कबीर दास की निर्गुण परंपरा

कबीर दास की निर्गुण परंपरा

May 9, 2024 - 19:12
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कबीर दास की निर्गुण परंपरा

कबीर भारतीय सन्दर्भ में भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हुए जिनके जन्म और मृत्यु के बारे में ठीक ठीक कहना बहुत ही मुश्किल है लेकिन जो ज्यादातर साहित्यकारों की रचनाओं को आधार मानकर जो तारिख सबसे सटीक बैठती है वह है १४५५ के ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा को उनका जन्म माना गया है और १५१८ को उनका देहावसान माना गया है। इनका गुरु रामानन्द जी को माना गया है और यह कबीर के शब्दों में ही ढूंढा जा सकता है, नीचे के दो दोहे इस बात की तस्दीक करते है - 
"तू ब्राह्मण मैं काशी का जुलहा
बूझहु मोर गियाना।"
और
"काशी में प्रकट भये हैं, रामानंद चेताये।
समरथ का परवाना लाये, हंस उबारन आये॥"


मध्यकालीन धार्मिक इतिहास में कबीर दास, भारतीय साहित्य के एक महान कवि और संत रहे हैं, जिनके काव्य में आप निर्गुण ब्रह्म के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति की अभिव्यक्ति देखते हैं। निर्गुण परंपरा उन धाराओं में से एक है जिनमें दिव्यता को अव्यक्त और निराकार रूप में समझा जाता है। इस परंपरा में भक्ति और साधना का मुख्य उद्देश्य आत्मा के साथ ब्रह्म के एकता में मिलना है। यह निर्गुण परंपरा साहित्य, ध्यान, और धार्मिक अभ्यासों के माध्यम से व्यक्ति को अपने आत्मा के साथ जोड़ने की प्रेरणा देती है। कबीर दास भी इस परंपरा के सबसे प्रमुख उदाहरण में से एक हैं। कबीर दास के काव्य में निर्गुण ब्रह्म के विभिन्न पहलुओं का अद्वितीय विवरण है। उनके काव्य में वे ब्रह्म को सबसे प्राथमिक और अनन्त सत्य मानते हैं, जो सभी जीवों में विद्यमान है। उन्होंने भगवान को एकमात्र और सच्चे ईश्वर के रूप में स्वीकार किया, जो सभी वस्तुओं के अधीश्वर हैं।

कबीर दास के अनुसार भगवान का नाम और भजन करना ही सच्ची भक्ति है, जिसके लिए किसी विशेष स्थान या मंदिर की आवश्यकता नहीं है। उनके अनुसार, भक्ति का असली मायने यह है कि आत्मा को अपने परमात्मा से मिलना है। उनकी रचनाओं में भक्ति, अन्याय, समाज, और धर्म के प्रति उनकी गहरी चिंतनशीलता देखने को मिलती है तथा समय के साथ उनकी बातों की प्रासंगिकता महत्पूर्ण होती रही है। उनके दोहे और पद आज भी लोगों को उनकी निर्गुण भक्ति की अनुभूति में मदद करते हैं, और उन्हें अपने जीवन को एक सार्थक और धार्मिक दिशा देने में प्रेरणा प्रदान करते हैं। कबीर दास ने अपनी कविताओं के माध्यम से निर्गुण परंपरा के अनेक पहलुओं को प्रस्तुत किया। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और आध्यात्मिक समस्याओं पर गहरा प्रभाव डालती हैं। वे निर्गुण भक्ति के संदेश को सरलता से समझाते हैं, जिससे आम लोगों तक यह संदेश पहुँचे। उनके द्वारा रचित दोहे, सकारात्मक और आध्यात्मिक संदेशों को उजागर करते हैं, जो समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार की प्रेरणा देते हैं। उनकी कविताओं में संदेश की मुख्य धारणा यह है कि परमात्मा को सिर्फ भावनाओं और भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, न कि किसी आकार या नामरूपी रूप में। उनकी कविताओं में समाज में जाति, धर्म, लिंग, विशेषज्ञता के माध्यम से होने वाले भेदभाव के खिलाफ भी आवाज उठाई गई है। जैसे "बागी हो तो मंजनी, नहीं तो मैली खोट", जिसमें वे यह सिद्ध करते हैं कि जीवन में सत्य की प्राप्ति केवल गुणों की बाज़ारी करने से नहीं होती है। एक उत्कृष्ट उदाहरण उनकी कविता "कबीर चाहे भी निर्गुण रहे" है, जिसमें वे भगवान के निराकार स्वरूप को बयान करते हैं। इस दोहे में, कबीर कहते हैं:
"कबीरा चाहे भए निर्गुण राखा।
दुइ दरसन के कीजै।"
इस दोहे में, कबीर भगवान को निर्गुण रहने की इच्छा रखते हैं, यानी उन्हें किसी विशेष रूप में नहीं देखना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमें उसके साकार और निराकार रूप दोनों को ही देखने चाहिए। कबीर निर्गुण राम के उपासक थे और भगवान राम के बारे में उनका मत सर्वविदित है -
"दशरथ - सुत तिहुँ लोक बखाना
राम नाम का मरम है आना।"

