हमारा खानपान और हमारा स्वास्थ्य
आप सबकी सुविधा के लिए एक संतुलित आहार फूड पिरामिड दे रही हूँ । जहाँ तक हो सके, शाकाहारी भोजन करें, वही आहार लें जो मौसमी हो और आपके इलाके में पाया जाता हो । आहार जितना स्वच्छ हो, घर का बना हुआ हो, उतना ही ज्यादा शरीर पर सकारात्मक असर करता है। भोजन शाकाहारी, संतुलित और वैविध्यपूर्ण सुपाच्य हो तो स्वादु-सुस्वादु लगता है और जब मस्तिष्क को पता चलता है कि आपको भोजन स्वादु-सुस्वादु लग रहा है और आप प्रसन्न है तो वह प्रसन्नता के हार्मोन का रिसाव करता है ।
आहार, भोजन, खानपान का नाम आते ही पहला प्रश्न आता है कि आखिर भोजन है क्या? किसे कहते हैं भोजन और यह क्यों जरूरी है? तो इसका सबसे सीधा और आसान जवाब है, ‘भोजन मतलब ऊर्जा और ऊर्जा मतलब जीवन’। जीवित रहने के लिए जो चाहिए वही भोजन है । भोजन या आहार का अर्थ और कार्य मात्र क्षुधा, पेट या जिह्वा को तृप्त करना नहीं होता उसका मुख्य कार्य होता है शरीर को ऊर्जा देना और हमारे जीवन के दैनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाना । साथ ही भोजन का सामाजिक महत्व भी है हर तीज-त्योहार अतिथि आगमन सब जगह भोजन का ही बोल-बाला है क्योंकि हमारे यहां अतिथि देवो भव माना जाता है। हम सभी अतिथियों का स्वागत भोजन से ही करते हैं । उपरोक्त कथन का मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी, कभी भी खा सकते हैं । भोजन ऊर्जा ही तो है पर सबकी ऊर्जा की ज़रूरतें अलग-अलग हैं । जितनी विविधता शरीर की बनावट और हमारे दैनिक गतिविधियों में है इतनी ही विविधता ऊर्जा की आवश्यकता में है । हमारे ऋषि, मुनि, संत, महंत जीवन जीने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती थी उतना ही खाते थे या यूँ कहूँ कि जीवित रहने के लिए खाते थे । उनके जीवन में नियम-संयम था, अतः बीमारियां व्याधियों कम थी, उनका अपने शरीर ऊर्जा और मन पर नियंत्रण था । बात आज की करें तो आज की पीढ़ी जिसमें हम सभी आते हैं, ‘खाने के लिए जीवित हैं’, ऐसा कहने में हमें गर्व महसूस होता है। आज बहुधा समाज खाने के लिए ही जीता है, ना कोई नियम ना संयम, जब भी जी किया खा लिया । ऊर्जा का प्रयोग हमारा शरीर दिन प्रतिदिन की क्रिआओं, शरीर की टूट-फूट, मरम्मत और शरीर को रोगों से बचाने के लिए चाहिए होता है । हमारी भूख-क्षुधा को तृप्त करने के लिए गृहण किये गए आहार से ही शरीर ये उर्जा प्राप्त करता है । आज के युवा व समाज की जीवन शैली और उस पर सोशल मीडिया, विज्ञापनों का असर इतना ज्यादा है कि उस पर नियंत्रण मुश्किल हो रहा है । साथ ही पैसा कमाने की होड़, बड़ा आदमी बनने की चाहत, खाना बनाने, खाने का समय नहीं देती । इसलिए जो भी झटपट बन जाए और खाने में समय ना लगे या कुछ भी मिल जाए खा लेते हैं। इसी सबके चलते आज पिज्जा, बर्गर, सैंडविच जैसे विदेशी खानपान का बोलबाला है ।
भोजन का सीधा प्रभाव मन-मस्तिष्क पर पड़ता है और विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है । नियम, संयम, संतुलित आहार, शारीरिक व मानसिक श्रम दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम करता है। मस्तिष्क जितना चैतन्य और सजग रहेगा उतना ही उत्तम सृजन होगा कार्यशीलता बढ़ेगी तभी तो आप अपने काम में अव्वल रहेंगे और अपने लक्ष्य को पा सकेंगे । आहार किसी व्यक्ति की आयु, लिंग, शारीरिक क्षमता, जीवन शैली और उसके निवास प्रदेश की जलवायु सब पर निर्भर करता है । कुल मिलाकर हमें संतुलित आहार लेना चाहिए । संतुलित आहार वह है जिसमें सभी पोषक तत्व