दक्षिण भारत के तीन प्रसिद्ध स्थान
सने कोयम्बटूर शहर से 30 किमी दूर स्थित ईशा फांउडेशन द्वारा निर्मित 'आदि योगी ' मंदिर दिखाने की योजना बना डाली और हम सब सुबह का नाश्ता करने के उपरांत निकल पड़े कार से मंदिर दर्शन करने व पिकनिक मनाने।
अगले दिन शनिवार की बेटे ने छुट्टी ले रखी थी, अतः उसने कोयम्बटूर शहर से 30 किमी दूर स्थित ईशा फांउडेशन द्वारा निर्मित 'आदि योगी ' मंदिर दिखाने की योजना बना डाली और हम सब सुबह का नाश्ता करने के उपरांत निकल पड़े कार से मंदिर दर्शन करने व पिकनिक मनाने।
1--आदि योगी आश्रम:-
आधुनिक संत और योगी जग्गी बासुदेव भगवान शिव को आदियोगी कहते हैं।ईशा केंद्र के अनुसार आदियोगी पृथ्वी पर आने वाले प्रथम योगी थे और उन्होंने निर्वाण प्राप्त करने के तरीके पर अपना ज्ञान प्राप्त किया ।उनके सात अनुयायी थे जिन्हें हिंदू ग्रन्थों में सप्तर्षियों के नाम से जाना जाता है।खुद को सीमित करने के बजाय वह लोगों की उनकी पूरी क्षमता का विकास करने मे मदद करने के लिए 112 तरफा रणनितियाँ प्रदान करते हैं।यह प्रतिमा मानव प्रणाली के 112 चक्रों का प्रतीक माना जाता है।इसकी अभिकल्पना(डिजाइन) सद्गुरु जग्गी बासुदेव ने की है।उनका विचार है कि यह प्रतिमा योग के प्रति लोगों मे प्रेरणा जगाने का काम करेगी, इसिलिये इसका नाम आदियोगी (प्रथम योगी) रखा गया है।शिव को योग का प्रतीक माना गया है भगवान शंकर ने ही योग की शुरुआत की थी।
कोयम्बटूर का आदियोगी मंदिर:-
सन 2017 मे 24 फरवरी को महाशिवरात्रि के पावन दिन पर भगवान शिव की 112 फुट उंची मूर्ति का अनावरण भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा सद्गुरु ने कराया था।
इस प्रतिमा को ईशा योग फांउडेशन के द्वारा तमिलनाडु के कोयम्बटूर स्थित वेल्लिगिरी की पहाड़ियों के तलहटी में स्थापित किया गया है।यह दुनिया की सबसे उंची शिव मूर्ति है।112 फुट उंचाई कि मूर्ति बनाने में 500 टन वजन का स्टील का प्रयोग किया गया है।इस विशाल कृति का डिजाइन करने मे 2.5 वर्ष का समय और 8 महीने की कड़ी मेहनत लगी।
शिव की इस प्रतिमा का जहाँ धार्मिक और अध्यात्मिक महत्व है वहीं इसका ज्यमितीय महत्व भी है।इसकी 112 फुट उंचाई रखने का एक विशेष कारण है कि शिव ने आदियोगी के रुप मे मुक्ति के 112 मार्ग बताये हैं।
इस मूर्ति के कक्ष को बनाने में सीमेंट और कंक्रीट का उपयोग नही किया गया है।मूर्ति के पास शिव भक्तों के लिए पूजा स्थल का भी निर्माण किया गया है जहाँ ध्यान और जप का विकल्प है।आदियोगी दुनिया की सबसे बड़ी रुद्राक्ष की माला पहने हैं जिसमें 100008 रुद्राक्ष मालायें हैं।
नंदी मूर्ति की विशेषता:-
इसी आधार पर उसकी उंचाई रखी गई है।इसे एक खास तरीके से बनाया गया है।शिव के वाहक नंदी को बनाने के लिए महज 6"से 9" के धातु के टुकड़ों का प्रयोग किया गया है।इस प्रतिमा को तिल के बीज,हल्दी, भस्म और रेत-मिट्टी से भरकर बनाया गया है
'आदियोगी' के विशाल वक्ष के कारण "गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड"मे इस स्थान का नाम दर्ज किया गया है।
इस शिव मूर्ति के पास अक्सर प्रवचन, खेल गतिविधियाँ,रात्रिभोज और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है।यहाँ सभी धर्मों के लोगों का स्वागत है।यह प्रतिमा स्थल प्रातः 6 बजे से
