मन
न चंचल है, मन निर्मल है मन भ्रष्ट दिशा में जाता है। मन का स्वभाव, अति वेगवान मन क्षण-क्षण में रम जाता है।।

मन चंचल है, मन निर्मल है
मन भ्रष्ट दिशा में जाता है।
मन का स्वभाव, अति वेगवान
मन क्षण-क्षण में रम जाता है।।
मन में ईर्ष्या, मन में मिथ्या
मन हर प्रपंच का मेला है।
मन से ठानी, मन में ग्लानि
मन भटके तो वो अकेला है।।
प्रभांशु पाण्डेय
काशी
What's Your Reaction?






