घर की मालकिन
लाख कोशिशों के बाद भी मुझे याद नहीं आ रहा.... हर वह जगह जहां मैं पैसे रख सकती थी देख ली …पूरी अलमारी छान मारी ….बच्चे भी तब से ढूंढने में लगे हैं पता नहीं मेरी बुद्धि को क्या हो गया है मैं ही लापरवाह हूं मुझसे अब कोई जिम्मेदारी संभाली नहीं जाती अब आप मेरे हाथों में पैसे ना दिया करिए खुद ही रखा करिए विनीता जी अपराध बोध से ग्रसित होकर लगातार रोए जा रही थी ।
सुबह से ही घर में अशांति का माहौल बना हुआ था ....दोनों बहने वर्णिका और आभा अपने छोटे भाई वरुण के साथ कुछ खोजबीन में लगे हुए थे ....मम्मी परेशान थी और रोए जा रही थी तभी तीनों बच्चों के पापा श्रीमान राघव जोशी जी का प्रवेश होता है जो कि बिजली विभाग में अवर अभियंता के पद पर कार्यरत हैं यह इनका छोटा सा खुशहाल परिवार है जोशी जी अपनी पत्नी विनीता से अत्यधिक प्रेम करते हैं और यह बात जगजाहिर है …लेकिन घर में घुसते ही पत्नी और बच्चों की यह स्थिति देखकर अभी वह कुछ समझ पाते तभी बड़ी बेटी वर्णिका बोल पड़ी पापा कल आपने जो सैलरी के पैसे मम्मी को दिए थे वह नहीं मिल रहे हैं ...... जोशी जी की आदत थी कि वह सैलरी मिलते ही सारे रुपए अपनी श्रीमती जी के हाथों में रख दिया करते थे और फिर वह घर का सारा कार्यभार संभालती थी ….रुपए नहीं मिल रहे? घर से कहां जाएंगे? जोशी जी बोले.... वह अपनी धर्म पत्नी की तरफ मुड़े और बोले.. अरे! रो क्यों रही हो ?परेशान मत हो.... मिल जाएंगे।
लाख कोशिशों के बाद भी मुझे याद नहीं आ रहा.... हर वह जगह जहां मैं पैसे रख सकती थी देख ली …पूरी अलमारी छान मारी ….बच्चे भी तब से ढूंढने में लगे हैं पता नहीं मेरी बुद्धि को क्या हो गया है मैं ही लापरवाह हूं मुझसे अब कोई जिम्मेदारी संभाली नहीं जाती अब आप मेरे हाथों में पैसे ना दिया करिए खुद ही रखा करिए विनीता जी अपराध बोध से ग्रसित होकर लगातार रोए जा रही थी । अरे! रोइए नहीं ...शांत हो जाइए... अब मैं आ गया हूं ना ….बच्चों सब लोग चलो मेरे पास आओ... वर्णिका बेटा जाओ जरा चाय बना कर ले आओ सबके लिए पहले चाय पीते हैं फिर आराम से बैठकर इस मसले को सुलझाते हैं….. चलिए श्रीमती जी अब आप भी आराम से शांत होकर चाय पीजिए ज्यादा टेंशन मत लीजिए कहीं बीपी हाई हो गया तो हम लोगों का क्या होगा….
चलो आज खाना बाहर से मंगा लेते हैं तुम सब सिपाही भी थक गए होगे और देखो मम्मी को आराम करना है . रात के 9:00 बज गए सपने खाना खा लिया तभी वरुण बोला पापा चलिए अब रुपए ढूंढते हैं
जोशी जी ने विनीता जी की ओर रुख किया और बोले अच्छा अब शांत मन से सोचिए कि जब मैंने आपको रुपए दिए तब अलमारी में रखने से पहले आप कौन सा काम करने लगी थी? थोड़ा दिमाग पर जोर डालिए मैं तो अलमारी के अलावा कहीं भी रुपए नहीं रखती वह भी इतनी बड़ी रकम मुझे कुछ याद नहीं आ रहा विनीता जी अपनी सफाई में बोली।
अरे मम्मा कल शाम को वह इनवर्टर वाला भी तो आया था पापा जब चले गए थे निगम अंकल से मिलने मैं ट्यूशन से आई थी तब मैंने उसे देखा था कहीं उसी ने तो पैसे गायब नहीं कर दिए आभा ने अपना जासूसी दिमाग लगाया।
नहीं वह ऐसा लड़का नहीं है हां लेकिन जब वह आया तब पैसे मेरे हाथ में ही थे मैं रखने ही जा रही थी लेकिन वह बिल्कुल अंदर ही चलता चला आया तभी 1 मिनट यह कहते हुए विनीता जी अंदर स्टोर रूम की ओर चल पड़ी सभी उनके पीछे हो लिए अंदर जाकर जैसे ही उन्होंने बक्से के ऊपर बिछी मोटी दरी हटाई… नोटों की गड्डी देखकर सब के चेहरे खुशी से खिल उठे पैसे मिल गए पैसे मिल गए बच्चे खुशी से उछलने लगे जोशी जी ने विनीता जी के लिए चेहरे पर आई मुस्कान देख कर बोले मेरी भी कोई हो हो होना खो खोई चीज मिल गई …….तभी विनीता जी बोली जब वह इनवर्टर वाला आया तो मैं पैसे रखने जा ही रही थी लेकिन वह एकदम अंदर आ गया तभी जल्दी से मैंने इनवर्टर के बगल में रखे बक्से की दरी के नीचे पैसे रख दिए होंगे लेकिन पता नहीं कैसे दिमाग से उतर गया और इतना याद करने पर भी कुछ याद नहीं आ रहा था। अच्छा हुआ आभा ने इनवर्टर वाले का नाम लिया तभी एकदम सब याद आ गया….. टेंशन की वजह से ऐसा अक्सर हो जाता है चलिए अब खुश हो जाइए जोशी जी पत्नी को गले लगाते हुए बोले अंत भला तो सब भला चलिए अब सब लोग सोते हैं रात भी काफी हो चुकी है।
अगले दिन संडे था विनीता जी तो प्रसाद चढ़ाने मंदिर चली गई रह गए बच्चे और पिताजी सब बैठे गपिया रहे थे तभी बड़ी बेटी बोली पापा अब तो मैं बड़ी हो गई हूं आप सैलरी मुझे दे दिया करिए मैं आराम से संभाल कर रखूंगी मैं सब बढ़िया से मैनेज करूंगी देखिएगा
..हां पापा यह ठीक रहेगा दोनों बच्चों ने भी अपनी दीदी की हां में हां मिलाई वर्णिका की बात सुनकर जोशी जी कुछ देर के लिए खामोश हो गए और फिर बोले….