रात्रि 8 बजे तक दर्शन हेतु खुला रहता है।इसको देखने के लिये कोई टिकट नही है।यह सबके लिए फ्री है।
3 डी लेजर शो:-
प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को रात्रि 8 बजे तथा प्रत्येक माह की अमावस्या एवं पूर्णिमा को दिव्य दर्शनम 14 मिनट का प्रोजेक्शन शो है। सद्गुरु की आवाज में आदियोगी की कहानी है।10:30 से 11:30 रात मे संगीत प्रदर्शनी में सभी धर्मों का स्वगात होता है,वैसे यहाँ घूमने के लिए सुबह 9 से 11 और शाम को 4 से 5:30 बजे का समय ज्यादा उपयुक्त होता है।
ईशा केन्द्र:-
इस प्रतिमा से लगभग एक किमी की दूरी पर स्थित है जहां आप पैदल या बैलगाड़ी से पहुंच सकते हैं प्रवेश द्वार एक बड़े पत्थर से निर्मित है।ईशा केंद्र के अंदर मोबाइल, कैमरा ले जाने की इजाजत नहीं है।प्रवेश निशुल्क है।
ईशा केंद्र के अंदर आदियोगी के आगुंतक आदियोगी को वस्त्रम भेंट कर सकते हैं।भक्त आदियोगी प्रतिमा के चारो ओर स्थित 621 त्रिशूलों मे से किसी पर भी काला कपड़ा बांध सकते हैं।
ध्यानलिंग:- यहाँ का प्रमुख केंद्र बिंदु 13'9" उंचा शिवलिंग या ध्यानलिंग है जिसे उर्जा का एक अनूठा और शक्तिशाली रूप माना जाता है।योगेश्वर लिंग पर शंभो मंत्र चार दक्षिणी भारतीय भाषाओं तमिल, तेलुगु,कन्नड़ और मलयालम मे लिखा हुआ है।ध्यानलिंग के घेरे में आने वाले हर मनुष्य के लिए जीवन को उसकी पूरी समग्रता के साथ अनुभव करने की संभावना बनाता है।आध्यात्मिक अर्थ में ध्यानलिंग एक गुरु तथा मुक्ति का द्वार है।स्तंभरहित दो लाख पचास हजार ईंटों से बने हुए गुबंद मे अवस्थित ध्यानलिंग ध्यान के लिए एक गहन स्थान है और सहज आध्यात्मिक के पोषण के लिए एक जीवंत भरोसेमंद स्थान है।
यहाँ दो कृतिम कुंड( सूर्य कुंड -चन्द्र कुंड) पुरुषों और नारियों के लिए अलग अलग है जिससे इच्छुक व्यक्ति स्नान कर आदियोगी की लगभग 2 किमी की प्रदक्षिणा(बाहरीपरिक्रमा)कर शक्तिशाली रूप से प्रतिष्ठित रसलिंगो के साथ ध्यान लिंग में प्रवेश योग साधना को सघन करते हैं।इस जल में डुबकी शारीरक स्वास्थ्य के लिए तो लाभप्रद है ही, इसके अलावा ये ध्यानलिंग की दिव्य उर्जाओं को ग्रहण करने से पूर्व की आदर्श तैयारी भी है।
कार्यक्रम कक्ष:-
82000 स्कावयर फीट मे बना आदियोग .अलायम और 64000 स्कावयर फीट मे बना स्पंद कक्ष विशाल कार्यक्रम कक्ष है जो आश्रम के अनेक आवासीय कार्यक्रमों के लिए एकत्र होने की सुविधा प्रदान करते हैं।
यहाँ योग के चारो पथ ज्ञान, कर्म, क्रिया व भक्ति भेंट किये जाते है।प्रति सप्ताह हजारों लोग केन्द्र में आंतरिक शांति व कल्याण की खोज के लिए आते हैं।
योग केन्द्र में रहने का खर्च:-
अंदर प्रतिदिन रहने के लिए रु.800/ पर कमरा मिल जाता है जिसमें नाश्ता, दोपहर का पेय और रात का खाना शामिल है।दोपहर का भोजन पास के रेस्तरां से खरीदा जा सकता है क्योंकि आश्रम में दोपहर का भोजन नही दिया जाता है।प्रतिमा से कुछ दूर फर ईशा केंद्र के पास कई भोजनालय, रेस्तरां आदि हैं।
शिवरात्रि के दिन जादुई झलक के लिए सीट पहले से बुक करानी पड़ती है जिसका मूल्य ₹ शून्य से ₹ 50000 तक हो सकता है।
कैसे पहुंचे:-
