चुनावी मौसम

। चुनावी मौसम में आग की लपटें भी उठती हैं, शीत मौन भी फैला रहता है बिजलियां भी गिरती हैं तो कहीं तूफान सी हवाएं भी आ जाती हैं। यह मौसम सबको ऊपर से नीचे तक नाप देता है। जब आवाम मौन होकर सांस ले रही होती है तो यह मौसम ही उन्हें जगाता है

May 29, 2025 - 16:47
May 29, 2025 - 16:48
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चुनावी मौसम
election season

हम इंसानों को ईश्वर ने कितनी अच्छी चीज़ो से नवाज़ा है। सुंदर बाग, नदियाँ, पहाड, खेत-खलिहान, जंगल। इन सभी के अलावा हर महीने आनंद लेने के लिए अलग-अलग मौसम, शीत, ग्रीष्म, हेमंत, शरद, बसंत आदि । इन सभी ऋतुओं की अपनी ही बात है। देखते-देखते कब ग्रीष्म से शीत आ जाता है पता ही नहीं चलता। इंसान मौन होकर एक तरफ साँसे ले रहा होता है और दूसरी तरफ दुनिया चलती रहती है लेकिन इन सभी मौसमो के अलावा एक मौसम ऐसा आता है जो इंसान के इस मौन को तोड़ता है। इस मौसम की विशेषता यह है कि यह मौसम बिछडी प्रेमिका की तरह होता है जो वर्षों पहले आप से बिछड़ी हो लेकिन कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, आपको दिखती जरूर है और बेचारा प्रेमी बस तमाशा बनकर देखता रहता है। मैं जिस मौसम की बात कर रहा हूँ उसे मैं और मेरी तरह से कई लोग चुनावी मौसम कहते हैं। बाकी मौसम में तो यह तय रहता है कि निश्चित समय के लिए वर्षा होगी और निश्चित समय ग्रीष्म रहेगी और निश्चित समय शीत रहेगी व फला-फला मौसम होगा लेकिन चुनावी मौसम का अंदाजा लगाने के लिए अभी तक ऐसे उपकरण इंसान विकसित नहीं कर पाया जिससे यह पता लगे की चुनावी मौसम कैसा रहने वाला है। चुनावी मौसम में आग की लपटें भी उठती हैं, शीत मौन भी फैला रहता है बिजलियां भी गिरती हैं तो कहीं तूफान सी हवाएं भी आ जाती हैं। यह मौसम सबको ऊपर से नीचे तक नाप देता है। जब आवाम मौन होकर सांस ले रही होती है तो यह मौसम ही उन्हें जगाता है कि तुम इंसान हो मौन होकर अपने अस्तित्व को मत भूलो, बोलना तुम्हारी प्रवृत्ति है। शुक्र है इस चुनावी मौसम का की यह याद तो दिलाता है कि हम इंसान हैं और इसी मौसम में हर इंसान को अपने-अपने काम याद आते हैं। किसी को याद आता है कि उसे अबकी बार बहुमत पानी है तो किसी को याद आता है वोट मांगने के लिए इस बार नयी योजनाएं बनानी पड़ेगी। इस मौसम में किसी को अपना चुनावी टिकट की फिक्र होने लगती है तो कोई गली मोहल्ले में जाकर अपनी रिश्तेदारियां बढ़ाने लगता है। किसी की जेब में से दो पैसे इस मौसम में जाते हैं तो किसी की जेब में दो पैसे इस मौसम में आते हैं। भई जो भी हो है तो मानवीय भलाई का समय। ज्यादातर भलाई इंसान की इसी मौसम में होती है। भैया मंत्रियों को इस मौसम में ही तो याद आता है कि हमारे घरों के आस-पास सड़क पर सोने वाले लोग भी हैं जिन्हे कंबल बांटना है भले ही सर्दी हो या ना हो, लेकिन इस कंबल को दुकान पर बेचकर विचारों की जेब में दो पैसे तो आ जाते हैं यह भलाई नहीं तो और क्या है! अजी इसी मौसम की बदौलत तो विधायक जी का प्यार लोगों को मिलता है और उनका भी वट बढ़ता है जब विधायक माइन घर जाकर कहते हैं कि भाई साहब बहन जी आप तो घर के आदमी जैसे हैं आपका वोट घर के लोगों को ही जाना चाहिए। आप लोग इसे चुनावी वादे ना कहिये इससे मानवता गति पाती है यह मैं आपको बता ही रहा हूं और भी भलाई के काम इसी मौसम में होते हैं मैं बताता हूं आपको, इस मौसम में हमें इतिहास का ज्ञान भी अच्छा प्राप्त होता है इतिहास