तितली
उड़कर फुनगी पर चढ़े,रंगीली सी गात। कैसे वह पहचानती, होने वाली प्रात।।

तितली उपवन में फिरे,मधुरस की जो आस।
कलियों का मुख चूमती,बुझ जाए सब प्यास।।
बुझ जाए सब प्यास, नहीं रहनी है बाकी।
मतवाली सब आज,फूल बनते हैं साकी।।
अदभुत यह खिलवाड़,कली भी देखो मचली।
भर देती है प्रीत, बगीचे में वह तितली।।
उड़कर फुनगी पर चढ़े,रंगीली सी गात।
कैसे वह पहचानती, होने वाली प्रात।।
होने वाली प्रात,खिला कलियों का कुल है।
मधुकर का संगीत, बड़ी तितली व्याकुल है।।
कली कली को चूम,सोमरस पी ले छक कर।
खिलते ज्यों ही फूल,कि तितली आए उड़ कर।।
चमकीली सी देह है, झिलमिल सी सुकुमार।
चटख रंग से हो गया, तितली का श्रृंगार।।
तितली का श्रृंगार,ढली रंगों में ऐसे।
नीले पीले लाल,खिली हो कलियां जैसे।।
सपनों के हों पंख, बड़ी सजती भड़कीली।
मधुमासों का रंग ,कि तितली है चमकीली।।
मधुकर वनमाली
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