रात का भोजन स्किप कर के फिट रहने की पद्धति कितनी उपयोगी?
र दोपहर का भोजन मध्यमवर्ग जैसा- एकदम सात्विक। मध्यम वर्गीय परिवारों में जैसा होता है। अधिक तेल से लथपथ भी नहीं और पूरी तरह से उबला भी नहीं-सप्रमाण भोजन। जिसमें ठीक से तेल से छौंकी दाल, थोड़ा चावल और हरी सब्ज़ी या खड़े अनाज यानी चना, मूंग, राजमा आदि की सब्जी हो। खाने के बाद पेट को ठंडक देने के लिए ठंडी छाछ हो। रात का भोजन गरीबों जैसा यानी एकदम सादा और कम भोजन। गरोबों के पास रोजाना रात को तरह-तरह के व्यंजन खाने के पैसे नहीं होते और मजदूर वर्ग के पास तो इतना समय भी नहीं होता। खिचड़ी, चावल, रोटी और सब्जी आदि इस तरह का कुछ सादा भोजन खा कर गरीब मजदूर सो जाता है।

एक जगजाहिर कहावत है- सुबह का नाश्ता राजाओं जैसा, दोपहर का भोजन मध्यमवर्ग जैसा और रात का भोजन गरीबों जैसा। अंग्रेजी में इस तरह कहा जाता है- इट ब्रेकफर्स्ट लाइक ए किंग, लंच लाइक ए प्रिंस, डिनर लाइक ए पुअर। सुबह के भोजन में राजा की थाली में हो इस तरह के ५६ भोग खाइए। दोपहर में मध्यमवर्ग जिस तरह खाता है, उस तरह पौष्टिक-स्वादिष्ट, परंतु सादा खाएं। रात को गरीबों के खाने में जैसा होता है, इस तरह का पौष्टिक, परंतु उबला या कम तेल-मसाला वाला खाएं।
यह कहावत बड़े-बूजुर्गों ने बहुत सोच-समझकर बनाई थी। इसमें विज्ञान के सूत्र की झलक है। आज डाइटीशियन इसी बात को कुछ अलग तरह से कहते हैं। सुबह तरह-तरह के व्यंजन भरपेट खाएं। इसमें सूखा मेवा हो या तलाभुना हो, रोटी हो या पराठा हो। आज गांवों में किसान या मजदूर सुबह काम पर जाते हैं तो भरपेट रोटी या पराठा सब्जी खाकर जाते हैं। ऊपर से एक लोटा छाछ (मट्ठा) भी पीते हैं। नाश्ता का `सिस्टम' तो शहर का है। गांवों में उठते ही जैसी मेहनत करनी होती है, उसी हिसाब से भोजन करना पड़ता है।
और दोपहर का भोजन मध्यमवर्ग जैसा- एकदम सात्विक। मध्यम वर्गीय परिवारों में जैसा होता है। अधिक तेल से लथपथ भी नहीं और पूरी तरह से उबला भी नहीं-सप्रमाण भोजन। जिसमें ठीक से तेल से छौंकी दाल, थोड़ा चावल और हरी सब्ज़ी या खड़े अनाज यानी चना, मूंग, राजमा आदि की सब्जी हो। खाने के बाद पेट को ठंडक देने के लिए ठंडी छाछ हो।
रात का भोजन गरीबों जैसा यानी एकदम सादा और कम भोजन। गरोबों के पास रोजाना रात को तरह-तरह के व्यंजन खाने के पैसे नहीं होते और मजदूर वर्ग के पास तो इतना समय भी नहीं होता। खिचड़ी, चावल, रोटी और सब्जी आदि इस तरह का कुछ सादा भोजन खा कर गरीब मजदूर सो जाता है।
इस कहावत से सहमत होते हुए आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि रात को जितना संभव हो, उतना कम खाएं। दिन भर काम करने के बाद रात को खाने के बाद कुछ काम नहीं करना होता। देर से खाने के बाद सो जाना होता है, जिससे खुराक पचती नहीं और शरीर में बिना मतलब चर्बी जमती है।
अब इस बात को लोग नए तरीके से स्वीकार कर रहे हैं। रात को कम या हलका खाने के बजाय हजारों लोग धीरे-धीरे रात का भोजन ही स्किप कर रहे हैं। तो क्या इस तरह की डायट से फिटनेस बचाई जा सकती है? इस बारे में विज्ञान क्या कहता है?
