इगोर स्पास्की : सबमरीन डिजाइन के सुनहरे दिनों का अंत
रूस की तीन सबमरीन डिजाइन के मुख्य केंद्रों में से दो सेंटर सेंट पीटर्सबर्ग से आते हैं। जिसमें मालाखित मरीन इंजीनियरिंग ब्यूरो और रुबिन सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो फार मरीन इंजीनियरिंग (रुबिन) का समावेश होता है। जबकि लाजुरिट सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो सबमरीन और सबमर्सिबल डिजाइन के क्षेत्र में अग्रणी डिजाइन पब्लिक कंपनी है। २००१ में सबमरीन शोध के सौ साल पूरे होने का उत्सव मनाने के लिए २५ पन्ने की ब्रोसर जैसी पुस्तिका छापी गई थी। जिसका टाइटल था, `फाइव कलर आफ टाइम'। इस पुस्तक में रूस द्वारा सबमरीन को विकसित करने में किए गए शोध और खोज का इतिहास दिया गया है।
मनुष्य प्राचीनकाल से हथियारों की खोज करता आ रहा है। भूतकाल में हथियार का उपयोग व्यक्ति को मारने या अपंग करने से लेकर विशाल राज्य और समग्र संस्कृति को नष्ट करने के लिए भी हो चुका है। मनुष्य के लिए हथियारों की खोज सब से बड़ी सांस्कृतिक और कलात्मक सिद्धि मानी जती है। युद्ध के इतिहास में उपयोग में आने वाले साधनों से विजय, आक्रमण और गुलामी जैसी भेंट मिलती रही है। शांति के समय विविध राष्ट्र की दुष्टता को रोकने और शांति को बनाए रखने के लिए भी हथियारों का उपयोग होता रहा है।
युद्ध में उपयोग में आने वाला एक खतरनाक हथियार यानी सबमरीन। आधुनिक काल में खतरनाक हथियार के रूप में न्यूक्लियर सबमरीन को उपयोग में लिया जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुए कोल्डवार के परिणामस्वरूप विश्व को पावरफुल न्यूक्लियर सबमरीन का उपहार मिला है। सोवियत यूनियन और अब रूस को न्यूक्लियर सबमरीन में अग्रसर रखने वाले रूस के इंजीनियर सबमरीन डिजाइनर इगोर दिमित्रीविय स्पास्की का ३ सितंबर, २०२४ को ९८ साल की उम्र में निधन हो गया है।
साल २००१में रूस ने अपनी सबमरीन डिजाइन के सौ साल पूरे होने का उत्सव मनाया था तो रूस सबमरीन डिजाइन संस्था 'रुबिन' के प्रमुख इगोर स्पास्की थे। पर वह जिदगी की सेंचुरी मारने में चूक गए। उनकी डिजाइन की गई न्यूक्लियर सबमरीन में विस्फोट होने से उसमें बैठे तमाम युवकों की मौत हो गई थी। ऐसे बुरे समय में स्पास्की की न्यूक्लियर डिजाइन विवादास्पद बन गई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ और उसके बाद रूस में हुए सबमरीन डिजाइन का इतिहास और इगोर दिमित्रीविय स्पास्की की जीवनकथा समांतर चलती है। इतिहास में नजर करते हैं तो...
सबमरीन की खोज का इतिहास-
वैश्विक इतिहास की बात करें तो सचमुच पानी की सतह के नीचे जा कर पानी को पीछे ठेल कर आगे बढ़ने वाली सबमरीन डिजाइन करने का श्रेय डयमेन कोर्नेलियस ड्रेबेल को जाता है, जो किंग जेम्स प्रथम के दरबारी शोधक के रूप में सेवा दे रहे थे। साल १६२३ में लंदन की थेम्स नदी में पहली बार अंडर वाटर सबमरीन की सवारी करने का ऐतिहासिक साक्ष्य मिलता है। १८वीं और १९वीं सदी में ब्रिटेन, जर्मनी इटली और प्रâांस जैसे यूरोपीय देश भी सबमरीन के विकास के लिए आगे आए थे। रूस को सबमरीन शोधक के वैश्विक नक्शे पर पहली पंक्ति मे लाने के लिए येफिम निकोनोव, रूस के जार पीटर प्रथम ने एक विशिष्ट प्रकार की सबमरीन तैयार करने की दरख्वास्त की थी। जो सबमरीन राकेट और मिसाइल से सुसज्जित हो। रूस के जार पीटर प्रथम की मंजूरी मिलते ही जून, १७२० में प्रथम प्रोटोटाइप सबमरीन का निर्माण पूर्ण हुआ। परंतु १७२५ में जार पीटर प्रथम की मौत होने से यह प्रोजेक्ट भी आधे में ही रुक गया।