पर्यटक कोयंबटूर हवाई अड्डा- जो देश के हर प्रांत से जुड़ा हुआ है पहुंच कर 4 किमी दूर मंदिर के लिए टैक्सी ले सकता है। कोयंबटूर रेलवे स्टेशन से यह दूरी 25 किमी है और सड़क मार्ग से लगभग 32 किमी है।यह सभी राजमार्गों से जुड़ा हुआ है।
मौसम:- कोयंबटूर मे आमतौर पर हल्का अच्छा मौसम रहता है।शहर की जलवायु उष्णकटिबंधीय है जो बरसाती और शुष्क दोनों है जिसमें हल्की सर्दियां और चिलचिलाती गर्मियां होती है।मानसून का मौसम बहुत अधिक वर्षा के लिए जाना जाता है।इसलिए घूमने के लिए सर्दी का मौसम ज्यादा आदर्श है।
2--मीनाक्षी मंदिर, मदुरई-
अगले सुबह स्नान वगैरह करने के पश्चात हम निकल पड़े मदुरई मीनाक्षी मंदिर दर्शन के लिए।पुत्र ने अपने किसी साथी से कहकर वहाँ घुमाने व दर्शन कराने हेतु गाइड की व्यवस्था कर ली थी।
मदुरै--मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर:-
भारत के तमिलनाडु प्रांत मे स्थित मदुरै नगर मे बना यह एक ऐतिहासिक हिन्दू देवता भगवान शिव( सुन्दरेश्वर या सुन्दर ईश्वर के रुप मे) एवं उनकी भार्या देवी माँ पार्वती( मीनाक्षी या मछली के आकार की आँख वाली देवी के रूप में ),दोनों को समर्पित है।मछली 17 वीं शताब्दी के पाड्य राजाओं का राजचिन्ह था।
हिंदु पौराणिक कथानुसार भगवान शिव सुन्दरेश्वर रुप में अपने गणों के साथ पाड्य राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह करने मदुरई नगर में आये थे जिन्हें पार्वती देवी का अवतार माना जाता है।देवी पार्वती ने पूर्व मे पांड्य राजा मलयध्वज, राजा मदुरई की घोर तपस्या के फलस्वरूप उनके घर में एक पुत्री के रूप में अवतार लिया था।
इस विवाह को सम्पन्न कराने हेतु स्वयं भगवान विष्णु अपने बैकुंठ निवास से यहाँ पधार कर विवाह को सनातन परंपरा से संचालित कर पूर्ण किया था जिसमें उस समय लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई मे यह अलौकिक समारोह मे उपस्थित होकर विवाह के साक्षी बने।
मंदिर 7वीं शताब्दी का बताया जाता है।1310 ई०मे मुस्लिम शासक मलिक कपूर ने यहाँ खूब लूट पाट की थी फिर इसका पुनः निर्माण आर्यनाथ मुदलियार, मदुरै के प्रथम प्रधानमंत्री ने ( 1559-1600 ई० ) मे कराया था।
वर्ष 1623 और 1655 के बीच,बैगई नदी के तट पर राजा कुलशेखर पड्यिन ने पुनः इसका निर्माण कराया।मीनाक्षी अम्मन मंदिर विश्वस्तर की अद्भुत कला से निर्मित है।
मान्यता है कि मंदिर की स्थापना अपने तीर्थयात्रा के दौरान भगवान इन्द्र ने की थी।इस मंदिर में 8 खंबों पर लक्ष्मी जी की मूर्तियां बनी हुई हैं।मदुरै मे माता मीनाक्षी का विवाह करने की एक परंपरा धूमधाम से मनाई जाती है।इस मंदिर को देश के सबसे स्वच्छ मंदिरों में से प्रथम होने का गौरव प्राप्त है।
मंदिर का ढ़ांचा:-
मंदिर का गर्भगृह लगभग 3500 वर्ष पुराना है।इसकी बाहरी दीवारों और अन्य निर्माण भी लगभग 1500-2000 वर्ष पुराने हैं।इस पूरे मंदिर का भवन समूह लगभग 45 एकड़ क्षेत्र मे फैला हुआ है जिसमें मुख्य मंदिर का भारी भरकम निर्माण शामिल है।मंदिर की ऊंचाई 254 मीटर और चौड़ाई 237 मीटर है।मंदिर बारह गोपुरमो से घिरा है जो कि उसके दो परिसीमन भीत( चार दिवारी) से बने हैं।इसके दक्षिण द्वार का गोपुरम सर्वोच्च है।
विशेषता:-