साल १९७५ से दुनिया में ओबेसिटी यानी स्थूलता की मात्रा तीन गुना हुई है। १९९० के बाद तो स्थूलता ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा दिया है। इस समय हर आठ में से एक व्यक्ति ओवरवेट है। दुनिया की ८०० करोड़ की जनसंख्या में १०० करोड़ से अधिक लोग गंभीर ओबेसिटी के साथ जी रहे हैं। इसमें १२ करोड़ बच्चे भी शामिल हैं। यही नहीं, १२० करोड़ लोग ओबेसिटी के करीब हैं अथवा बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की अपेक्षा अधिक वजन वाले है।
भारत में भी ओबेसिटी बढ़ रही है। अभी कुछ दिनों पहले नरेन्द्र मोदी ने ओबेसिटी के खिलाफ कैंपेन शुरू किया है और लोगों को तेल रहित चर्बीयुक्त पदार्थ भोजन में कम करने की सलाह दी थी। १९९० में मात्र १२ प्रतिशत महिलाएं और ८ प्रतिशत पुरुषों में ही स्थूलता की मात्रा देखने को मिलती थी। २०२५ में देश के १० करोड़ लोग ओवरवेट की समस्या से परेशान हैं।
अनियंत्रित लाइफ स्टाइल, बदल रही फूड हैबिट्स, घट रही शारीरिक एक्टिविटी आदि के कारण मोटापा बढ़ रहा है। चिंताजनक बात यह है कि देश के युवाओं में मोटापा यानी ओवरवेट की समस्या तेजी से बढ़ रही है। परिणामस्वरूप यह दहशत व्यक्त की जा रही है कि आगामी एक दशक में देश के ४० करोड़ लोग ओवरवेट होंगे।
एक ओर ऐसी चिंताजनक परिस्थिति, दूसरी ओर सैकड़ो लोग हेल्थ काँशयस हो कर जिम जा रहे हैं, स्ट्रिक्ट डायट प्लान फॉलो कर के वजन को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रहे हैं। फिट रहने की इस ओवरनेस के कारण हजारों-लाखों लोग रात का भोजन स्किप कर रहे हैं। तमाम लोग वजन घटाने के लिए रात में भोजन न करने की तरकीब आजमा रहे हैं। तब मेडिकल के मीटर में इस पद्धति को नापना जरूरी है।
हार्वर्ड मेडिकल कालेज की रिसर्च के अनुसार देर रात खाने से ओबेसिटी का खतरा है। सूर्य डूबने के बाद पेट को भारी लगने वाले वजनदार खुराक से दूर रहना चाहिए। परंतु दो भोजन के बीच दस घंटे से अधिक का अंतर नहीं रखना चाहिए। इससे लंबे समय तक ऐसा करने से डायबिटीज का खतरा रहता है। अगर दोपहर बाद भोजन करने से सुबह नाश्ता किया जाता है तो इस बीच १२ से १५ घंटे का लंबा विराम पड़ने से वजन तो कम होता है, परंतु शरीर में अन्य समस्या के खतरे को नकारा नहीं जा सकता।
जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं कि डिनर हमेशा स्किप करना अच्छा नहीं है। इससे मेटाबोलिज्म पर असर होता है। स्ट्रेस का भी खतरा रहता है। रात का भोजन स्किप कर देने से थोड़े समय के लिए वजन कम हो जाता है, परंतु फिर से रूटीन भोजन शुरू करने से वजन तेजी से बढ़ जाता है। वाशिंग्टन यूनिवर्सिटी के मेडिकल डिपार्टमेंट के शोधकर्ता मानते हैं कि रात का भोजन स्किप कर देने से डेली केलरी घट जाती है। इससे शरीर फिट रहता है, परंतु एनर्जी की कमी महसूस होती रहती है।
इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने कुछ समय पहले कहा था कि भारतीयों को लगभग जितनी खुराक खानी चाहिए, उससे अधिक खुराक खाने से स्थूलता का खतरा बढ़ा है। बेंगलुरु के डा. कार्तिक सेल्वी की माने तो रात का भोजन बंद कर देने से शरीर का सिस्टम स्लो हो जाता है। इससे स्ट्रेस बढ़ता है और भूख अधिक लगती है। मेटाबोलिज्म पर असर होने से तमाम मामलों में चर्बी बढ़ जाती है। तासीर के अनुसार वजन घटाने में यह पद्धति उपयोगी है, परंतु हमेशा के लिए भोजन बंद करने के बजाय डायट में बदलाव करना चाहिए। दिल्ली की डा. राबिया कहती हैं कि थोड़े समय के लिए वजन घटाने में डिनर स्किप करने से फायदा निश्चित होता है, परंतु यह टिकाऊ तरीका नहीं है।
संक्षेप में देश या विदेश के एक्सपर्ट डिनर स्किप करने की सीधी सलाह नहीं देते। इन सभी के ओपिनियन का निचोड़ यह है कि सभी के शरीर के लिए यह एक जैसी उपयोगी नहीं है। डिनर बंद कर देना परमानेंट उपाय नहीं है।
तो फिर उपाय क्या है?
