भीगा मन

साक्षी विपरीत परिस्थितियों में भी अपना काम उतनी ही तन्मयता से करती रही। उसी कठिन परिश्रम और सब्र का फल मिलने वाला था। थोड़ी घबराहट हो रही थी फिर भी पूरी प्रयोगशाला को साक्षी ने अपने हाथों से साफ किया था। प्रयोगशाला के पीछे बने बगीचे से तोड़कर खूबसूरत फूल अपने हाथों से सजाकर परीक्षक महोदया की मेज़ पर रखे थे। उसे पता चल गया था कि उनको फूलों से विशेष लगाव था। डॉक्टर जानकी जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम थी।

Aug 28, 2024 - 16:26
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भीगा मन
wet mind

साक्षी कई दिनों से बहुत व्यस्त थी। उसकी पीएचडी की परीक्षा पास आ रही थी चार वर्षों की जी तोड़ मेहनत का परिणाम मिलने का समय आ गया था। वह चाहती थी कि सब कुछ ठीक से हो जाए और उसे डिग्री मिल जाए। इस डिग्री से उसके साथ साथ माता पिता की भी भावनाएं जुड़ी थी। साक्षी के जीवन में कोई सीधी राह कभी नहीं रही। पिछले चार सालों में भी  बहुत उथल पुथल रही। किन्तु साक्षी ने उसका प्रभाव अपने काम पर नहीं पड़ने दिया। जीवन में सावन आया और बिना भिगोए चला भी गया। आंसू पी जाने का हुनर भी उसने पीएचडी करने के साथ ही सीखा। सभी एहसासों को उसने अपने मन में दबा कर रखा। प्रयोगशाला में प्रवेश नहीं करने दिया।

निश्चित तिथि को परीक्षक महोदय डॉक्टर जानकी आन पहुंची। उनके रहने खाने की व्यवस्था साक्षी की गाइड डॉक्टर विमला ने अपने घर पर की हुई थी। डॉक्टर विमला ने बताया था कि वो उनकी सहपाठी रही थी। दोनों को पीएचडी की डिग्री भी साथ ही मिली थी। अपनी गाइड से साक्षी को सहायता की उम्मीद नहीं थी। बल्कि उसके जीवन में आई उथल पुथल का कारण भी कहीं न कहीं डॉक्टर विमला ही थी। कोई दूसरा स्कॉलर होता तो पीएचडी छोड़कर जा चुका होता। लेकिन साक्षी विपरीत परिस्थितियों में भी अपना काम उतनी ही तन्मयता से करती रही। उसी कठिन परिश्रम और सब्र का फल मिलने वाला था। थोड़ी घबराहट हो रही थी फिर भी पूरी प्रयोगशाला को साक्षी ने अपने हाथों से साफ किया था। प्रयोगशाला के पीछे बने बगीचे से तोड़कर खूबसूरत फूल अपने हाथों से सजाकर परीक्षक महोदया की मेज़ पर रखे थे। उसे पता चल गया था कि उनको  फूलों से विशेष लगाव था। डॉक्टर जानकी जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम थी। उनके अनेक शोधपत्र साक्षी ने पढ़े थे। साक्षी दिल से चाहती थी कि उन्हें अपने काम से प्रभावित कर पाए ताकि भविष्य में उनके साथ काम करने का अवसर प्राप्त हो सके। उसका नाम भी विज्ञान के क्षेत्र में चमके। साक्षात्कार प्रारंभ हुआ।

डॉक्टर जानकी के साथ लगभग एक घंटे तक वार्तालाप हुआ। साक्षी जितना डर रही थी डॉक्टर जानकी ने उतनी ही सहजता से उससे प्रश्न पूछे। प्रश्न कठिन थे लेकिन उनका उद्देश्य प्रश्नों का उत्तर जानना ही था साक्षी का मनोबल गिराना नहीं। विषय पर उनकी मजबूत पकड़ ने साक्षी को बहुत प्रभावित किया। डॉक्टर जानकी भी खुश ही दिख रही थी। परन्तु अपने आप उन्होंने साक्षी को कुछ नहीं कहा। परिणाम के बारे में डॉक्टर विमला ही बताने वाली थी। परीक्षा के बाद साक्षी को डॉक्टर जानकी के साथ बाज़ार तक जाना था। शहर की प्रसिद्ध वस्तुएं उनको खरीदनी थी। प्रमुख स्थान भी देखने थे। उसकी गाइड डॉक्टर विमला पहले ही साक्षी को उन्हे शहर घुमाने का फरमान सुना चुकी थी। असहज होते हुए भी वह मना नहीं कर पाई थी।