इस मंदिर के 12 प्रवेश द्वार हैं,हर प्रवेश द्वार लगभग 40 मीटर उंचा है।साथ ही इस मंदिर में 985 स्तंभ और 24 टावर हैं।
मंदिर की दीवारों पर लगभग 30 हजार के आसपास मूर्तियां बनी/ उकेरी गई हैं।
शिवमंदिर:- शिव मंदिर में मूर्ति नटराज मुद्रा में भी स्थापित है।शिव की यह मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए बायें पैर उठाये होती है पर इसमे दायां पैर उठा हुआ है।एक कथा के अनुसार राजा राजशेखर पांड्यन की प्रार्थना पर भगवान ने यहाँ अपनी मुद्रा बदल ली थी।यह इसलिए कि सदा एक ही पैर को उठाये रखने से उस पर अत्यधिक भार पड़ेगा।यह निवेदन उनके व्यवस्थित निवेदन पर आधारित था।यह भारी नटराज की मूर्ति एक बड़ी चांदी की वेदी मे बंद है इसलिए इसे बेल्ली अम्बेलम (रजत आवासी) कहते हैं।
देवी का जन्म स्थान के कारण से यह पवित्र स्थान है जो भगवान विष्णु की बहन हैं।देवी की मूर्ति भगवान इन्द्र द्वारा बनाई गई थी और भगवान राम और लंकापति राजा रावण दोनों द्वारा इसकी पूजा अर्चना की जाती रही है।यहीं पर सती माँ का पायल गिरा था, ऐसी मान्यता है।
विनायक मंदिर:- भगवान गणेश जी की एक पत्थर से तराशी हुई मूर्ति विनायक मंदिर में स्थापित है।मंदिर के गर्भगृह में इन्द,विष्णु और भगवान शिव के कई स्वरुपों से सुशोभित मूर्तियां हैं।
अभिराम काल मंडप या सहस्त्र मंडप:-
इसमें 985 ( न कि 1000) भव्य तरासे हुये स्तंभ हैं।इस मंडप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तंभ स्थित है इसके प्रत्येक स्तंभ थाप देने पर भिन्न स्वर निकालता है।स्तंभ मंडप के दक्षिण मे कल्याण मंडप है जहाँ प्रतिवर्ष शिव पार्वती विवाह सम्पन्न होता हे।
पोत्रमारै सरोवर:-
165' लम्बा एवं 120' चौड़ा यह पवित्र स्थान है।कहते हैं कि इन्द्र ने स्वर्ण कमल यहीं से तोड़े थे।भक्तजन मंदिर मे प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं।इसका शाब्दिक अर्थ "स्वर्ण कमल वाला सरोवर "।
यहाँ अप्रैल-मई माह मे महत्वपूर्ण तयोहार चिथिरई मनाया जाता है।दिसंबर से फरवरी का मौसम वैसे घूमने के लिए मनभावन होता है जब यहाँ का तापमान 20 -29 डिग्री के बीच होता है।
दर्शन का समय व वस्त्र कोड :-
मदुरई शहर रेल, हवाई जहाज और सड़क मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है।मंदिर हवाई अड्डे से 11 किमी और रेलवे स्टेशन से 13 किमी की दूरी पर स्थित है।मंदिर पहुंचने में आधा घंटा और मंदिर परिसर मे घूमने के लिये कम से कम दो घंटे का समय चाहिये।मंदिर
सुबह 5बजे से दोपहर 12:30 तक और
शाम 4 बजे से रात 9:30 तक खुला रहता है।पुरुष शर्ट के साथ धोती,पैंट या पायजामा तथा स्त्री साड़ी या सूट पहनकर मंदिर मे प्रवेश ले सकते हैं।मंदिर में प्रवेश सशुल्क और फ्री दोनों है।दक्षिण द्वार से टिकट प्रति व्यक्ति 100/₹।मोबाईल अंदर ले जाना प्रतिबंधित है, उसे बाहर सुरक्षा में रखने की व्यवस्था है।
खरीदारी:-
हाथ के बने हुए रेशम और सूती कपड़ें/हस्तशिल्प
रुकने के लिए:-
हर प्रकार के बजट मे होटल और रिजार्ट उपलब्ध।
आसपास के दर्शनीय स्थान:-
गांधी मेमोरियल संग्रहालय, अलगर कोविल,कूडल अजगर मंदिर आदि।
3-रामेश्वरम-
