भीतर का मौसम

टँगे रहा करते थे जिन पर दिन अपने बहुरंगे।  लुप्त हो गए शनैः शनैः 

Mar 19, 2024 - 16:18
 0  16
भीतर का मौसम
indoor weather

यूँ ही दर्पण के सम्मुख,
जा खड़े हो गए हम।
हमने आज खँगाला,
अपने भीतर का मौसम।

टँगे रहा करते थे जिन पर
दिन अपने बहुरंगे। 
लुप्त हो गए शनैः शनैः 
वे इंद्रधनुष सतरंगे।

अब तो वही शाम आँखों को,
कर जाती है नम। 

मैं तो शुभचिंतकों बीच
दिन-रात घिरा रहता था।
जो कुछ मैं कहता था
वह आदेश हुआ करता था।

निश्चित अवधि बीत जाने पर,
बदला सब घटना क्रम।

यह किसने कह दिया कि
सब कुछ होता है पैसा ही। 
बोया जैसा बीज
काटना पड़ता है वैसा ही। 

अब तो नहीं सुनाई देता,
मधुर स्वरों का सरगम।

ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0