साक्षी उनके साथ दिन भर बाज़ार में घूमती रही। बरसात का मौसम होने के कारण शाम होते होते बारिश आ ही गई। एक छोटी सी दुकान पर दोनों चाय पीने के लिए रुकी। चाय वाले का उत्साह देखते ही बनता था। बर्तन धोकर, अदरक, तुलसी डालकर उसने चाय बनाना शुरू किया। डॉक्टर जानकी बातें करती जा रही थी। साक्षी भी उनसे घुल मिल गई थी। बातों बातों में उन्होंने साक्षी से उसके भविष्य की योजनाओं के विषय में पूछा। साक्षी ने तुरंत जवाब दिया,`मैडम, अभी अपने मित्र राजन से मुझे मिलना है। उसके बाद आगे का निश्चय करूंगी। डॉक्टर जानकी ने राजन के विषय में पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया। राजन साक्षी का सहपाठी था। दोनों साथ साथ इस संस्थान में पीएचडी करने आए थे। शुरू के दो साल दोनों काम में डूबे रहे। काम में डूबे डूबे एक दूसरे के मन में भी उतर गए। अक्सर बारिश होने पर इस दुकान पर चाय पीने आया करते थे। पढ़ाई के साथ साथ प्यार भी आगे बढ़ रहा था। तीसरे साल डॉक्टर विमला की बेटी ने प्रयोगशाला में आना प्रारम्भ किया तो सब बदल गया। वह पूरे समय राजन के साथ ही रहती थी। राजन भी अब पहले की तरह साक्षी से मिलने के लिए, साथ बैठने के लिए, बारिश में भीगने और चाय पीने के लिए उतावला नहीं रहता था। साक्षी ने पूछा तो राजन ने इतना ही बताया कि उसे जल्दी अपनी पीएचडी ख़त्म करके उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना है। इसीलिए डॉक्टर विमला के कहने पर वह शुभि की मदद कर रहा है। साक्षी उसकी सफाई से संतुष्ट नहीं थी लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए चुप ही रही। तीन साल होते ही राजन और शुभि दोनों को पीएचडी की डिग्री मिल गई और दोनों ही आगे की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए। साक्षी उसी प्रयोगशाला में काम करते हुए रह गई। उसके पूछने से पहले ही डॉक्टर विमला ने सफाई दी कि उसका और शुभि का काम एक जैसा ही था। शुभि ने जल्दी पूरा कर लिया इसलिए उसे स्कॉलरशिप मिल गई। साक्षी ने काम से अधिक समय राजन के साथ बिताया।  साक्षी पूरी तरह टूट गई थी लेकिन मम्मी पापा के समझाने पर उसने अपना काम जारी रखा। दिल के दर्द को प्रयगशाला से बाहर रखा। निराशा के दौर में भी उम्मीद का दामन थामे रखा। 

उसके बारे में जानकर डॉक्टर जानकी भी थोड़ी उदास हो गई। चाय खत्म करके दोनों वापिस आ गए। बारिश भी अब रुक गई थी। अगले दिन डॉक्टर जानकी को विदा करके साक्षी मम्मी पापा के पास आ गई। कुछ दिन उनके साथ बिताना चाहती थी। उसने लैपटॉप, मोबाइल सब बंद कर दिया। बस मम्मी पापा से बातें करना और सोना यही सब किया। एक हफ्ते बाद उसने मेल देखा तो डॉक्टर जानकी का मेल आया हुआ था। उन्होंने अपने अगले प्रोजेक्ट में उसे हेड नियुक्त किया था और कल ही उसे अपनी नई जॉब के लिए जाना था। साक्षी अगले दिन डॉक्टर जानकी की प्रयोगशाला में उनके सामने बैठी थी। उसके असिस्टेंट की लिस्ट में राजन और शुभि के नाम भी थे। डॉक्टर जानकी ने साक्षी को छेड़ा साक्षी मैडम कल आप अपने असिस्टेंट राजन से गुफ्तगू कर लेना। साक्षी मुस्कुराई। अब बात नहीं करना चाहती मैडम। राजन मेरा अतीत है। यह लैब मेरा वर्तमान है। बिना कुछ कहे आपने सब समझा दिया है। यह बारिश अब मेरा मन नहीं बदल सकती है। आपने मेरा खोया आत्मविश्वास वापिस लौटा दिया है। डॉक्टर जानकी बाहर देख रही थी। साक्षी ने देखा सब धुला धुला नज़र आ रहा था। बारिश की बूंदें टप टप लैब के पीछे बने बगीचे को भिगो रही थी। सभी पौधे और फूल मुस्कुरा रहे थे। यह सावन साक्षी के तन मन को भिगोकर उसके  आत्मसम्मान को उसका हमसफर बना गया था। हां राजन और शुभि ने उस प्रॉजेक्ट से अपने नाम वापिस ले लिए थे। अपने से पीछे रह जाने वाली साक्षी के नीचे कैसे काम कर सकते थे? 

अर्चना त्यागी

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