रामेश्वरम दक्षिण भारत में भगवान शिव को समर्पित एक अति सुंदर प्राचीन मंदिर है।यह 12 ज्योतिर्लिंग मे से एक है।इस मंदिर का पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व है।माना जाता है कि स्वयं प्रभु राम और माता सीता ने अपने हाथों से मंदिर में स्थित दो लिंगों का निर्माण किया था।रामेश्वरम मंदिर के ठीक पीछे समुद्र उथले पानी का है, उसमें लहरें नही आती।
यह भी मान्यता है कि बिभीषण ने यहीं पर रामचन्द्र जी के शरण मे आया था।रावण बध के बाद प्रभु राम ने इसी स्थान पर बिभीषण का राजतिलक किया था।इस मंदिर मे राम,सीता और लक्ष्मण जी के मूर्तियों के साथ बिभीषण की भी मूर्ति स्थापित है।यहाँ स्नान करना पाप मोचक माना जाता है।
रामेश्वरम का पौराणिक नाम 'गद्य मादन' है।यह हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है जो तमिलनाडु के रामनाथपुरम मे स्थित है।यह सनातन भारतीयों के चार तीर्थों में से एक है।दक्षिण में इसकी मान्यता वैसी ही है जैसे पूर्व में काशी के विश्वनाथ मंदिर की।यह चेन्नई से लगभग425 किमी दक्षिण पूर्व में है।यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ एक सुंदर शंख के आकार का द्वीप है।बहुत पहले ये भारत भूमि से जुड़ा हुआ था, बाद मे सागर के लहरों ने इसे मिलाने वाली कड़ी को काट दिया जिसके कारण यह चारों ओर जल से घिर जाने के कारण टापू बन गया।यहाँ भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई से पूर्व पत्थर के सेतु का निर्माण कराया था जिस पर चढ़कर वानर सेना लंका मे प्रवेश कर वहाँ युद्ध में विजय पाई थी।बाद में राम ने बिभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था।आज भी 48 किमी लंबे आदि सेतु के अवशेष सागर मे दिखाई देते हैं।
धनुषकोटि नगर:-
धनुषकोडी या कोटी रामेश्वरम द्वीप में दक्षिण पूर्वी कोने में स्थित एक भूतपूर्व नगर है।यह पाम्बनसे दक्षिण पूर्व में और श्री लंका मे तलैमन्नार से 24 किमी पश्चिम में स्थित है।धनुषकोडी नगर 1964 रामेश्वर चक्रवात मे ध्वस्त हो गया था और इसे फिर नही बसाया गया।धनुषकोडी और भारत की मुख्य भूमि के बीच पाक जल संधि है।
रास्ता:-
जिस स्थान पर यह टापू भारत के मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है वहाँ इस हमय ढ़ाई मील चौड़ी एक खाड़ी है।शुरू मे इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था, बाद मे आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व कृष्णप्पनायकन नाम के राजा ने उस पर एक पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया।कुछ समय बाद पत्थर के पुल टुटने के उपरांत अंग्रेजों ने अपने समय मे यहाँ जर्मन इंजीनियर के द्वारा रेल का पुल बनवाया।यही पुल रामेश्वरम को भारत के रेल सेवा से जोड़ता है।
निर्माण काल:-
रामनाथ मंदिर को बने अभी 800 वर्ष से भी. कम हुये हैं।इस मंदिर के बहुत से भाग 50-60 वर्ष के पहले के हैं।
रामेश्वरम का गलियारा:-
यह विश्व का सबसे लम्बा गलियारा है।यह उत्तर दक्षिण में 197 मीटर एवं पूर्व-पश्चिम में 133 मीटर लम्बा है।इसके परकोटे की चौड़ाई 6 मीटर तथा उंचाई 9 मीटर है।मंदिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम 38.4 मीटर उंचा है।यह मंदिर लगभग 6 ,हेक्टेयर भूमि पर बना हुआ है।
