सफाई

Nov 7, 2024 - 16:22
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सफाई कर चुकने के बाद भी,

आ जाती है मिट्टी,

बन जाते हैं जाले,

बिखर पड़ते हैं दाने,

चिड़िया अब भी 

करती है,

चलते हुए पंखों पर

तिनके जोड़कर

घर बनाने का काम;

दीमके अब भी

खोजती है 

लकड़ी का सामान;

चींटियां अब भी

ढोती है

पक्के फर्श पर बिखरे

रोटी के टुकड़े,

मक्खियां अब भी

भिनभिनाती है

बैठकर कहीं क्षणिक;

कागज़ों पर अब भी

आ गिरती है

गर्म अंगुलियों की सिलवटें;

सूर्य की किरणे अब भी

चुपचाप,खिड़की से

दाखिल हो जाती है;

पर्दे अब भी

हवा के झौंके के साथ

संगीन हो जाते हैं 

और मैं —

यह सब सहजता से

देखता जाता हूं।

—साहित्यबंधु

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Skumar साहित्य सृजन पुरस्कार व अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, सर्व भाषा साहित्यकार सम्मान प्राप्त। वक्त रहते विचार लो कि क्या करना है अभी। यह जो वक्त बीत गया फिर निराश होंगे सभी।।