भेड़चाल

कविता - आज के युग में एक दूसरे की देखा देखी चलने वाले हम लोगों को , जो अपने इसी भेड़चाल में अपना आनंद खो चुके हैं , यह कविता सोचने पर मजबूर करती है।

Apr 19, 2024 - 11:04
Apr 26, 2024 - 11:08
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भेड़चाल

भेड़चाल

 

बड़ी अजीब बात है,

हम दुनियां की भेंडचाल में चले जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

 

न भीड़ की राह का पता,

न है पता उद्देश्य का,

बस भीड़ का हिस्सा बने जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

 

न सही और गलत की पहचान है,

न पहचान है अपनी हस्ती की,

बस मान्यताओं की लकीर पीटते जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

 

न साहस है अलग राह चुनने का,

न है साहस अकेले चलने का,

बस भीड़ में अपने को खोते जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

 

न भीड़ दिला पाएगी सुकून,

न बाजार में मिलती हैं खुशियां,

अज्ञान में आनंद को खोते जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

 

बड़ी अजीब बात है,

हम दुनियां की भेंडचाल में चले जा रहे,

यूं ही जिंदगी जिए जा रहे।

                                 - रंगोली अवस्थी

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