लखनऊ में वह स्थानीय महिला विद्यालय लखनऊ की पहली छात्र बनी।
1935 में शिवानी की पहली कहानी 12 साल की उम्र में हिंदी की पत्रिका 'नटखट' में प्रकाशित हुई। यही वह समय था जब वह तीनों भाई बहनों को शांति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'विश्व भारती विश्वविद्यालय' में अध्ययन के लिए भेजा गया। शिवानी शांतिनिकेतन में एक और 9 साल तक रही और 1943 में स्नातक के रूप में वहां से निकल गई। शांतिनिकेतन में बीते वर्षों के दौरान उनके गंभीर लेखन की शुरुआत हुई।
परिवार -शिवानी का विवाह उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में काम करने वाले शिक्षक शुकदेव पंत से हुआ था। जिसके कारण परिवार को लखनऊ में बसने से पहले इलाहाबाद और नैनीताल के प्रियोरी लॉज सहित विभिन्न स्थानों की यात्रा करनी पड़ी। जहां वह अपने अंतिम दिनों तक रहे उनके चार बच्चे साथ पोते और तीन परपोते ।
शिवानी ने कहानियों में नारी मन को बड़ी गहराई से अनुभूत किया है। उनकी कहानियों में नारी की पीड़ा, प्रेम, हर्ष, ईर्ष्या, विवशता, त्याग एवं मुक्ति का स्वर है। नारी पात्र अपनी परिस्थितियों में अपने स्थिति की रक्षा हेतु संघर्षरत है। शिवानी जी ने नारी की कमजोरी, सीमाओं एवं शक्तियों को पहचान कर निष्पक्ष रूप से चित्रित किया है। शिवानी जी नारी को भारतीय संस्कारों का पालन करने हेतु स्वाभिमान की रक्षा करने वाली समर्थ सबला नारी के रूप मैं देखना चाहती है। उन्होंने नारी के विविध रुपो को- परंपरागत नारी, प्रगतिशील, अपराधिनी आदि का चित्रण किया है। स्त्री समस्या को अपना विषय बनाया लेकिन उस रूप में नहीं लिखा जिस रूप में स्वयं महिला लेखिकाओं ने लिखा है। अतः स्त्री विमर्श की शुरुआती गूंज पश्चिम में देखने को मिली है। सन 1960 के आसपास नारी सशक्तिकरण ने जोर पकड़ा जिसमें चार नाम चर्चित है। कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, प्रियम्वदा एवं शिवानी आदि लेखिका ने नारी मन के अंर्तगत एवं आपबीती घटनाओं को कहना शुरू किया और आज स्त्री विमर्श एक वलंत मुद्दा है। साहित्य समाज का दर्पण होता है साहित्य में वही सब वर्णित होता है जो समाज में घटित होता है। एक साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में स्थित स्त्री पुरुषों के जीवन को उनकी समस्याओं का यथार्थ एवं वास्तविक रूप हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
हिंदी में स्त्री प्रश्न पर मौलिक लेखन आज भी काफी कम मात्रा में मौजूद है। स्त्री विमर्श की सैद्धांतिक अवधारणा एवं साहित्य में प्रचलित स्त्री विमर्श की प्रस्थापनाओं की भिन्नता या एकांकीपन के संदर्भ में पहला प्रश्न यही उठता है कि हिंदी साहित्य जगत में स्त्री विमर्श के मायने क्या है? साहित्य जिसे कथा कहानी लेख आलोचना कविता इत्यादि मानवीय संवेदनाओं की वाहक विद्या के रूप में देखा जाता है।
शिवानी के लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादी और परंपरा निष्ठता का जो अद्भुत मेल है। उसकी जड़ें इसी विविधतापूर्ण जीवन में समाहित थी।
समकालीन साहित्यकारों की राय: ममता कालिया के अनुसार हिंदी साहित्य की मुख्य धारा में उनका योगदान कितना रहा यह कहना मुश्किल है। पर यह जरूर है की कहानी के क्षेत्र में पाठको और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विद्या के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी जी को जाता है। उन्होंने कहा कि वह कुछ इस तरह लिखती थी कि लोगों को उसे पढ़ने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था। उनकी कृतियों में यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की। ममता कालिया कहती है कि शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थी जैसे पाठकों के सामने राजा रवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैयार जाए।
