Hindi Poetry | बेटा हुआ पराया

ऊँगली थाम जिसे दुनियां की सरपट सैर कराया  वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ पराया 

Sep 1, 2024 - 18:04
Sep 5, 2024 - 14:36
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Hindi Poetry | बेटा हुआ पराया
san

ऊँगली थाम जिसे दुनियां की सरपट सैर कराया 
वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ पराया 
हाँ, हाँ बेटा हुआ पराया

जिस सिर पर थपकी दें देकर रैन जाग पुचकारा 
गीले में खुद सोकर के अगणित निशिदिन किया गुजारा 
भींगे पलकों से तकलीफे अपनी सदा चुराई 
लोरी गा-गाकर के जाने कितनी नींद सुलाई

उस नेकी का हमको समुचित विधना कैसा न्याय मिला?
किए सुकर्मों का प्रतिफल क्यों आख़िर ये अन्याय मिला?

जग की रीति सदा प्रकृति ने हैं अक्सर दुहराया 
वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ पराया 
हाँ, हाँ बेटा हुआ पराया

जिनसे आस लगा बैठे थे उसने ही ठुकराया 
मेरे ही घर में रहने का लेने लगें किराया 
जिन हाथों ने गोंद में लेकर झूमा, दिया निवाला 
बीवी के आते ही उन बच्चों ने हमें निकाला 

दुनियां के दस्तूर बदल गए नियम लगें बताने 
कान हमारे बहरे हो गए सुनते-सुनते ताने 
बूढ़े कंपते हाथों को मिल सका न कोई सहारा 
झूठे ताने बानो में अपनों ने किया किनारा

जिसने जैसा किया अंत में वैसा ही हैं पाया
जिसने जैसा किया कर्म हैं अंत वहीं सब पाया 
वृद्धाश्रम की भेंट चढ़े हम, बेटा हुआ पराया

नजरों को आदत हैं उनकी राह में तकते रहना 
आस दिलों में रखकर मन को मार के चलते चलना 
किस्मत के आघात दिलों पर प्रतिपल घाव जमाए 
अपने हुए पराए देखो कैसे दुर्दिन आए?

किन पापों की सज़ा मिली विधना थोड़ा बतलाता 
ऐसी बिगड़ी औलादों से अच्छा बेऔलाद बनाता

फिर भी ;
जैसा साथ किया मेरे वो दिन न तेरे संग आए 
बेटे ख़ुश रहना जीवन भर दूंगा यहीं दुआएं

हर्ष श्रीवास्तव "चंचल"

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