प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा, विटामिन व खनिज लवण और जल शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप उपस्थित हो । संतुलित आहार न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि दीर्घायु भी रखता है जब भोजन संतुलित हो तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी तो दीर्घायु होना निश्चित है । जैसा कि मैं पहले ही कह चुकी हूँ, आहार हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है । आप जैसा भोजन करोगे, आपकी सोच वैसी होगी । अब चुनना आपको है कि आप क्या चाहते हैं, कैसा बनना चाहते हैं भोजन के इन तीन प्रकारों सात्विक, तामसिक या राजसिक में से कुछ भी चुन कर। आमतौर पर भोजन में 50 से 60% कार्बोहाइड्रेट, 12 से 20% प्रोटीन और 30% वसा होना चाहिए । हमें आहार में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और जल सभी का ध्यान रखना चाहिए यह सभी तत्व हमारे शरीर के लिए आवश्यक है । आप सबकी सुविधा के लिए एक संतुलित आहार फूड पिरामिड दे रही हूँ । जहाँ तक हो सके, शाकाहारी भोजन करें, वही आहार लें जो मौसमी हो और आपके इलाके में पाया जाता हो । आहार जितना स्वच्छ हो, घर का बना हुआ हो, उतना ही ज्यादा शरीर पर सकारात्मक असर करता है । भोजन शाकाहारी, संतुलित और वैविध्यपूर्ण सुपाच्य हो तो स्वादु-सुस्वादु लगता है और जब मस्तिष्क को पता चलता है कि आपको भोजन स्वादु-सुस्वादु लग रहा है और आप प्रसन्न है तो वह प्रसन्नता के हार्मोन का रिसाव करता है । आप तो जानते हैं कि जब मन चंगा तो कठौती में गंगा तब यही भोजन का रस शरीर की एक-एक कोशिका तक पहुंचकर उसे रसमय कर पूर्ण-परिपूर्ण करता है और कोशिकाएं प्रसन्न होकर फूली नहीं समाती है और स्वयं स्वस्थ होकर आपको स्वस्थ रखती है । संतुलित आहार के साथ ही शारीरिक व्यायाम की भी आवश्यकता शरीर को होती है। जीवन शैली में बदलाव करें, बैठे न रहे, शरीर का भरपूर इस्तेमाल करें, जिम जाने की जरूरत नहीं है, घर पर ही योग, प्राणायाम करें, दौड़े, साइकिल चलाएं, जितना हो सके पैदल चले, वजन पर ध्यान रखें, समय निकालकर हरियाली और प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले । अपनी खुराक व शारीरिक श्रम में सामंजस्य रखें, ज्यादा श्रम तो ज्यादा खुराक, पर हो संतुलित । भरपूर नींद लें, खुश रहे, अनावश्यक बातों और चीजों में दिमाग उलझा कर तनाव न बढ़ाएं । यदि संतुलित आहार खाने और व्यायाम करने के बाद भी अपेक्षित नतीजा ना मिल रहा हो तो शारीरिक गतिविधि के हिसाब से ही आहार में छोटे-छोटे बदलाव करने से सही नतीजा पाया जा सकता है। अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट, बिना चर्बी वाला प्रोटीन खाएं, अनावश्यक वसा और तरल पदार्थों से बचें । कई लोग काम के बीच बार-बार कॉफी पीते हैं, यह सच है कि काफी एक अच्छा सप्लीमेंट है जो सतर्कता और उत्पादकता बढाता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा प्रतिकूल प्रभाव डालती है, यह उत्तेजक है । इसकी जगह आप ग्रीन टी, ब्लैक टी या नींबू पानी ले और यदि तुरंत ऊर्जा चाहते हैं तो सीमित मात्रा में सूरजमुखी और कद्दू के बीच का उपयोग कर सकते हैं । जैसे दैनिक कार्य का समय निर्धारित होता है या आप अपनी एक समय सारणी बनाते हैं वैसे खाने का भी समय निर्धारित रखें उसी निर्धारित समय पर भोजन करें । भोजन करने का भी नियम होता है धीरे-धीरे चबाकर खाएं, खाने के बीच कम से कम पानी पिए, सबसे पहले कड़े पदार्थ फिर नरम और अंत में पतले पदार्थ खाने चाहिए । रात में सोने से 