लगभग एक सदी बाद १८३४ में सेंट पीटर्सबर्ग में इवान फेडोरोविय लेक्सांड्रोवास्की के यार्ड में इंजीनियर जनरल कार्व एंड्रीयेविय शिल्कर की लोहे की सबमर्सिबल डिजाइन वाली सबमरीन का निर्माण पूरा किया गया।
१८९० के समयकाल में फिर से रूस की जनता में रुचि जागी। एक सबमरीन संस्था की स्थापना की गई। जून, १९०१ में रूस की अपनी स्वदेशी डिजाइन की सबमरीन इवान ग्रिगोरेविच बुब्नोव के नेतृत्व में तैयार की गई, जो डॉल्फिन के रूप में जानी जाती है। प्रथम विश्वयुद्ध के शुरू होने के पहले ही रूस अपनी बार्स क्लास की सबमरीन को समुद्र के पानी में उतार चुका था। रूस ने सबमरीन की डिजाइन केवल अपने ही अनुभव और प्रयोग द्वारा तैयार की थी, यह मान लेना भूल होगा। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इटली, ग्रेट ब्रिटेन, प्रâांस और जर्मनी की सबमरीन डिजाइन और मॉडल की पूरी जांच करने के बाद रूस ने अपनी डिजाइन तैयार की थी।
कोल्डवार की हाट रिसर्च -
दूसरे विश्वयुद्ध में नौकादल की ताकत बढ़ाने में सबमरीन कितनी उपयोगी है? इसका महत्व अमेरिका और रूस समझ चुका था। दोनो ही महासत्ता सबमरीन से राकेट और मिसाइल छोड़ी जा सके, इस तरह की आधुनिक सबमरीन तैयार करने के लिए आगे आए। विज्ञान शोध की इस कवायत अमेरिका की सी-वुल्फ क्लास और वर्जीनिया क्लास की स्टील्थ सबमरीन विकसित करने में सफलता मिली। सी-वुल्फ सबमरीन में एक साथ ५० जितने टॉम हॉफ मिसाइल रखी जा सकती हैं। जबकि वर्जीनिया क्लास सबमरीन में टोर्पिडो टॉम हॉफ क्रूज मिसाइल और हारपून मिसाइल रखी जा सकती है। रूस के पास अकुला क्लास और यासेन क्लास की लेटेस्ट सबमरीन हैं।
रूस की तीन सबमरीन डिजाइन के मुख्य केंद्रों में से दो सेंटर सेंट पीटर्सबर्ग से आते हैं। जिसमें मालाखित मरीन इंजीनियरिंग ब्यूरो और रुबिन सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो फार मरीन इंजीनियरिंग (रुबिन) का समावेश होता है। जबकि लाजुरिट सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो सबमरीन और सबमर्सिबल डिजाइन के क्षेत्र में अग्रणी डिजाइन पब्लिक कंपनी है। २००१ में सबमरीन शोध के सौ साल पूरे होने का उत्सव मनाने के लिए २५ पन्ने की ब्रोसर जैसी पुस्तिका छापी गई थी। जिसका टाइटल था, `फाइव कलर आफ टाइम'। इस पुस्तक में रूस द्वारा सबमरीन को विकसित करने में किए गए शोध और खोज का इतिहास दिया गया है।
दुनिया में मात्र ५ ही ऐसे देश हैं, जिनके पास न्यूक्लियर सबमरीन विकसित करने की टेक्नोलॉजी है। इन ५ देशों में रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, प्रâास और चीन का समावेश होता है। सोवियत यूनियन हो या अलग हुआ रूस हो, अधिकतर उनके वैज्ञानिकों द्वारा किए गए खोज को लोहे की दीवार के पीछे गुप्त रखा जाता है। जिसके कारण रूस के वैज्ञानिकों के जीवन के बारे में भरपूर जानकारी मिलती है, परंतु उनके शोध के बारे में बहुत कम लिखा जाता है। ऐसा ही कुछ इगोर स्पास्की के बारे में भी हुआ है।
समय के पांच कालखंड -