मध्यकाल के आरम्भ के तीन कवियों में विद्यापति और जायसी के साथ कबीर का नाम प्रमुख रूप से आता है। ये तीनों समकालीन कवि रहे लेकिन तीनो कवियों की भाषाएँ अलग-अलग रही और इनका आपस में किसी भी तरह का कोई भी जान-पहचान हो ऐसा लगता नहीं है या ऐसा भी कह सकते है की वे एक दूसरे के काव्य से किसी भी प्रकार परिचित भी रहे हो। कबीर भी उन संतों में शामिल रहे है जिन्होंने कभी मसि-कागद का स्पर्श नहीं किया था। कबीर के इस दोहे से उनके इस कथन की सत्यता जान पड़ती है -
’"मसि कागद छूयो नहीं
कलम गहि नहीं हाथ"।
इसलिए अगर कोई व्यवहारिक दृष्टि से उनकी रचनाओं में शुद्धता ढूंढने का प्रयास करता है तो यह आशा व्यर्थ है। मैं व्यक्तिगत तौर पर प्राकृत का छात्र रहा हूँ तो मैं यह कह सकता हूँ की ऐसे शब्द उस समय व्यावहारिक या व्याकरणिक रूप से गलत नहीं थे क्योंकि पाली-प्राकृत उस समय जन भाषा था जिसे आज के भाषा विज्ञान में अप्रभंश कहा जाता है। और ऐसे अपभ्रंश में बहुत समय तक रचनाएँ होती रही। 

कबीर ने राम और रहीम , केशव और करीम को एक समान मानकर, धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लड़ने वालों तथा दूसरो के धर्म से अपने धर्म को ऊँचा मानने वालों की खूब खिचाई की और कहा कि हर मनुष्य एक है और एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य को धर्म के आधार पर अलग करना गुनाह है, उनके अनुसार -
"अल्लाह एकै नूर उपजाया, ताकि कैसी निंदा
ता नूर थे,सब जाग किया, कौन भला, कौन मंदा।"

"वेद कितेब पढ़े बे कुतबा , वे मोलाना वे पांडे।  
विगत विगत के नाम धरायो , एक माटी के सब भांडे।।"

"हिन्दु की दया, मेहर तुरूकन की, दोनों घट से त्यागी। 
ई हलाल, वे झटका मारें, आग दुनों घर लागी।।"

"जाति पाति पूछे ना कोई, 
हरि को भजै सो हरि का होई।"

कबीर के गुरु की महिमा तो हर कोई गुरु पूर्णिमा पर बोलता हुआ पाया जाता है, उन्होंने कहा है - 
"गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।"
उनके अनुसार गुरु के द्वारा प्रदत्त ज्ञान के बिना मनुष्य का कल्याण नहीं हो सकता। 

कबीर का मत है कि संतोष, नम्रता, सत्य, सत्संग, समता तथा विवेक से ही आत्मा का उद्धार हो सकता है। अगर निर्गुण मार्ग में कबीर की सबसे महत्वपूर्ण देन को देखना हो तो वह होगा भक्तिमूलक योग। भक्तिमूलक योग के सबसे बड़े प्रचारक कबीर हैं, इस बात को उनके समकालीन सभी संतों ने स्वीकारा। वे प्रेममूलक भक्ति में निष्ठा रखने वाले सच्चे योगी थे। कबीर के बाद जायसी की ही प्रेममूलक भक्ति में अभिव्यक्ति को अत्यंत मार्मिकता हासिल है, पर वह धारा स्पष्टत: सूफ़ी सिद्धांत से प्रभावित नज़र आती है। जायसी ने कबीर को नारद की भक्ति - परम्परा में माना है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर के बारे में यह कहा कि "कबीर की वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी"।  कबीर ने ब्रह्म को ही "राम" नाम दिया, और उसकी उपासना भक्ति-प्रीति अर्पित करके की। कबीर ने अपने प्रभु के लिए केवल एक उर्दू - शब्द का प्रयोग किया है, वह शब्द है, "साहेब"; मुस्लिम काल होने के कारण यह शब्द, आमजनों में काफ़ी प्रचलित हुआ था। ब्रह्मानन्द के लिए कबीर ने रामरस का प्रयोग किया है। इस रस को कबीर ने महारस माना है, उनके शब्दों में -
"छाकि परयो आतम मतिवारा,
पवित राम रस करत विचारा।"
 