हार्वर्ड मेडिकल कालेज के शोधकर्ता हलकी खुराक की सलाह देते हैं। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट डिनर स्किप करने की बात से सहमत नहीं हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि देर रात तला, तीखा या भारी भोजन को टालना चाहिए। इसके बदले सेलर्ड या दूध लाभदायक है। जॉन होपकिंस की रिसर्च में कहा गया है कि देर शाम को चलने की आदत हो तो राइस या एकाध ब्रेड खाने से अधिक वजन नहीं बढ़ता।
संक्षेप में, रात का भोजन पूरी तरह बंद कर देने से कुछ समय के लिए तो फायदा होता है, परंतु शरीर के सिस्टम के लिए टिकाऊ रास्ता नहीं है। रास्ता तो यही है कि, इट ब्रेकफर्स्ट लाइक ए किंग, लंच लाइक ए प्रिंस, डिनर लाइक ए पुअर।
इंटरमीडिएट डायट पर बढ़ता भरोसा
रात का भोजन स्किप करने जैसा ही एक डायट प्लान है- इंटरमीडिएट। दोनों में फर्क यह है कि रात का भोजन स्किप करने वाले लोग सुबह नाश्ता करते हैं। रात को खाना नहीं खाते, परंतु उसके बजाय चाय-कॉफी या दूध पी सकते हैं। जबकि इंटरमीडिएट डायट में दो भोजन के बीच १६ घंटे का लंबा ब्रेक पड़ता है। इस प्रकार के प्लान में आठ घंटे तक कुछ भी खाया जा सकता है। बीच के १६ घंटे पानी के सिवाय कुछ भी नहीं पीना होता। इसमें तो चाय-कॉफी भी पीना मना है। इंटरमीडिएट फास्टिंग का कांसेप्ट तमाम धर्मों के लोगों की खाने और उपवास की पद्धति पर बनाई गई है। अमुक धर्मों में निश्चित समय के दौरान अमुक घंटे का उपवास रखते हैं और एक बार खाते हैं। १९१५ से इस पर प्रयोग शुरू हुआ था। अमेरिकी साइंटिस्ट बेंजामिन ब्लूम ने १९६० में एक रिसर्च पेपर में इस प्रकार के डायट की जानकारी दी थी। १४ दिनों तक इस तरह भूखे रहने से शरीर में असाधारण बदलाव होता है और इसका असर वतएर्न पर पड़ता है। इस तरह का प्रयोग कर के बेंजामिन चर्चा में आ गए थे।
२०१९ के एक अध्ययन में बताया गया है कि इंटरमीडिएट फास्टिंग से ओबेसिटी घटाई जा सकती है, परंतु हर किसी के शरीर में इसका अलग-अलग असर होने से विशेषज्ञ की मानीटरिंग के बगैर ऐसा करना उचित नहीं है। तमाम एक्सपर्ट एक दिन के अंतर पर इस डायट को फॉलो कर के वजन घटाने की बात कहते हैं। अमुक इंटरमीडिएट डायट में ८ के बजाय १० या १२ घंटे की फास्टिंग विंडो भी होती है तो अमुक में ६ घंटे की फास्टिंग विंडो रखी जाती है। इस बीच जो खाया जा सकता है, उसके अलावा केवल पानी पी कर बिताना होता है। देश में तमाम लोग इंटरमीडिएट डायट प्लान पर भरोसा कर रहे हैं।
अरुण कुमार कैहरबा
करनाल, हरियाणा
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