2 घंटा पहले भोजन कर लें, रात का भोजन हल्का रखें भोजन करते समय एकाग्रचित होकर खाएं, भोजन का स्वाद लें और उसका आनंद लें, दिन भर पानी खूब पियें, आहार नित-नवीन हो, संतुलित, नियमित, संयमित, समय पर, ताजा वैविध्यपूर्ण, सुपाच्य, स्वादिष्ट, रुचिकर हो और सबसे आवश्यक और अंतिम अकाट्य सत्य, प्रसन्नचित रहें । आहार, भोजन, खानपान का नाम आते ही पहला प्रश्न आता है कि आखिर भोजन है क्या? किसे कहते हैं भोजन और यह क्यों जरूरी है? तो इसका सबसे सीधा और आसान जवाब है, ‘भोजन मतलब ऊर्जा और ऊर्जा मतलब जीवन’। जीवित रहने के लिए जो चाहिए वही भोजन है । भोजन या आहार का अर्थ और कार्य मात्र क्षुधा, पेट या जिह्वा को तृप्त करना नहीं होता उसका मुख्य कार्य होता है शरीर को ऊर्जा देना और हमारे जीवन के दैनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाना । साथ ही भोजन का सामाजिक महत्व भी है हर तीज-त्योहार अतिथि आगमन सब जगह भोजन का ही बोल-बाला है क्योंकि हमारे यहां अतिथि देवो भव माना जाता है। हम सभी अतिथियों का स्वागत भोजन से ही करते हैं । उपरोक्त कथन का मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी, कभी भी खा सकते हैं । भोजन ऊर्जा ही तो है पर सबकी ऊर्जा की ज़रूरतें अलग-अलग हैं । जितनी विविधता शरीर की बनावट और हमारे दैनिक गतिविधियों में है इतनी ही विविधता ऊर्जा की आवश्यकता में है । हमारे ऋषि, मुनि, संत, महंत जीवन जीने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती थी उतना ही खाते थे या यूँ कहूँ कि जीवित रहने के लिए खाते थे । उनके जीवन में नियम-संयम था, अतः बीमारियां व्याधियों कम थी, उनका अपने शरीर ऊर्जा और मन पर नियंत्रण था । बात आज की करें तो आज की पीढ़ी जिसमें हम सभी आते हैं, ‘खाने के लिए जीवित हैं’, ऐसा कहने में हमें गर्व महसूस होता है। आज बहुधा समाज खाने के लिए ही जीता है, ना कोई नियम ना संयम, जब भी जी किया खा लिया । ऊर्जा का प्रयोग हमारा शरीर दिन प्रतिदिन की क्रिआओं, शरीर की टूट-फूट, मरम्मत और शरीर को रोगों से बचाने के लिए चाहिए होता है । हमारी भूख-क्षुधा को तृप्त करने के लिए गृहण किये गए आहार से ही शरीर ये उर्जा प्राप्त करता है । आज के युवा व समाज की जीवन शैली और उस पर सोशल मीडिया, विज्ञापनों का असर इतना ज्यादा है कि उस पर नियंत्रण मुश्किल हो रहा है । साथ ही पैसा कमाने की होड़, बड़ा आदमी बनने की चाहत, खाना बनाने, खाने का समय नहीं देती । इसलिए जो भी झटपट बन जाए और खाने में समय ना लगे या कुछ भी मिल जाए खा लेते हैं। इसी सबके चलते आज पिज्जा, बर्गर, सैंडविच जैसे विदेशी खानपान का बोलबाला है ।
भोजन का सीधा प्रभाव मन-मस्तिष्क पर पड़ता है और विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है । नियम, संयम, संतुलित आहार, शारीरिक व मानसिक श्रम दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम करता है। मस्तिष्क जितना चैतन्य और सजग रहेगा उतना ही उत्तम सृजन होगा कार्यशीलता बढ़ेगी तभी तो आप अपने काम में अव्वल रहेंगे और अपने लक्ष्य को पा सकेंगे । आहार किसी व्यक्ति की आयु, लिंग, शारीरिक क्षमता, जीवन शैली और उसके निवास प्रदेश की जलवायु सब पर निर्भर करता है । कुल मिलाकर हमें संतुलित आहार लेना चाहिए । संतुलित आहार वह है जिसमें सभी पोषक तत्व प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा, विटामिन व खनिज लवण और जल शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप उपस्थित हो । संतुलित आहार न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि दीर्घायु भी रखता है जब भोजन संतुलित हो तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी तो दीर्घायु होना निश्चित है । जैसा कि मैं पहले ही कह चुकी हूँ, आहार हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है । आप जैसा भोजन करोगे, आपकी सोच वैसी होगी । अब चुनना आपको है कि आप क्या चाहते हैं, कैसा बनना चाहते हैं भोजन के इन तीन प्रकारों सात्विक, तामसिक या राजसिक में से कुछ भी चुन कर। आमतौर पर भोजन में 50 से 60% कार्बोहाइड्रेट, 12 से 20% प्रोटीन और 30% वसा होना चाहिए । हमें आहार में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और जल सभी का ध्यान रखना चाहिए यह सभी तत्व हमारे शरीर के लिए आवश्यक है । आप सबकी सुविधा के लिए एक संतुलित आहार फूड पिरामिड दे रही हूँ । जहाँ तक हो सके, शाकाहारी भोजन करें, वही आहार लें जो मौसमी हो और आपके इलाके में पाया जाता हो । आहार जितना स्वच्छ हो, घर का बना हुआ हो, उतना ही ज्यादा शरीर पर सकारात्मक असर करता है । भोजन शाकाहारी, संतुलित और वैविध्यपूर्ण सुपाच्य हो तो स्वादु-सुस्वादु लगता है और जब मस्तिष्क को पता चलता है कि आपको भोजन स्वादु-सुस्वादु लग रहा है और आप प्रसन्न है तो वह प्रसन्नता के हार्मोन का रिसाव करता है । आप तो जानते हैं कि जब मन चंगा तो कठौती में गंगा तब यही भोजन का रस शरीर की एक-एक कोशिका तक पहुंचकर उसे रसमय कर पूर्ण-परिपूर्ण करता है और कोशिकाएं प्रसन्न होकर फूली नहीं समाती है और स्वयं स्वस्थ होकर आपको स्वस्थ रखती है । संतुलित आहार के साथ ही शारीरिक व्यायाम की भी आवश्यकता शरीर को होती है। जीवन शैली में बदलाव करें, बैठे न रहे, शरीर का भरपूर इस्तेमाल करें, जिम जाने की जरूरत नहीं है, घर पर ही योग, प्राणायाम करें, दौड़े, साइकिल चलाएं, जितना हो सके पैदल चले, वजन पर ध्यान रखें, समय निकालकर हरियाली और प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले । अपनी खुराक व शारीरिक श्रम में सामंजस्य रखें, ज्यादा श्रम तो ज्यादा खुराक, पर हो संतुलित । भरपूर नींद लें, खुश रहे, अनावश्यक बातों और चीजों में दिमाग उलझा कर तनाव न बढ़ाएं । यदि संतुलित आहार खाने और व्यायाम करने के बाद भी अपेक्षित नतीजा ना मिल रहा हो तो शारीरिक गतिविधि के हिसाब से ही आहार में छोटे-छोटे बदलाव करने से सही नतीजा पाया जा सकता है। अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट, बिना चर्बी वाला प्रोटीन खाएं, अनावश्यक वसा और तरल पदार्थों से बचें । कई लोग काम के बीच बार-बार कॉफी पीते हैं, यह सच है कि काफी एक अच्छा सप्लीमेंट है जो सतर्कता और उत्पादकता बढाता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा प्रतिकूल प्रभाव डालती है, यह उत्तेजक है । इसकी जगह आप ग्रीन टी, ब्लैक टी या नींबू पानी ले और यदि तुरंत ऊर्जा चाहते हैं तो सीमित मात्रा में सूरजमुखी और कद्दू के बीच का उपयोग कर सकते हैं । जैसे दैनिक कार्य का समय निर्धारित होता है या आप अपनी एक समय सारणी बनाते हैं वैसे खाने का भी समय निर्धारित रखें उसी निर्धारित समय पर भोजन करें । भोजन करने का भी नियम होता है धीरे-धीरे चबाकर खाएं, खाने के बीच कम से कम पानी पिए, सबसे पहले कड़े पदार्थ फिर नरम और अंत में पतले पदार्थ खाने चाहिए । रात में सोने से 2 घंटा पहले भोजन कर लें, रात का भोजन हल्का रखें भोजन करते समय एकाग्रचित होकर खाएं, भोजन का स्वाद लें और उसका आनंद लें, दिन भर पानी खूब पियें, आहार नित-नवीन हो, संतुलित, नियमित, संयमित, समय