"हरिरस पीया जानिये जे, कबहूँ न जाई खुमार,
मैं मंता घूमत रहे नाही तन की सार।"

आठहू पहर मतवाल लागी रहै, आठई पहर की छाँक पीबै।  
आठहू पहर मस्ताना माता रहै, ब्रह्म की घोल में साध जीबै।।
 
मशहूर भाषाविद जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के अनुसार रहस्यवाद और प्रेमोल्लास के देश भारत में ऐसी आत्माएँ प्रकट हुई जिनकी कोई जाति नहीं होती और जो समता, प्यार, सद्भाव और भक्ति को प्रमुख मानते हुए अपनी बातों को जनमानस में पहुंचाने का प्रयास किया और कबीर उसी में से एक थे। भक्त जो भक्ति करता है उसका आदर्श कबीर के अनुसार सती नारी होना चाहिए। सती नारी जिस तरह पति को अनन्य भाव से एकनिष्ट होकर भजती है, उसी पवित्र भाव से भक्त को प्रभु से प्रेम करना चाहिये। यही अंतिम सत्य है क्योंकि कबीर अमृतत्व का उपदेश देनेवाले कवि अमरलोक के संवाद वाहक थे। उनका काव्य असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने वाला है। उनके अनुसार "प्रेम के ढ़ाई आखर" का ज्ञान पाना आवश्यक है। उनके अनुसार - 
"पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। 
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।"

कबीर दास की निर्गुण परंपरा का महत्व आज भी उनकी कविताओं में देखा जा सकता है। उनकी कविताएँ संदेशों को सरलता से प्रस्तुत करती हैं और समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार की प्रेरणा देती हैं। उनका संदेश आज भी महत्वपूर्ण है और हमें ध्यान में रखना चाहिए कि भगवान के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और समाज में समानता की भावना हमेशा जीवन के मार्गदर्शन के रूप में काम करेगी। 
धन्यवाद!
शशि धर कुमार

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Shashi Dhar Kumar नाम: शशि धर कुमार, कटिहार (बिहार) शिक्षा: बी.ए.(अंग्रेजी), बैचलर ऑफ़ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, एडवांस्ड पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन, मास्टर इन डिजिटल मार्केटिंग, सर्टिफिकेट इन डिजिटल मार्केटिंग, सर्टिफिकेट इन कैथी, प्राकृत और संस्कृत लेखन विधा: हिंदी, अंग्रेजी और कैथी में कविता, लेख, कहानी, आलोचना, किताब समीक्षा आदि प्रकाशित कृतियां: व्यक्तिगत कविता संग्रह “रजनीगन्धा” के साथ कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में २०० से ऊपर रचनाएं प्रकाशित। सम्मान और पुरस्कार: शहीद स्मृति चेतना समिति द्वारा "राष्ट्रीय हिन्दी सेवा सम्मान", एसएसआईएफ जयपुर द्वारा "SSIF Global Peace Award 2023" तथा अलग-अलग संगठनों द्वारा २० से ऊपर पुरस्कार तथा सम्मान से सम्मानित। व्यवसाय: सर्टिफाइड डिजिटल मार्केटर, डिजिटल विज्ञापन प्रोफेशनल तथा वेबसाइट विशेषज्ञ और बहुराष्ट्रीय कंपनी में तकनीकी सलाहकार के पद पर कार्यरत। सामाजिक गतिविधियां: सामाजिक कार्यों में रुचि की वजह से दशकों से कई वेबसाइट का संपादन का कार्य और समाज में युवाओं को हर क्षेत्र में अलग-अलग मंचों के माध्यम से जागरूक करने के कई सफल प्रयास।