अपने हिस्से की ज़िन्दगी
रेनू मेम को उसकी बात काफी हद तक सही लगी, पर ना जाने क्यों उन्होंने फिर भी पूछ लिया “क्या तुम्हे लगता है कि हम भी अपनी ज़िन्दगी खुद के लिए नही जीते?” सोनिका बोली “हाँ मेम, मुझे माफ़ कीजियेगा लेकिन हकीक़त यही है कि लड़कों या पुरुषों को एक बार अपनी ज़िन्दगी अपने लिए जीने का मौका मिल जाता है लेकिन अधिकांश लड़कियां या महिलायें अपनी ज़िन्दगी खुद के लिए नहीं जीती|”

आज स्कूल में सामान्य दिनों से ज्यादा चहल-पहल थी| प्रार्थना के बाद अन्य कक्षाओं के बच्चे तो क्लास रूम में चले गए पर कक्षा 12 के बच्चे वहीं रुके रहे| ऐसा लग रहा था जैसे वे इस स्कूल की एक-एक चीज को एक-एक बात को, एक-एक को अपनी आँखों अपने दिमाग में संजो लेना चाहते हो | तभी घंटी की आवाज़ से सबका ध्यान प्रधानाध्यापिका जी के रूम की तरफ चला गया | मांगी बाई आदेश लेकर आये कि सभी बच्चों को असेम्बली हॉल में जा कर बैठना है मैडम थोड़ी देर में आ रही है |
सभी बच्चे असेम्बली हॉल में पंहुच गए| थोड़ी देर में प्रधानाध्यापिका जी श्रीमती रेनू आ गई| उन्हें आता देख बच्चों की आवाज़े धीमी होती चली गयी| उनके आने के साथ बच्चे उनके स्वागत में खड़े हो गए| बच्चों को बैठने का इशारा कर वे भी उन्हीं के बीच में बैठ गयी|
बच्चों की और उनकी बातचीत की शुरुआत पेपर कैसे हुए? रिजल्ट कैसा रहेगा? से होती हुई बच्चों ने आगे क्या सोचा है? की तरफ मुड़ गयी| बच्चों ने अपनी-अपनी बात रखना शुरू किया कुछ का बी.एड करने का, कुछ ने बी.ए. कुछ ने अन्य कोर्स करने, कुछ ने एमबीए करने के बाद अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बांटने अथवा स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के विषय में बताया तथा कुछ ने बी.ए करके शादी के निर्णय अथवा माता-पिता जो कहेंगे वह करने के बारे में बताया|
इस दौरान सोनिका की बहुत बार बारी आई, पर उसने हर बार ये कह कर टाल दिया कि वो बाद में बताएगी| परन्तु अब सब बच्चों की बारी आ चुकी थी, और सिर्फ वही बची थी उसने अपने आगामी जीवन के बारे में बताते हुए कहा- “मेम, मैं अपनी पढाई को इसी तरह आगे जारी रखना चाहती हूँ| मैं आरएएस ऑफिसर बनना चाहती हूँ इसलिए तैयारी भी साथ-साथ करुँगी| इसके साथ ही मैं अपनी ज़िन्दगी का कुछ हिस्सा अपने लिए भी जीना चाहती हूँ|” सब ने उसकी इस बात पर उसे देखना शुरू कर दिया|
बच्चों में खुसर-पुसर शुरू हो गई मेम ने उन्हें शांत करते हुए सोनिका से कहा “सोनिका सब लोग अपनी ज़िन्दगी अपने लिए ही जीते है| तुम्हारे ऐसा कहने के पीछे क्या वजह है? अपनी बात को स्पष्ट करों|” सोनिका बोली-“मेम ये हम सब की बहुत बड़ी गलतफहमी है विशेष तौर से लड़कियों की, कि वे अपनी ज़िन्दगी अपने लिए जीती हैं| यहाँ आपने जब सबसे यह पूछा कि तुम क्या करना चाहती हो? सबके जवाब में कहीं घर वाले, कहीं मम्मी पापा, कहीं बुजुर्गों की इच्छा तो कहीं उनसे जुड़े उनके परिजनों के सपने थे किसी ने भी यह नहीं कहा कि वो खुद से , खुद के लिए यह करना चाहता है या यह चाहती है| यहाँ तक कि शादी जैसे बड़े निर्णय में भी उनकी मंजूरी शामिल नहीं थी|” सभी बच्चे विशेष तौर पर लड़कियां अपनी कही बात पर पुनः विचार करने लगी|
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रेनू मेम को उसकी बात काफी हद तक सही लगी, पर ना जाने क्यों उन्होंने फिर भी पूछ लिया “क्या तुम्हे लगता है कि हम भी अपनी ज़िन्दगी खुद के लिए नही जीते?” सोनिका बोली “हाँ मेम, मुझे माफ़ कीजियेगा लेकिन हकीक़त यही है कि लड़कों या पुरुषों को एक बार अपनी ज़िन्दगी अपने लिए जीने का मौका मिल जाता है लेकिन अधिकांश लड़कियां या महिलायें अपनी ज़िन्दगी खुद के लिए नहीं जीती|”
अपनी बात को पूरा करते हुए उसने कहा “मैं आपको मेरी मदर का उदाहरण बताती हूँ | मेरी नानी ने मुझे बचपन में बताया था, कि मेरी मम्मी बहुत होशियार लड़की थी| वाकपटु होने के साथ बेहद समझदार और कला प्रतिभा की धनी| वे वकील बनना चाहती थी, डांसर बनना चाहती थी| लेकिन परिवार को लगता था कि वकालत का क्षेत्र लड़कियों के लिए
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