मंदिर में विशालाश्री जी की गर्भगृह के निकट ही नौ ज्योतिर्लिंग हैं जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बताये जाते हैं।रामनाथ मंदिर में जो ताम्रपत्र है उसके अनुसार 1173 ई० मे श्री लंका के राजा पराक्रम बाहून ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण कराया था।उस मंदिर में अकेले शिवलिंग की स्थापना की गई थी।देवी की मूर्ति नही रखी गई थी, इस कारण यह निसंगेश्वर मंदिर कहलाता है।यही मूल मंदिर आगे चलकर वर्तमान दशा में पहुंचा है।
बाद मे पंद्रहवीं शताब्दी मे राजा उडैयान सेतुपति और एक धनाढ्य वैश्य ने 1450 मे इसका 78' उंचा गोपुरम निर्माण करवाया जिसका जिर्णोद्धार मदुरई के एक देवीभक्त द्वारा बाद मे करवाया गया। 16 वीं शताब्दी मे दक्षिणी भाग के द्वितीय परकोटे की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने करवाया था।इसी शताब्दी में मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक के अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति ने नंदी मंडप 22' लम्बा, 12' चौड़ा व 17' उंचा का निर्माण करवाया
।रामनाथ के मंदिर के साथ सेतुमाधव का मंदिर आज से 500 वर्ष पूर्व रामनाथपुर के राजा ने बनवाया था।हर शताब्दी में मंदिर में कुछ न कुछ कार्य धनाढ्य व्यक्तियों एवं राजाओं द्वारा इसकी भव्यता बढ़ाने के लिए कराया जाता रहा है।1947 में महाकुंभभिषेक भी करवाया गया।
स्थापत्य:-
रामेश्वरम का मंदिर भारतीय निर्माण कलाऔर शिल्पकला का अद्भुत नमूना है, इसका प्रवेश द्वार 40' उंचा है प्राकार मे मंदिर के अःदर सैकड़ो विशाल खंबे हैं जो देखने में एक जैसे लगते हैं परन्तु पास जाकर जरा बारीकी से देखने पर पता चलता है कि हर खंबे पर बेलबूटों की अलग अलग कारीगरी की गई है।
रामनाथ की मूर्ति के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए हैं।इसका तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ।इस प्राकार की लम्बाई 400' से ज्यादा है।दोनों ओर 5' उंचे और करीब 8' चौड़ा चबूतरा बना हुआ है।चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े बड़े खंबों की लम्बी कतारें खड़ी है।प्राकार के एक सिरे पर खड़े होकर देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सैकड़ो तोरण द्वार स्वागत करने के लिए तैयार किया गया था।
रामनाथ मंदिर के चारों ओर दूर तक कोई पहाड़ी नही है जहाँ से पत्थर आसानी से मंदिर स्थल पर लाया जा सके।गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है।यह वास्तव मे एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरुरी पत्थर नही निकाला जा सकता था।रामेश्वरम मंदिर में कई लाख टन के पत्थर लगे हैं,वे सब बहुत दूर दूर से नावों मे भरकर निर्माण स्थल तक लाये गये हैं।रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काले रंग का पत्थर लगा हुआ है ।मान्यता है कि यह पत्थर श्री लंका से लाया गया है।
रामनाथपुर के राजभवन में जो कभी तमिलनाडु की रियासत हुआ करती थी उपरोक्त वर्णित काला पुराना पत्थर रामचन्द्र जी ने केवटराज को राजतिलक के समय उसके चिह्न के रूप में दिया था।पत्थर देखने लोग रामेश्वर से 33 मील दूर रामनाथपुरम जाते हैं।
कथा:-
