पास बैठो
बैठो न पास जरा-सी देर कि देख पाऊं तुम्हारी आंखों में अपनी परछाईं।
बैठो न पास जरा-सी देर
कि देख पाऊं तुम्हारी
आंखों में अपनी परछाईं।
बैठो न पास जरा-सी देर
कि निहारूं तुम्हें दो पल
मूरत सी बनी हुई शांत।
बैठो न पास जरा-सी देर
कि भर पाऊं सांसों में
तुम्हारा थिरकता स्पंदन।
बैठो न पास जरा-सी देर
कि सज-धज जाऊं मैं
प्रेम के अनूठे सिंगार से।
राजीव रंजन सहाय
देवघर, झारखंड
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