वो आम का अचार

The tangy taste of mom’s homemade mango pickle still brings back mischievous childhood memories. Read this heartwarming and nostalgic story of stolen pickles and sibling secrets.

Jul 8, 2025 - 15:22
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वो आम का अचार
that mango pickle

अचार के नाम से ही वैसे मुँह में पानी भर जाता है और वही अचार अगर माँ के हाथ के बने हो तो मुँह में आया पानी और भी स्वादिष्ट हो जाता है। बचपन में माँ के हाथ के बने वो आम का अचार जिसको याद करने से आज मन और प्रफुल्लित हो जाता है। मेरे बचपन में आम का मौसम आते ही हर घर में अचार बनने लगता था। मेरी माँ अचार विशेषज्ञ थी। सभी घरों में अचार बनाने के लिए उन्हें बुलाया जाता था। अचार के लिए आम को कैसे काटा जाता है, फिर उसके साथ कौन सी प्रक्रिया की जाती है, इसमें कितना तेल डाला जाता है, आचार में कौन-कौन से मसाले डाले जाते हैं, मसाले की कितनी मात्राएं होनी चाहिए, यह सब माँ अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए आम के अचार के दिनों में माँ की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाती थी, उनके हाथ से बने हुए अचार भी जल्दी खराब नहीं होते थे। हर दिन माँ को किसी न किसी घर से अचार बनाने के लिए बुलावा रहता था। माँ के पीछे-पीछे मैं भी चली जाती थी और हर घर के ताजा-ताजा आम के बने अचार का स्वाद लिया करती थी। वैसे माँ कहा करती थी कि अचार बनने के चार-पाँच दिन बाद ही अच्छा लगता है लेकिन मुझे तो तुरंत बने अचार पसंद आते थे। माँ ज्यादा अचार खाने से मना किया करती थी लेकिन मैं कहाँ मानने वाली थी चोरी करके अचार खाया करती थी। मैं हर दिन अचार चोरी करके विद्यालय ले जाती थी, खुद भी खाती थी और अपने दोस्तों को भी खिलाती थी।

एक दिन की बात है। घर में कुछ मेहमान आए हुए थे। माँ ने कहा, ‘जाओ जो अभी आम के नए-नए अचार बने हैं वो लेकर आओ।' मैंने कहा, ‘माँ इस साल आप कितना कम आम का अचार बनाई हैं, अब तो बोईयाम (शीशे का जार) में मात्र थोड़े से अचार बचे हैं।' माँ अवाक हो गई। बोली, ‘इतनी जल्दी अचार खत्म हो गए।' मैं और मेरी बहनें साफ मुकर गईं कि हम लोग अचार खाए हैं। मेहमान के रूप में जो चाचा घर में आए थे उन्होंने कहा, ‘भाभी, हम अभी अचार चोर का पता लगा लेते हैं।' हम सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे। मैं बोली, ‘चाचा आप कैसे पता लगा लेंगे।' चाचा बोले, ‘सभी अपने-अपने स्कूल बैग लेकर आओ।' हम सभी भाई बहन अपने अपने स्कूल बैग चाचा के सामने रख दिए। चाचा सभी के स्कूल बैग को खोले और नाक से सूँघने लगे। भैया को छोड़कर हम सभी बहनों के बैग से अचार की महक आ रही थी और सबकी किताब कॉपी अचार के तेल से खराब हो गई थी। माँ सिर पकड़ कर बैठ गई। बाद में हम बहनें भी अचार चोरी की बात को स्वीकार कर लिए थे।

आम के अचार से संबंधित बचपन की न जाने कितनी कहानियाँ हैं जो मैं आपको बता नहीं सकती हूँ। मुझे बचपन से ही सबसे ज्यादा आम के अचार पसंद रहे हैं। अचार चोरी करते समय बहुत सारे शीशे के बोईयाम ( जार) भी हमने तोड़े थे। आज समय बदल गया है।अब किसी के पास इतना समय भी नहीं है कि घर में अचार बनाए। बाजार में तरह-तरह के अचार उपलब्ध हैं हम उन्हें खरीद कर ले आते हैं। लेकिन बचपन वाला वो आम का अचार का स्वाद कहाँ पाते हैं। मैं बचपन के आम के अचार को भूल नहीं पाती हूँ।

मनोरमा शर्मा 'मनु'
हैदराबाद, तेलंगाना

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