जिज्जी

सब कुछ बहुत अच्छे से बीत रहा था कि अचानक जीजा जी के स्वास्थ्य बिगड़ने की खबर पहुंची ।पूरा घर चिंतित हो गया बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। अम्मा बाबूजी के सामने ही दामाद का  न रहना उन्हें भीतर तक तोड़ गया । जिज्जी जो हमेशा सक्रिय थी उन्होंने जैसे खामोशी की चादर ओढ़ ली ।सूनी आंखों से  आँसुओं कीअविरल धारा बहती रहती पर कुछ ना कहती थीं। पूरे घर में श्मशान  सा सन्नाटा छा गया था। कुछ समय बाद जिज्जी ने कहा उन्हें वापस अपने घर जाना है, परिवार ,सास-ससुर को संभालना है ।बहुत भारी मन से हमने विदा किया था जिज्जी को । समय पंख लगाकर उड़ता गया। वह दिन भी आया जब जिज्जी की बेटी स्वप्निल का विवाह तय हुआ ।हम सब बड़े उत्साह से जिज्जी के घर शादी की तैयारी में जुट गए।

Nov 13, 2023 - 13:37
Nov 13, 2023 - 13:38
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जिज्जी
Jizzy

जिज्जी हम सब भाई बहनों में सबसे बड़ी और मां की तरह प्यार लुटाने वाली lहर त्योहार और  गर्मी की छुट्टियों में हम सबको बेसब्री से जिज्जी के आने का इंतजार रहता। जिज्जी जितनी रूपवान उतनी ही गुणी और सबकी चहेती थी ।माँ, बाबूजी का मान थीँ जिज्जी।घर में कोई भी त्यौहार हो या शुभ कार्य, बिना जिज्जी के पूरा ना होता ।हर एक नेग, रस्म , व्यवहारिकता बड़ी ही खूबसूरती से निभाती थी जिज्जी । जिज्जी के आने पर उनके इर्द-गिर्द ही घर के सब सदस्य घूमा करते। हमारे कपड़े सीना हो या पूजा की थाली सजानी हो , हर काम इतनी कुशलता से करती कि सब के मुंह से वाह!! निकले बिना नहीं रहता ।मां बाबूजी का कोई भी काम बिना जिज्जी की सहमति के पूरा ना होता ।सुंदर जिज्जी के माथे पर लाल बड़ी सी बिंदी और मांग में सिंदूर बहुत ही फबता था। मां हमेशा कहती कि मेरी बेटी में मुझे देवी का स्वरूप नजर आता है ।
सब कुछ बहुत अच्छे से बीत रहा था कि अचानक जीजा जी के स्वास्थ्य बिगड़ने की खबर पहुंची ।पूरा घर चिंतित हो गया बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। अम्मा बाबूजी के सामने ही दामाद का  न रहना उन्हें भीतर तक तोड़ गया ।
जिज्जी जो हमेशा सक्रिय थी उन्होंने जैसे खामोशी की चादर ओढ़ ली ।सूनी आंखों से  आँसुओं कीअविरल धारा बहती रहती पर कुछ ना कहती थीं। पूरे घर में श्मशान  सा सन्नाटा छा गया था। कुछ समय बाद जिज्जी ने कहा उन्हें वापस अपने घर जाना है, परिवार ,सास-ससुर को संभालना है ।बहुत भारी मन से हमने विदा किया था जिज्जी को ।
समय पंख लगाकर उड़ता गया। वह दिन भी आया जब जिज्जी की बेटी स्वप्निल का विवाह तय हुआ ।हम सब बड़े उत्साह से जिज्जी के घर शादी की तैयारी में जुट गए।
 मंडपाच्छादन था और हल्दी लगने की रस्म होनी थी।  समाज की बुजुर्ग महिलाओं ने ऐलान कर दिया कि केवल सुहागिनें और कुंवारी लड़कियां ही हल्दी की रस्म में भाग लेंगीं और कोई नहीं ।उनका इशारा जिज्जी की ओर ही था ।जिज्जी समझ गईं और धीरे से किनारे होकर ना जाने कहां चली गईं। स्वप्निल  को हल्दी की रस्म के लिए लाया गया ।स्वप्निल ने इधर-उधर नजर घुमाई उसे मां( जिज्जी)कहीं नजर नहीं आई। स्वप्निल को जैसे ही हल्दी लगाया जाने लगा स्वप्निल ने कहा-" रूकिये पहली हल्दी मुझे अपनी मां के हाथों लगवाना है।" महिलाओं में आपस में खुसुर-फुसुर होने लगी कि यह कैसे अपशगुन की बात कर रही है ?भला स्वप्निल की माँ का मांगलिक कार्य में क्या काम? स्वप्निल अचानक खड़ी हो गई और कहा -"जिस मां ने मुझे जन्म दिया मेरे जीवन को संवारा ,सजाया और मुझे काबिल बनाया वह अपशगुनी कैसे हो सकती है,? जन्म दात्री कैसे अपशगुन का कारण बन सकती है ?मेरे लिए मेरी मां से बढ़कर और कोई भाग्यशाली नहीं। मां के भाग्य से ही मेरा भाग्य संवरा है ।"यह कहती हुई स्वप्निल माँ-माँ आवाज लगाती हुई जिज्जी को ढूंढने लगी ।जिज्जी अंदर भगवान के कमरे में जीजाजी की तस्वीर के सामने हाथ जोड़े मौन खड़ी थी ।आंसुओं का सागर आंखों से  बहता जा रहा था। स्वप्निल दौड़कर जिज्जी से लिपट गई और कहा- "अगर तुमने पहली हल्दी नहीं लगाई तो मैं ब्याह नहीं करूंगी ।जिज्जी अचंभित उसको ताकते रह गईं। स्वप्निल ने कहा -"तुमसे ज्यादा मेरे लिए भाग्यशाली कोई नहीं माँ । माँ तो दुआओं का भंडार होती है जो बच्चों की सारी बलाए अपने सर ले लेती हैं तो मां कैसे अपशगुनी हुई ?"स्वपनिल ने जिज्जी का हाथ पकड़ा और मंडप की ओर चल पड़ी जहाँ हल्दी लगनी थी ।जिज्जी भी बेटी के मनुहार और ज़िद के आगे हार गईं।हल्दी भरे हाथों से स्वप्निल के गालों पर हल्दी लगाई ।दकियानूसी विचारधारा की दीवार चरमरा कर ढेर होती हुई नजर आई ।जिज्जी के ससुराल वालों ने और घर के सब लोगों ने तालियां बजाई। सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे और जिज्जी की आंखों से आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। स्वप्निल भी जिज्जी से बच्चों की तरह लिपट गई।
  गोधूलि बेला में बारात का आगमन हुआ। दामाद जी की आरती उतारने के लिए जिज्जी आरती का थाल लेकर खड़ी हुई थी शगुन और अपशगुन की बातों से बहुत ऊपर एक नई परंपरा की शुरुआत करते हुए .

पूर्वा श्रीवास्तव 
अवंती विहार रायपुर

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