सफाई
सफाई कर चुकने के बाद भी,
आ जाती है मिट्टी,
बन जाते हैं जाले,
बिखर पड़ते हैं दाने,
चिड़िया अब भी
करती है,
चलते हुए पंखों पर
तिनके जोड़कर
घर बनाने का काम;
दीमके अब भी
खोजती है
लकड़ी का सामान;
चींटियां अब भी
ढोती है
पक्के फर्श पर बिखरे
रोटी के टुकड़े,
मक्खियां अब भी
भिनभिनाती है
बैठकर कहीं क्षणिक;
कागज़ों पर अब भी
आ गिरती है
गर्म अंगुलियों की सिलवटें;
सूर्य की किरणे अब भी
चुपचाप,खिड़की से
दाखिल हो जाती है;
पर्दे अब भी
हवा के झौंके के साथ
संगीन हो जाते हैं
और मैं —
यह सब सहजता से
देखता जाता हूं।
—साहित्यबंधु
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