के ज्ञाता भी बढ़ जाते हैं समाज में, देश की ऐतिहासिक जानकारी तो छोड़िए वे लोग आपके परिवार की ऐतिहासिक जानकारी इकट्ठा कर लेते हैं बिना आपको पता चले । बस चुनाव के समय किसी भले इंसान की मौत होने की देरी है बस अब क्या! यह इतिहास की समितियां इतिहास की अच्छी जानकारी रखने वाले लोग सक्रिय हो जाते हैं और आपके भले को देखते हुए सीधा प्रशासन के मंत्रियों को बता देते हैं कि मरने वाला किस जाति का है, किस धर्म का है, किस गोत्र आदि का है और मंत्री अपने इतिहासकारों के शोध को सार्वजनिक कर देता है कि मरने वाला हिंदू है, मुसलमान है, या दलित है आदि। मंत्री साहब आपकी मदद करने में पीछे नहीं हटते वह यह भी बता देते हैं कि हत्या किस पार्टी ने कराई होगी अब भला आप बताएं क्या पुलिस या जाँच प्रशासन इतनी जल्दी आपका भला कर सकता है? नहीं इसलिए शुक्रिया कीजिए इस मौसम का जो मरने वाले की जात, बिरादरी को तो बता देता है भला लोगों को पता तो चले की मरने वाले की पहचान क्या है! देखिए आप इसे नीचता ना कहिए नीचता का कोई संबंध है ही नहीं इस मौसम में, इंसान जैसा है वैसा ज्योें का त्यों इस मौसम में दिखता है सच में। अगर आपको किसी के चरित्र की जांच करनी है तो उससे दो-चार बातें चुनाव पर कर लीजिए, फिर क्या सामने वाले काका कितने-कितने गालियों के ज्ञाता है और उनकी उम्र में उन्होंने क्या-क्या किया होगा इसका अंदाजा आपको केवल इसी मौसम में लग सकता है। और भी विचार विमर्श के क्षेत्र में इस चुनावी मौसम का कुछ कहना नहीं है। चाय के खोको पर, पान की दुकान पर लौंडे, जवान, बुढ़ों का समूह जो इतिहास सामने रखता है वह कमाल का होता है किसी में हिम्मत नहीं की कोई आम एनसीईआरटी पढ़ा हुआ इंसान इनके इतिहास को गलत ठहरा दे आखिर मार थोड़ी खानी है उसे। राजनीतिक पार्टियों के चरित्र के तो क्या कहने, उनके संस्कार हमें साफ-साफ इस मौसम में दिख जाते हैं और ज्यादा पार्टी और उनके मंत्री संस्कारी है। धन्य है उन्होंने अभी तक बापू के अहिंसा के सिद्धांत की रक्षा कर रखी है। यह राजनैतिक पार्टिया हिंसा बिल्कुल नहीं करती बस शीत युद्ध करती है ओर ज्यादा हुआ तो दो चार गाली-गलोज बस। आखिर गाली देना मानवीय अस्तित्व का प्रतीक है और जीवित समाज में गालियां दी जाती हैं। इन पार्टियों की वजह से हमें थोड़ा हंसने का मौका भी मिल जाता है अब आप यह मत पूछिएगा कैसे! एक दूसरे के विरुद्ध आज-कल यह पार्टी ऐड बना ही रही है। अब इन ऐड से तो हमें कोई लेना-देना नहीं लेकिन ऐड इतने बेतुके होते हैं की हंसी रोके नहीं रुकती है। अब इतने बड़े-बड़े डॉक्टर आपको हंसने को कहते हैं लेकिन अगर फिर भी हसी ना आये तो आप यह ऐड जरूर देखें जिससे आपकी सेहत अच्छी रहेगी। अगर आपको दर्शन के क्षेत्र में रुचि हो तो इस मौसम में मंत्रियों के बयानों पर ध्यान दें। ग़ालिब तो यूं ही कह गए कि यूं होता तो क्या होता, मगर यह लोग पूरे आत्मविश्वास के साथ दूसरी पार्टियों पर आरोप लगाते हैं कि आम आदमी ग़ालिब की इन पंक्तियों को सामान्य जीवन में उतारने लगता है और सोचता है हर चीज के बारे में की यूं होता तो क्या होता। कितने लाभकारी फायदे हैं इस चुनावी मौसम के लेकिन पता नहीं क्यों लोग इसका स्वागत गालियों, क्रोध, व्यंग्य से करते हैं। यह मानवता की श्रृंखला में अहम कड़ी है और आप आपने अंदर के इंसान को छुपाने की कितनी भी कोशिश करें इस मौसम में वो छुपाए से नहीं छुपेगा।

तुषार

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