शिवानी जी की करीबी रही वरिष्ठ साहित्यकार पद्मा सचदेव के अनुसार जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकाली धर्म युग में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह उसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढ़कर यह एहसास होता है कि वह खत्म ही ना हो उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डूबो देता था। उन्होंने कहा शिवानी भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास में बहुत प्यार पाना था। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थी। उनका साहित्य के क्षेत्र में बड़ा योगदान है पर फिर भी हिंदी जगत में उन्हें पूरा सम्मान नहीं दिया जिसकी वह हकदार थी। शिवानी जी के आखिरी दिनों में भी उनके संपर्क में रही पद्मा सचदेव ने कहा कि उन्हें गायन का काफी शौक था उन्हें आखिर तक कुमाऊं से बेहद प्यार रहा। वहीं के नजारे याद आते थे।
साहित्यिक यात्रा-1951 में उनकी लघु कहानी में मुर्गा हूॅं (मैं मुर्गी हू्ॅं )शिवानी नाम से धर्म युग में प्रकाशित हुई उन्होंने 60 के दशक में अपना पहला उपन्यास लाल हवेली प्रकाशित किया और अगले 10 वर्षों में उन्होंने कई प्रमुख रचनाएं लिखीं जो धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई शिवानी को 1982 में हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया ।
शिवानी एक विपुल लेखिका थीं। उनके ग्रंथ सूची में 40 से अधिक उपन्यास लघु कथाएं और सैकड़ो लेख निबंध शामिल है। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में चौदह फेरे, कृष्ण काली लाल हवेली शमशान चंपा भरवी रति विलाप विषकन्या अप्राधिनी शामिल है उन्होंने अपनी लंदन यात्राओं पर आधारित है।
अपने जीवन के अंतिम समय शिवानी ने आत्मकथात्मक लेखन की ओर रुख किया जो पहली बार उनकी पुस्तक शिवानी की श्रेष्ठ कहानियां में देखने को मिला उसके बाद उनके दो भाग के संस्मरण स्मृति कलश और सोने दे आए, जिसका शीर्षक उन्होंने 18 वीं सदी के उर्दू कवि नजीर अकबराबादी की समाधि से लिया था। 
शिवानी ने अपने अंतिम दिनों तक लिखना जारी रखा और लंबी बीमारी के बाद 21 मार्च 2003 को नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।  
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यह लेख मौलिक और अप्रकाशित प्रकाशित है।
परिचय 
नाम - हरमिंदर कौर
माताजी -श्रीमती मनजीत कौर पिताजी -सरदार राम सिंह
पति- धर्मेद्र सिंह
जन्म स्थान- हापुड़ 
शिक्षा - एम.ए.एजुकेशन ,एम.ए.हिन्दी मोल्लिम इन उर्दू ,B.Ed, रिसर्च इन हिंदी।
साहित्यिक परिचय - कूलकंषा मासिक ई पत्रिका की पदाधिकारी (उत्तर प्रदेश,) गंगा जमुना साहित्यिक मंच की समीक्षक पत्र-पत्रिकाओं ,अखबार, और साहित्यिक मंच पर ऑनलाइन गोष्ठी, मंच पर ऑफलाइन सम्मेलन, आदि गद्य - कहानी , लेख , नाटक आदि।
पद्य में -कविता, दोहे ,गीत ,आदि। दैनिक आर्यावर्त केसरी, कूलकंषा मासिक ई पत्रिका, बरखा बाहर ई- पत्रिका, साहित्य नामा, सफर ऐ हमरंग, सावन का महीना साहित्यशाला स्वाभिमान मासिक ई पत्रिका, लघु कथा मंच, आकाश कविघोष पत्रिका, हिंदी समर्थक मंच लोनी 
मंच-,गंगा जमुना साहित्यिक मंच, कवि स्पर्श, ब्लू विंग राइटिंग, एम एस केसरी पब्लिकेशन आदि ।
ऑनलाइन कवि सम्मेलन मंच-उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि मंचों से ऑनलाइन कवि सम्मेलन
साझा संकलन - साहित्य त्रिविधा 'मैं कवि कैसे बना' की सह संपादिका।
 
पता-Hno.221, अबी हाफिजपुर, तेह-कंठ, जिला-मुरादाबाद, पिन कोड 2445014

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