रामचन्द्र जी ने सीता जी को रावण के कैद से मुक्त कराने के लिए रावण के न मानने पर बाध्य होकर युद्ध किया।युद्ध के लिए वानर सेना को लंका में प्रवेश करना था तब श्री राम ने युद्ध कार्य में सफलता और विजय के पश्चात कृतज्ञता हेतु अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए समुद्र किनारे की रेत से शिवलिंग का निर्माण अपने हाथों से किया,तब भगवान शिव सत्यम ज्योति स्वरूप प्रकट हुए और उन्होंने इस लिंग को रामेश्वर की उपमा दी।युद्ध में रालण के साथ उसका पूरा राक्षस वंस समाप्त हो गया और तत्पश्चात सीता जी को मुक्त करा प्रभु श्री राम वापस अयोध्या अपने गृह नगर लौटे।
रावण भी साधारण राक्षस नही था।वह महिर्ष पुलस्त्य का वंशज, वेदों का ज्ञाता और शिव भक्त था।श्री राम को उसे मारने के बाद खेद हुआ और ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए श्री राम ने युद्ध विजय के बाद भी यहाँ रामेश्वरम मे जाकर शिव की पूजा की।
हनुमानजी भी काशी से एक शिवलिंग लेकर आये थे जिसे राम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के साथ काशी के लिंग की भी स्थापना कर दी।छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ स्वामी भी कहलाता है।ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी सुरक्षित हैं।यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है।
सेतुमाधव:-
रामेश्वरम का मंदिर है तो शिव जी का परन्तु उसके अंदर कई अन्य मंदिर भी हैं।सेतुमाधव का कहलानेवाले भगवान विष्णु का मंदिर इसमें प्रमुख है।
22 कुंडतिर्थम:-
रामनाथ मंदिर के अंदर और परिसर मे अनेक पवित्र तीर्थ हैं।कोटि तीर्थ जैसे एक दो तालाब भी।रामेश्वरम द्वीप पर इसके आसपास कुल मिलाकर 64 तीर्थ है।स्कंद पुराण के अनुसार इनमें से 24 ही महत्वपूर्ण तीर्थ है।इनमें से 22 तीर्थ तो केवल रामनाथस्वामी मंदिर के अंदर ही है जिसमें भारत के नदियों के जल हैं।22 संख्या को भगवान की 22 तीर तरकशों के समान माना गया है।मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थ का नाम दिया गया है।इन तीर्थों में स्नान करना बड़ा फलदालक पाप निवारक समझा जाता है।वैज्ञानिकों के अनुसार इन तीर्थों में अलग अलग धातुएं मिली हुई हैं, इस कारण उनमें नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते हैं और शरीर में नई ताकत आ जाती है,नई उर्जा का संचार होता है।
अन्य तीर्थ:-
विल्लराणि तीर्थ, एकांत राम,कोद्ण्ड स्वामी मंदिर,सीता कुंड,आदि सेतु तथा रामसेतु जो 100 योजन लम्बा व 90 योजन चौड़ा, उच्च तकनीक से निर्मित/नाशा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गये चित्रों मे धनुषकोडी से जा़फना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, वही रामसेतु है।
होटल में सामान रखकर व्यवस्थित होने के उपरांत, होटल मालिक से मंदिर मे दर्शन कराने हेतु एक गाइड -पंडे से दिये गए मोबाइल पर संपर्क किया गया।गाइड ने सुबह चार बजे मंदिर पर आने को कहा और वहाँ अलग अलग ढ़ंग से पूजा आदि के खर्च के साथ अपनी फीस भी बताई।गाइड का निर्देश था कि एक जोड़ी वस्त्र स्नान के बाद बदलने के लिए साथ मे लायें।