इतिहास सोवियत संघ के आधुनिक सबमरीन विकसित करने के समय को पांच हिस्सों में बांटता है। पहले समयकाल को सफेद समयकाल - ह्वाइट पीरियड के रूप में जाना जाता है। १९०१ से १९२५ के बीच के समयकाल में युद्ध में लड़ायक भूमिका अदा कर सकें, इस तरह की सबमरीन की सैद्धांतिक डिजाइन से ले कर निर्माण का यह प्रथम चरण था। इस समयकाल में प्राथमिक कक्षा की सबमरीन तैयार की गई थी। दूसरा चरण लाल समयकाल- रेड पीरियड के रूप में जाना जाता है। जिसमें सोवियत संघ दूसरे विश्वयुद्ध में शामिल था। अमेरिका के साथ मिल कर रूस ने १९२५ से १९४५ के बीच सबमरीन की डिजाइन और निर्माण किया है। १९४५ से १९५५ का समयकाल ब्ल्यू पीरियड यानी आसमानी समयकाल के रूप में जाना जाता है। इस समय अमेरिका और रूस के बीच टेक्नोलॉजिकल और राजनीतिक संघर्ष में कोल्डवार की शुरुआत हुई थी। १९५५ से १९९० के बीच का समयकाल सबमरीन खोज के लिए स्वर्णयुग यानी कि गोल्डन पीरियड के रूप में जाना जाता है। इन वर्षों में सोवियत संघ द्वारा न्यूक्लियर पावर प्लांट, मरीन मिसाइल वेपंस और न्यूक्लियर पावर सबमरीन विकसित की गई थी। विज्ञान शोध के सुनहरे सालों में सोवियत संघ में इगोर स्पास्की के कैरियर की शुरुआत होती है। राजनीतिक स्थिरता के कारण सोवियत संघ का विभाजन हुआ। उसके बाद का समय यानी कि १९९० से २००० तक का समय रूस के लिए आर्थिक संकट का रहा। जिसके कारण सबमरीन डिजाइन और निर्माण की प्रवृत्ति पर अघोषित रुकावट रही। इस समय को ग्रे पीरियड के रूप में जाना जाता है। फिर भी सोवियत संघ हो या अलग हुआ रूस, उनके पास सबमरीन की संख्या २०० से कम कभी नहीं हुई। ११ मार्च, १९०६ को सोवियत संघ के नौकादल में नए प्रकार के ७ युद्धपोत शामिल हुए थे। जिन्हें दुनिया सबमरीन के रूप में जानती है। इस घटना की याद में रूस हर साल १९ मार्च को 'डे आफ सबमरीन' के रूप में मानता है।
सुनहरे दिनों का अंत-
इगोर दिमित्रीविय स्पास्की का जन्म २ अगस्त, १९२९ को मास्को प्रदेश के नोगिंस्क शहर में हुआ था। १९४९ में उन्होंने डीजेर्किंस्की हायर नेवर इंजीनियरिंग स्कूल से इंजीनियर की पढ़ाई की। उसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने क्रूजर फ्न्ज के इंजीनियर के रूप में सेवा दी। सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट मेरीटाइम यूनिवर्सिटी के शिप डिजाइन विभाग के प्रोफेसर के रूप में भी उन्होंने सेवा दी। १९५० में उन्होंने सबमरीन डिजाइनर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। शुरुआत में वह कंस्ट्रक्शन डिजाइन ब्यूरो-१४३, उसके बाद १९५३ से कंस्ट्रक्शन डिजाइन ब्यूरो-१८ में सबमरीन डिजाइन पर शोध और निर्माण का काम शुरू किया। १९५६ में वह रुबिन के मुख्य इंजीनियर बने। १९६८ से उन्हे रुबिन डिजाइन ब्यूरो का मुख्य इंजीनियर बनाया गया। १९७४ से वह रुबिन डिजाइन ब्यूरो के मुख्य इंजीनियर के साथ ब्यूरो के प्रमुख भी बने। उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग १८७ सबमरीन का निर्माण किया। जिनमें ९१ सबमरीन डीजल इलेक्ट्रिक पावर द्वारा चलती थी, जबकि ९६ न्यूक्लियर पावर द्वारा संचालित थीं।
उन्होंने व्यूहात्मक बेलास्टिक मिसाइल सबमरीन जैसे कि डेल्टा-।।। - वर्ग की सबमरीन (६६७ँDR कालमर), टायकून क्लास सबमरीन (प्रोजेक्ट ९४१-अकुला) और डेल्टा घ्न्न् -वर्ग की सबमरीन (१९८१ से डॉल्फिन) पर काम किया था। क्रूज मिसाइल सबमरीन जैसे कि ऑस्कर। (प्रोजेक्ट ९४९ ग्रेनाइट) और ऑस्कर।।
(प्रोजेक्ट ९४९A एंटी) क्लास सबमरीन पर शोध व निर्माण किया था। १९५६ में उन्हें लेनिन प्राइज दिया गया था। १९७८ में उन्हें डाक्टर आफ टेक्निकल साइंस की पदवी प्रदान की गई थी। १९८४ में यू एस एस आर स्टेट प्राइज दिया गया। उन्हें दो बार आर्डर आफ लेनिन, आर्डर आफ अक्टूबर रेवोल्यूशन, आर्डर आफ रेड बेनर आफ लेबर जैसे अनेक इल्काब मिले थे।
वीरेंद्र बहादुर सिंह
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