……… देखो बेटा तुम लोग सुबह सुबह लंच लेकर अपने स्कूल निकल जाते हैं मैं ऑफिस मम्मी हमारे जाते ही पूरे घर को व्यवस्थित करते हैं साफ-सफाई खाना कपड़े राशन पानी सब की व्यवस्था करते हैं तुम लोगों और मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों का ख्याल रखती है आभा को स्कूल से आने के बाद फल खाना पसंद है कितनी बार भरी दोपहर में मैंने विनीता जी को फल खरीदने जाते हुए देखा है कहीं ऐसा ना हो कि आप स्कूल से आए और उसे फल खाने को नहीं है ऐसे ही वर्णिका तुम बिना कॉफी के दूध नहीं पी सकती वरुण जी को तो बिना बॉर्नविटा के घटक नहीं सकते तुम लोगों को याद भी नहीं होगा कि शायद ही कभी तुम लोगों को कभी भी अपने छोटी-छोटी खाओ से समझौता करना पड़ा हो नहीं और तुम्हारी मम्मी या मेरी हर खुशी का ख्याल क्यों कर तुम्हारी या मेरी हर खुशी का ख्याल क्यों रखती है क्योंकि वह हमसे प्यार करती हैं उनकी इतनी मेहनत के बाद हमारे चेहरे पर आने वाली खुशी ही उनकी पगार है उनकी सैलरी है लेकिन कोई परफेक्ट नहीं होता कई बार बहुत सी चीजें छूट जाती हैं जैसे कल का किस्सा……. घर के कामों को करते-करते सब का ख्याल रखते रखते एक औरत कभी-कभी इतना थक जाती है परेशान हो जाती है कि कहीं ना कहीं कभी ना कभी उसके मन में यह ख्याल आ ही जाता है कि मेरा इस घर में वजूद क्या है एक नौकर की तरह दिन भर घर में काम में लगे रहो एक सौभाविक बात है लेकिन जब मैं पैसों के लिए तुम्हारी मम्मी से कहता हूं जब मैं उनसे पैसे मांगता हूं और वह अपनी अलमारी से रुपए निकालकर मेरे हाथ में रखती हैं उसी समय उन्हें यह एहसास होता है कि वह तो इस घर की मालकिन है बस यह एहसास है उन्हें ताकत देता है मजबूती देता है मालकिन होने का एहसास क्या हमें उनसे छीन लेना चाहिए ? पता है जिसे हम प्यार करते हैं उसे जताने का सबसे अच्छा तरीका क्या है उसके मन में किसी गलती को लेकर गिल्ट अपराध बोध नहीं आना चाहिए उसे उसकी गिल्ट अपराध बोध से बाहर निकालना और यह जताना हम आपसे कितना प्यार और भरोसा करते हैं आपके प्रति कितने आभारी हैं ग्रेट फुल हैं उस व्यक्ति को आत्मविश्वास से भर देता है
……
एक आदमी जब घर से बाहर नौकरी करने निकलता है तो इस निश्चिंता के साथ कि उसके पीछे घर में सब सही रहेगा इतनी बड़ी जिम्मेदारी के बदले चंद पति होते हैं जो अपनी पत्नी के लिए कृतज्ञता का भाव रखते है दो तारीफ के शब्द बोलना भी उन्हें अपनी तौहीन लगता है तरस आता है मुझे ऐसे लोगों पर जिनका घर में घुसते ही पहला डायलॉग होता है मैं तो पूरे दिन मेहनत करता हूं तुम क्या करती हो? अरे भाई अगर तुम शादी ना भी करते तो भी तुम नौकरी तो करते ही खुद के लिए लेकिन क्या उन पैसों के बदले तुम्हें एक ख्याल रखने वाली पत्नी स्वस्थ खुशहाल बच्चे खुशहाल परिवार मिलता क्या पैसों से यह सब खरीदा जा सकता है नहीं लेकिन क्या कर सकते हैं
सबकी अपनी अपनी सोच बहुत से लोग कहते हैं प्यार जताया नहीं जाता …प्यार बताना भी चाहिए और समय- समय पर जताना भी चाहिए पापा की कही बातें बच्चों के मन में भीतर तक बैठती जा रही थी …..
तभी विनीता जी भी मंदिर से लौट आती है सभी बच्चे मम्मी से जोर से चिपक जाते हैं उन तीनों की आंखों में आंसू थे प्यार के आंसू ग्रेटफुल होने के आंसू …
शिखा सक्सेना
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