जीवन का न कोई ठिकाना
संग सांसों का अनमोल खजाना लुट जाए कब यह कोई न जाना
जीवन का न कोई ठिकाना
न जाने हमें कहां है जाना।
संग सांसों का अनमोल खजाना
लुट जाए कब यह कोई न जाना
जीवन का न कोई ठिकाना
न जाने हमें कहां है जाना।
छूट जाए साथ कब किसका
राज जीवन का यह कोई न जाना
जीवन का न कोई ठिकाना
न जाने हमें कहां है जाना।
डगर जीवन की किधर मुड़ जाए
वक्त का परिंदा कब किसे कहां ले जाए
यह बात समझ में किसी के न आए।
चलते-चलते इस दुनिया से
पाक चुनरिया कहीं मैली न हो जाए
यह बात सदा दिल में बिठाएं
सोच-समझकर हर कदम बढ़ाएं।
सुनील कुमार
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