पर, ताजा वैविध्यपूर्ण, सुपाच्य, स्वादिष्ट, रुचिकर हो और सबसे आवश्यक और अंतिम अकाट्य सत्य, प्रसन्नचित रहें । आहार, भोजन, खानपान का नाम आते ही पहला प्रश्न आता है कि आखिर भोजन है क्या? किसे कहते हैं भोजन और यह क्यों जरूरी है? तो इसका सबसे सीधा और आसान जवाब है, ‘भोजन मतलब ऊर्जा और ऊर्जा मतलब जीवन’। जीवित रहने के लिए जो चाहिए वही भोजन है । भोजन या आहार का अर्थ और कार्य मात्र क्षुधा, पेट या जिह्वा को तृप्त करना नहीं होता उसका मुख्य कार्य होता है शरीर को ऊर्जा देना और हमारे जीवन के दैनिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाना । साथ ही भोजन का सामाजिक महत्व भी है हर तीज-त्योहार अतिथि आगमन सब जगह भोजन का ही बोल-बाला है क्योंकि हमारे यहां अतिथि देवो भव माना जाता है। हम सभी अतिथियों का स्वागत भोजन से ही करते हैं । उपरोक्त कथन का मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी, कभी भी खा सकते हैं । भोजन ऊर्जा ही तो है पर सबकी ऊर्जा की ज़रूरतें अलग-अलग हैं । जितनी विविधता शरीर की बनावट और हमारे दैनिक गतिविधियों में है इतनी ही विविधता ऊर्जा की आवश्यकता में है । हमारे ऋषि, मुनि, संत, महंत जीवन जीने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती थी उतना ही खाते थे या यूँ कहूँ कि जीवित रहने के लिए खाते थे । उनके जीवन में नियम-संयम था, अतः बीमारियां व्याधियों कम थी, उनका अपने शरीर ऊर्जा और मन पर नियंत्रण था । बात आज की करें तो आज की पीढ़ी जिसमें हम सभी आते हैं, ‘खाने के लिए जीवित हैं’, ऐसा कहने में हमें गर्व महसूस होता है। आज बहुधा समाज खाने के लिए ही जीता है, ना कोई नियम ना संयम, जब भी जी किया खा लिया । ऊर्जा का प्रयोग हमारा शरीर दिन प्रतिदिन की क्रिआओं, शरीर की टूट-फूट, मरम्मत और शरीर को रोगों से बचाने के लिए चाहिए होता है । हमारी भूख-क्षुधा को तृप्त करने के लिए गृहण किये गए आहार से ही शरीर ये उर्जा प्राप्त करता है । आज के युवा व समाज की जीवन शैली और उस पर सोशल मीडिया, विज्ञापनों का असर इतना ज्यादा है कि उस पर नियंत्रण मुश्किल हो रहा है । साथ ही पैसा कमाने की होड़, बड़ा आदमी बनने की चाहत, खाना बनाने, खाने का समय नहीं देती । इसलिए जो भी झटपट बन जाए और खाने में समय ना लगे या कुछ भी मिल जाए खा लेते हैं। इसी सबके चलते आज पिज्जा, बर्गर, सैंडविच जैसे विदेशी खानपान का बोलबाला है ।
भोजन का सीधा प्रभाव मन-मस्तिष्क पर पड़ता है और विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है । नियम, संयम, संतुलित आहार, शारीरिक व मानसिक श्रम दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम करता है। मस्तिष्क जितना चैतन्य और सजग रहेगा उतना ही उत्तम सृजन होगा कार्यशीलता बढ़ेगी तभी तो आप अपने काम में अव्वल रहेंगे और अपने लक्ष्य को पा सकेंगे । आहार किसी व्यक्ति की आयु, लिंग, शारीरिक क्षमता, जीवन शैली और उसके निवास प्रदेश की जलवायु सब पर निर्भर करता है । कुल मिलाकर हमें संतुलित आहार लेना चाहिए । संतुलित आहार वह है जिसमें सभी पोषक तत्व प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा, विटामिन व खनिज लवण और जल शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप उपस्थित हो । संतुलित आहार न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है बल्कि दीर्घायु भी रखता है जब भोजन संतुलित हो तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी तो दीर्घायु होना निश्चित है । जैसा कि मैं पहले ही कह चुकी