रात मे मेरे नातिन को तेज बुखार आ गया जिसके वजह से पुत्र और बहू मंदिर नही गए पर हम लोगों को मंदिर द्वार तक छोड़ आये जहाँ गाइड को मिलना था।मोबाइल से संपर्क करने पर गाइड हमारे पास उपस्थित होकर,मंदिर द्वार के पास निश्चित स्थान पर जूते वैगरह जमा करने के पश्चात कहा कि पहले आप सपत्नी समुद्र में स्नान कर, सूर्य देवता को फल- दूध चढ़ा दें,तब तक और भी जजमान आ जायेंगे फिर हम ग्रुप के साथ और अपने साथियों के साथ मंदिर की परिक्रमा शुरू करेंगे। मंदिर का क्षेत्र काफी बड़ा है, मोबाइल से फोटो आदि खींचना मना है, इसलिये गाइड ने अपने पास हम लोगों का मोबाइल लेकर रख लिया और कपड़ों का झोला एक खंबे के पास रख दिया।।मंदिर परिसर में परिक्रमा करते हुए हमें मदिर मे स्थित 22 कुओं के पास ले जाया गया जिनमें पवित्र नदियों के जल हैं। वहाँ से बाल्टी से पानी निकाल कर लोटे या बाल्टी से ही भक्तों के शरीर पर डालकर नहलाया गया।बुजुर्ग लोग या बीमार लोग जो ज्यादा भींगना नही चाह रहे थे उनके सर पर जल के छींटे मार दे रहे थे।कहते हैं कि इन कुओं मे भारतवर्ष के पवित्र नदियों का जल आता है।इसके उपरांत कपड़ें बदले गए और तब भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग के दर्शन कराये गए।
शिवलिंग मे दर्शन के बाद पंडितों द्वारा एक निर्धारित स्थान पर अग्नि कुंड के समीप बैठाकर वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा रुद्राभिषेक एवं पुनः विवाह की प्रक्रिया /पूजा आदि की रस्में वरमाला एक दूसरे को पहनाकर निभाई गई द्वारा जिसका सामग्री खर्च के साथ दक्षिणा पहले से ही जमा कर दी गई थी।पूजा के उपरांत प्रसाद ग्रहण कर पडिंत जी का आशीर्वाद लेकर भगवान शिव एवं रामचन्द्र जी को प्रणाम कर गाइड को इच्छानुसार उसकी फीस देकर दोपहर मे 12 बजे तक अपने होटल वापस आ गए।
नोट:- कुएं के पानी से स्नान और विशेष पूजा के लिए पंडित और गाइड की सेवा शुल्क एक निश्चित राशि देनी पड़ती है।
(कुल टिकट राशि:₹1300/,रुद्राभिषेक का खर्च ₹ 3500/ एवं दछिणा ₹ 2100/ तथा अन्य खर्च ₹250/)।
बिना कुयें के स्नान और विशेष पूजा के भी मंदिर में दर्शन किया जा सकता है।
टिप्पणी:- रामेश्वरम, रेलवे व सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।निकटतम हवाई अड्डा मदुरई।
मंदिर में घूमने का समय:-
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सुबह 4:30 से दोपहर 1 बजे तक
शाम 3:00 से रात 9 बजे तक
भोजन:-
मुस्लिम आबादी ज्यादा होने के कारण यहाँ बिरयानी, परौठा,मटन,चिकन व समुद्री झींगा, केकड़ा, शंख, सीप आदि अधिकतर जगहों पर मिलता है।शाकाहारी व्यंजन मे दक्षिण की थाली, दोसा,इडली, बड़ा इत्यादि भी उपलब्ध।
खरीदारी:-
रेशम, कांजीवरम साड़ी व सूट के साथ हस्तनिर्मित पत्थर/धातु की देवी देवताओं की मूर्तियां, रुद्राक्ष माला शंख,सीप आदि को खरीदा जा सकता है।
रामेश्वर मे ही पूर्व रास्ट्रपति कलाम साहब का गाँव व घर है जो अब एक स्मारक मे तब्दील हो गया है।नातिन की तबीयत ठीक न होने के कारण हमने वहाँ घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर अगले दिन सुबह वापस कोयम्बटूर आकर रात्रि विश्राम के पश्चात अगले दिन सुबह चलकर दोपहर तक अपने निवास स्थल वेलिंग्टन, कुन्नूर पहुंच गए।
ईश्वर इच्छा से हमारी तीर्थ यात्रा सम्पन्न हुई।
जय श्री राम। हर हर महादेव।
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