हूँ, आहार हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है । आप जैसा भोजन करोगे, आपकी सोच वैसी होगी । अब चुनना आपको है कि आप क्या चाहते हैं, कैसा बनना चाहते हैं भोजन के इन तीन प्रकारों सात्विक, तामसिक या राजसिक में से कुछ भी चुन कर। आमतौर पर भोजन में 50 से 60% कार्बोहाइड्रेट, 12 से 20% प्रोटीन और 30% वसा होना चाहिए । हमें आहार में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और जल सभी का ध्यान रखना चाहिए यह सभी तत्व हमारे शरीर के लिए आवश्यक है । आप सबकी सुविधा के लिए एक संतुलित आहार फूड पिरामिड दे रही हूँ । जहाँ तक हो सके, शाकाहारी भोजन करें, वही आहार लें जो मौसमी हो और आपके इलाके में पाया जाता हो । आहार जितना स्वच्छ हो, घर का बना हुआ हो, उतना ही ज्यादा शरीर पर सकारात्मक असर करता है । भोजन शाकाहारी, संतुलित और वैविध्यपूर्ण सुपाच्य हो तो स्वादु-सुस्वादु लगता है और जब मस्तिष्क को पता चलता है कि आपको भोजन स्वादु-सुस्वादु लग रहा है और आप प्रसन्न है तो वह प्रसन्नता के हार्मोन का रिसाव करता है । आप तो जानते हैं कि जब मन चंगा तो कठौती में गंगा तब यही भोजन का रस शरीर की एक-एक कोशिका तक पहुंचकर उसे रसमय कर पूर्ण-परिपूर्ण करता है और कोशिकाएं प्रसन्न होकर फूली नहीं समाती है और स्वयं स्वस्थ होकर आपको स्वस्थ रखती है । संतुलित आहार के साथ ही शारीरिक व्यायाम की भी आवश्यकता शरीर को होती है। जीवन शैली में बदलाव करें, बैठे न रहे, शरीर का भरपूर इस्तेमाल करें, जिम जाने की जरूरत नहीं है, घर पर ही योग, प्राणायाम करें, दौड़े, साइकिल चलाएं, जितना हो सके पैदल चले, वजन पर ध्यान रखें, समय निकालकर हरियाली और प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले । अपनी खुराक व शारीरिक श्रम में सामंजस्य रखें, ज्यादा श्रम तो ज्यादा खुराक, पर हो संतुलित । भरपूर नींद लें, खुश रहे, अनावश्यक बातों और चीजों में दिमाग उलझा कर तनाव न बढ़ाएं । यदि संतुलित आहार खाने और व्यायाम करने के बाद भी अपेक्षित नतीजा ना मिल रहा हो तो शारीरिक गतिविधि के हिसाब से ही आहार में छोटे-छोटे बदलाव करने से सही नतीजा पाया जा सकता है। अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट, बिना चर्बी वाला प्रोटीन खाएं, अनावश्यक वसा और तरल पदार्थों से बचें । कई लोग काम के बीच बार-बार कॉफी पीते हैं, यह सच है कि काफी एक अच्छा सप्लीमेंट है जो सतर्कता और उत्पादकता बढाता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा प्रतिकूल प्रभाव डालती है, यह उत्तेजक है । इसकी जगह आप ग्रीन टी, ब्लैक टी या नींबू पानी ले और यदि तुरंत ऊर्जा चाहते हैं तो सीमित मात्रा में सूरजमुखी और कद्दू के बीच का उपयोग कर सकते हैं । जैसे दैनिक कार्य का समय निर्धारित होता है या आप अपनी एक समय सारणी बनाते हैं वैसे खाने का भी समय निर्धारित रखें उसी निर्धारित समय पर भोजन करें । भोजन करने का भी नियम होता है धीरे-धीरे चबाकर खाएं, खाने के बीच कम से कम पानी पिए, सबसे पहले कड़े पदार्थ फिर नरम और अंत में पतले पदार्थ खाने चाहिए । रात में सोने से 2 घंटा पहले भोजन कर लें, रात का भोजन हल्का रखें भोजन करते समय एकाग्रचित होकर खाएं, भोजन का स्वाद लें और उसका आनंद लें, दिन भर पानी खूब पियें, आहार नित-नवीन हो, संतुलित, नियमित, संयमित, समय पर, ताजा वैविध्यपूर्ण, सुपाच्य, स्वादिष्ट, रुचिकर हो और सबसे आवश्यक और अंतिम अकाट्य सत्य, प्रसन्नचित रहें ।
रचना दीक्षित
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